हिंदू मंदिरों के मूल (आधार) रूप की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख

प्रश्न: हिंदू मंदिरों के मूल (आधार) रूप के प्रमुख तत्वों की पहचान कीजिए। साथ ही, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली के मध्य अंतर पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • हिंदू मंदिरों के मूल (आधार) रूप की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  • बाह्य स्वरूप, उपयोग की गई सामग्री, मंदिर के द्वार, पवित्र स्थलों की संख्या इत्यादि मानदंडों के आधार पर उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

हिंदू मंदिर स्थापत्य शैली अनेक शताब्दियों की लम्बी कालावधि में सामान्य शैलकृत गुहा मंदिरों से लेकर विशाल और अलंकृत मंदिरों तक विकसित हुई है जो सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए थे।

हिंदू मंदिरों के मूल (आधार) रूप के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं:

  • गर्भगृह: यह मंदिर के केन्द्रीय भाग में स्थित गुफा सदृश पवित्र स्थल होता है जिसमें प्रमुख देवता का वास होता है। इसमें प्रवेश हेतु केवल एक ही द्वार होता है।
  • मंडप: मंदिर का प्रवेश द्वार जिसमें बड़ी संख्या में पूजा करने वाले लोगों के लिए स्थान होता है।
  • शिखर और विमान: 5 वीं शताब्दी के बाद से ही, स्वतंत्र रूप से निर्मित मंदिरों में एक पर्वतनुमा शिखर का निर्माण किया जाने लगा था। इसने उत्तर भारत के मंदिरों में एक वक्राकार शिखर और दक्षिण भारत के मंदिरों में एक पिरामिडनुमा शिखर (विमान) का स्वरुप ग्रहण किया।
  • वाहन: मंदिर के मुख्य देवता का आसन या वाहन एक स्तंभ अथवा ध्वज के साथ पवित्र स्थल के ठीक सामने स्थापित होता
  • अंतराल (गलियारा): यह गर्भगृह और मंदिर के मुख्य सभामण्डप (मंडप) के मध्य का संक्रमण क्षेत्र होता है।

उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली के मध्य अंतर:

मंदिर स्थापत्य शैली मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं: उत्तर में नागर शैली और दक्षिण में द्रविड़ शैली। इसके अतिरिक्त वेसर शैली नामक एक अन्य प्रकार की मंदिर स्थापत्य शैली, नागर और द्रविड़ शैली की चयनात्मक विशेषताओं को सम्मिलित करते हुए एक स्वतंत्र शैली के रूप में विकसित हुई है।

नागर/उत्तर भारतीय शैली

नागर शैली की मूल विशेषता यह है कि सम्पूर्ण मंदिर को सामान्यतः एक पत्थर की वेदिका पर निर्मित किया जाता है, shikhara – जिसमें ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां होती है तथा गर्भगह सबसे ऊंचे शिखर के ठीक नीचे स्थित होता है। शिखर के आकार के आधार पर नागर मंदिरों को कई उप शैलियों में विभाजित किया गया है:

  •  उत्तर भारतीय मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर, मिथुनों (कामुक मुद्राएँ दर्शाती प्रतिमाओं) तथा गंगा एवं यमुना नदियों की देवी-प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता था।
  • द्रविड़ शैली के विपरीत उत्तर भारतीय मंदिरों में एक साथ ऊपर उठते हुए कई शिखर स्थापित होते हैं।
  • उदाहरण: देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भुवनेश्वर का मुक्तेश्वर मंदिर और लिंगराज मंदिर तथा पुरी का जगन्नाथ मंदिर।

द्रविड़ शैली:

विशिष्ट द्रविड़ शैली में, एक अलंकृत चहारदीवारी या प्रवेश द्वार होता है और यह एक मुख्य परिसर की चहारदीवारी से घिरा होता है।

  • इसके अग्रभाग की दीवार में एक प्रवेश द्वार होता है, जिसे गोपुरम कहा जाता है।
  • मुख्य मंदिर का शिखर विमान के नाम से जाना जाता है जो ज्यामितीय रूप से ऊपर की ओर बढ़ता है।
  • दक्षिण भारत के मंदिरों में द्वारपालों की मूर्तियाँ पायी जाती है जो मंदिर के रक्षक के रूप में दर्शाए गए हैं।
  • सामान्यतः मंदिर परिसर के अंदर एक बड़े जलाशय की उपस्थिति पायी जाती है। सहायक मंदिर या तो मुख्य मंदिर के शिखर के भीतर ही स्थापित होते हैं या मुख्य मंदिर के निकट पृथक छोटे मंदिरों के रूप में स्थित होते हैं।
  • द्रविड़ मंदिरों का मुख्य विभाजन इस प्रकार है: वर्ग, आयताकार अथवा शाला या आयतश्र; दीर्घवृत्तीय, जिसे गज-पृष्ठ या वृत्तायत, वृत्तीय या वृत्त भी कहा जाता है।
  • उदाहरण: कांची का कैलाशनाथ मंदिर, मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर।

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