अवसंरचना के वित्तीयन की वर्तमान स्थिति : भविष्य में इसमें वृद्धि करने की आवश्यकता

प्रश्न: अवसंरचना क्षेत्रक के वे विशेष लक्षण क्या हैं जो इसके वित्तीयन को चुनौतीपूर्ण बना देते हैं? इस क्षेत्रक में वित्त की पर्याप्त उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कौन-से उपाय किए गए हैं। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • अवसंरचना के वित्तीयन की वर्तमान स्थिति और निकट भविष्य में इसमें वृद्धि करने की आवश्यकता का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • अन्य संपत्ति वर्गों की तुलना में अवसंरचना संपत्तियों की विशिष्ट प्रकृति को दर्शाने वाली कुछ आर्थिक विशेषताओं की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
  • RBI द्वारा फंड के प्रवाह को बेहतर बनाने हेतु किए गए कुछ महत्वपूर्ण उपायों को बताइए।
  • अवसंरचना क्षेत्र में मौजूदा मुद्दों का समाधान करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुधारों को सुझाइए।

उत्तर

अवसंरचना विकास में तीव्रता लाने वाले उत्प्रेरक के रूप में आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वर्ल्ड कम्पेटिटिवनेस इंडेक्स फॉर इंफ्रास्ट्रक्चर, 2017 में भारत को 137 देशों में 66वां स्थान प्राप्त हुआ, जो कि निराशाजनक है।

औद्योगिक अनुमानों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती मांगों की पूर्ति हेतु विगत 15 वर्षों अर्थात 2016-2030 की अवधि में परस्पर संबद्ध आर्थिक अवसंरचना में निवेश को दोगुना करके 6 ट्रिलियन डॉलर तक किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि, निम्नलिखित कारकों के परिणामस्वरूप अवसंरचना वित्तीयन एक चुनौती के रूप में बनी हुई है:

  • जटिल व्यवस्थाएं: प्रायः अवसंरचनागत परियोजनाओं का स्वरूप जटिल होता है और इनमें बड़ी संख्या में पक्षकार सम्मिलित होते हैं, जिससे उत्तरदायित्व खंडित हो जाता है।
  • क़ानूनी व्यवधान: ऐसी परियोजनाओं में शामिल सभी पक्षों के लिए जोखिम-साझाकरण एवं लाभ (payoff) का उचित वितरण सुनिश्चित करने हेतु अनेक कानूनी व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है।
  • उच्च निर्माणपूर्व अवधि: परियोजनाओं की दीर्घावधिक प्रकृति उन्हें कई जोखिमों (जैसे नीतियों में परिवर्तन तथा स्वीकृति में विलंब, आदि के कारण उत्पन्न जोखिम) के अधीन कर देती है।
  • संपत्ति-देयता असंतुलन: नियमित वित्तीय प्रवाह को बनाए रखने हेतु सरकार के समर्थन के कथित आश्वासन के कारण, ऋण वित्त पोषण पर भारत के सार्वजनिक क्षेत्रक के बैंकों का प्रभुत्व है। ये बैंक पहले से ही गैर-निष्पादित संपत्ति (Non Performing Assests: NPA) में वृद्धि के कारण गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं।
  • सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP): BOT (Build-Operate-Transfer) जैसे PPP मॉडलों को अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई है, अतः निजी क्षेत्र द्वारा भी इसे अधिक महत्व प्रदान नहीं किया गया है।
  • नीति एवं विनियमन: न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax: MAT), सामान्य कर परिवर्जन रोधी नियम (GAAR), भूमि अधिग्रहण इत्यादि की प्रयोज्यता से संबंधित अनिश्चित नीतियों ने अवसंरचना क्षेत्रक में अनुमानित जोखिम में वृद्धि की है।
  • क्रॉस-कटिंग से संबंधित मुद्दे: अप्रभावी परिवहन एवं ऊर्जा अवसंरचना के कारण लागत एवं परियोजना अवधि में वृद्धि होती है जिससे परियोजनाओं की तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

अवसंरचना क्षेत्रक में वित्त के प्रवाह में सुधार हेतु उठाए गए कदम:

  • परियोजनाओं को पूरा करने हेतु सीमित लागत वृद्धि वित्तपोषण (cost overrun financing) और परियोजना की समयावधि में वृद्धि की स्वीकृति प्रदान की गई है, जो कि ऋण वर्गीकरण में परिवर्तन के बिना कुछ शर्तों के अधीन है।
  • बैंकों के द्वारा अवसंरचना बॉन्ड के माध्यम से बाजार से फंड एकत्रित किया जा सकता है और ऐसे फंडों द्वारा वित्त पोषित संपत्तियों को प्राथमिकता क्षेत्रक ऋण (Priority Sector Lending: PSL) मानदंडों से छूट प्रदान की जाती है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों से पोस्ट कंस्ट्रक्शन एसेट्स को अपने अधिकार में लेने (take over) हेतु गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Finance Comapny: NBFC) एवं म्यूच्यूअल फंड के रूप में इंफ्रास्ट्रक्चर डेब्ट फंड (IDF) की स्थापना को स्वीकृति प्रदान की है।
  • बॉन्ड जारी करने हेतु क्रेडिट में वृद्धि कर बैंकों की बैलेंस शीट से जोखिम को समाप्त करने के लिए प्रभावशाली बॉन्ड बाजार की स्थापना।

अवसंरचना के वित्तीयन की समस्या के समाधान हेतु विभिन्न क़दमों जैसे कि अवसंरचना वित्तीयन के वैकल्पिक स्त्रोत जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT), इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (IDF), सॉवरेन फंड, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) तक पहुंच इत्यादि को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। दीपक पारेख समिति ने अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से अतिरिक्त अवसरों को प्राप्त करके अवसंरचना वित्तीयन के संग्रहण तथा बेहतर जोखिम पहचान, दीर्घ कार्यकाल और ऋण की कम लागत के संदर्भ में वित्त । पोषण में वृद्धि किए जाने की अनुशंसा की है। इसी प्रकार, केलकर समिति ने सेवा प्रदायगी, क्षमता निर्माण एवं जोखिम और रिटर्न के उचित आवंटन की आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित कर PPP मॉडल में अधिक तीव्रता लाने की अनुशंसा की थी।

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