उत्तर प्रदेश के प्रमुख हस्त शिल्प की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • संक्षेप में हस्त-शिल्प को परिभाषित करें और उत्तर प्रदेश के प्रमुख हस्त-शिल्प के नाम बताएं।

मुख्य भाग

  • प्रदेश के विभिन्न हस्त-शिल्प की विशेषताओं को क्रमबद्ध रूप से बताएं।

निष्कर्ष

सार के रूप में निष्कर्ष रखें।

भूमिकाः

हस्तशिल्प, उन सभी कलात्मक वस्तुओं का सम्मिलित रूप है जिनका निर्माण मानव द्वारा हाथों से किया जाता है। उत्तर प्रदेश, भारत के प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्रों में से एक है जो अपनी विशिष्ट कला, हस्तशिल्प, संगीत, नृत्य इत्यादि को प्रदर्शित करता है। राज्य के हस्तशिल्प में लकड़ी के सामान, मिट्टी के बर्तन, वस्त्र, पत्थर के काम तथा आभूषण निर्माण इत्यादि शामिल हैं।

उत्तर

मुख्य भागः

राज्य के प्रमुख हस्तशिल्प निम्नांकित हैं:

  • पॉटरी बर्तन (मिट्टी के बर्तन ):
  • पॉटरी निर्माण के लिए मेरठ, खुर्जा और हापुड़, रामपुर, चुनार विशेष प्रसिद्ध।
  • उत्तर प्रदेश के चुनार में लैक क्ले पॉटरी’ का उत्पादन होता है। जिसमें सिल्वर पेंट के साथ बेहतर होता है।
  • आजमगढ़ के निजामाबाद में चावल/धान के खेतों से प्राप्त मिट्टी “काबीज” (Kabir) से मिट्टी के नाम बर्तनों का निर्माण किया जाता है।
  • खुर्जा (बुलन्दशहर) में पॉटरी का इतिहास 600 वर्ष से अधिक पुराना है। यहाँ आकर्षक टेबलवेयर (का. इत्यादि) का निर्माण होता है।
  • मिट्टी के बर्तनों में घड़े और सुराही विशेष प्रसिद्ध हैं।

जरदोजी (Zardozi):

  • जरदोजी के ‘लखनऊ’ विशेष प्रसिद्ध है।
  • “लखनऊ जरदोजी” को जी.आई. टैग प्राप्त है।
  • “लखनऊ जरदोजी”, लखनऊ के अतिरिक्त बाराबंकी, उन्नाव, सीतापुर, राय बरेली, हरदोई और अमेठी में उत्पादित होता है।
  • ‘जरदोजी’ फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है “सोने के धागे से सिलाई”।
  • जरदोजी कला, कपड़ों पर कढ़ाई की कला है।
  • प्रमुख वस्त्र, पारम्परिक भारतीय परिधान, जैसे शेरवानी, महिलाओं के सूट इत्यादि मुख्यतः।
  • बनारस में भी जरी का काम किया जाता है जो मुख्यत: रेशम की साड़ियों पर होते हैं। बनारसी साड़ियों को भी जी.आई. टैग प्राप्त है।

पीतल के बर्तनः

  • प्रदेश में पीतल के बर्तन बनाने तथा कलई का काम मुरादाबाद, फर्रुखाबाद, हाथरस, अतरौली, शामली तथा हापुड इत्यादि नगरों में होता है।
  • मुरादाबाद विशेष प्रसिद्ध है। यहाँ दो प्रकार के बर्तनों का निर्माण होता है
  1. नक्काशी: ऊपरी सतह पर सूक्ष्म कलाकारी।
  2. खुदाई: लाह/लाख लेपित बिना पॉलिश किए गए पीतल के बर्तन पर कलाकारी।
  • पीतल के बर्तनों जैसे-ट्रे, सुंदर कटोरे इत्यादि के साथ ही गणेश, बुद्ध, नट्राज इत्यादि की मूर्तियाँ भी बनाई जाती

कालीन बुनाईः

  • राज्य का सर्वाधिक प्रसिद्ध हस्तशिल्प है।
  • भदोही जिला, विशेष उत्कृष्टता प्राप्त कर चुका है। यह देश का सबसे बड़ा कालीन विनिर्माण केन्द्र है। भदोही को ‘कालीन शहर’ भी कहा जाता है।
  • कालीन रेशम और सूती धागों से बने होते हैं। भदोही में “फारसी पैटर्न” से सजाए गए कालीनों का उत्पादन होता है।
  • इसके अतिरिक्त मिर्जापुर, अलीगढ़, बरेली और आगरा में भी।

हाथ से छपाई (हैण्ड-प्रिटिंग):

  • ‘हाथ से छपाई का काम ‘फर्रुखाबाद’ नगर में किया जाता है। यहाँ ‘बुटीस’ (पोल्का डॉट्स) तथा “कल्पवृक्ष” जैसे परम्परागत पैटर्न कपड़ों पर बड़ी कुशलता से हाथ से बनाए जाते हैं।
  • हाथ से छपाई में ‘पैटर्न’ सामान्यतः काले रंग के होते हैं जो हल्की रंगीन पृष्ठभूमि पर उकेरे जाते हैं।
  • मथुरा में “मलमल” पर छपाई होता है।

काँच के उत्पाद (ग्लास वेयर):

  • फिरोजाबाद, ग्लास वेयर विशेषता काँच की चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • काँच के उत्पादों में झूमर, कटलरी सेट, आभूषण, बर्तन तथा खिलौने प्रमुख हैं।
  • उत्पादन हतु कांच को उच्च तापमान पर गर्म करके पिघलाया जाता है। मुलायम होने पर वांछित आकार दिया जाता है।
  • महिलाओं को रोजगार।

चिकनकारीः

  •  चिकनकारी के लिए लखनऊ विश्व प्रसिद्ध है।
  • चिकनकारी में कपड़ों पर फूल या सुन्दर पैटर्न बनाने के लिए “सफेद धागे’ का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें सूती, मलमल, पॉलिएस्टर इत्यादि विभिन्न कपड़ों का प्रयोग किया जाता है।

काष्ठ कला (लकड़ी का काम):

  • उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र वनाच्छादित है इसलिए निकटवर्ती क्षेत्रों में लकड़ी से बने फर्नीचर तथा कलात्मक वस्तुओं का निर्माण प्राचीन काल से किया जा रहा है।
  • ‘सहारनपुर’, लकड़ी के काम में विशेष प्रसिद्ध है। यहाँ शीशम एवं सागवान की लकड़ियों के फर्नीचर, खिलौने तथा आकर्षक सजावटी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

चर्म हस्तकलाः

  • उत्तर प्रदेश में चमड़े के हस्तनिर्मित कलात्मक वस्तुओं का निर्माण प्राचीन काल से किया जा रहा है।
  • कानपुर का लेदर वर्क विशेष प्रसिद्ध है। यहाँ चमड़े के जूते, चप्पल, बैग इत्यादि कलात्मक ढंग से बनाए जाते हैं।

निष्कर्षः

इस प्रकार उत्तर प्रदेश का प्रत्येक नगर विशिष्टं हस्तशिल्प निर्माण की समता, दक्षता और कुशलता प्रदर्शित करता है। ‘एक जिला, एक उत्पाद’ जैसी योजनाओं के द्वारा राज्य सरकार हस्त-शिल्प को संरक्षित व प्रोत्साहित कर रही है। जिससे प्रदेश के प्रत्येक जिले के हस्तशिल्प की पहचान सुस्थापित होगी और उनका व्यवसायीकरण होगा।

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