उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण, संचलन और क्षय की प्रणाली
प्रश्न:उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण, संचलन और क्षय की प्रणाली का वर्णन कीजिए। इस संदर्भ में, व्याख्या कीजिए कि‘तितली’ चक्रवात को IMD द्वारा क्यों ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ (रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर) कहा गया था।
दृष्टिकोण
- उत्तर के प्रारंभ में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की प्रकृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- इसके निर्माण एवं संचलन की प्रणाली का उल्लेख कीजिए।
- इसके क्षय हेतु उत्तरदायी कारकों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- तितली चक्रवात की दुर्लभतम विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर
उष्णकटिबंधीय चक्रवात से तात्पर्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक चक्रीय निम्न दाब प्रणाली से है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब समीपवर्ती क्षेत्रों की तुलना में केंद्रीय क्षेत्र का दाब 5 से 6 हेक्टोपास्कल (hPa) तक कम हो जाता है तथा निरंतर रूप से प्रवाहित होने वाली वायु की अधिकतम गति 34 नॉट (लगभग 62 किमी प्रति घंटे) तक हो जाती है। इसमें प्रवाहित प्रचंड वायु भारी वर्षण एवं तीव्र तूफ़ान द्वारा क्षेत्र में व्यापक विनाश का कारण बनती है, जिसके कारण इसे प्राकृतिक आपदाओं में सबसे विध्वंसक माना जाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण एवं संचलन
उष्णकटिबंधीय चक्रवात, उष्ण कटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न व विकसित होते हैं। इनके निर्माण एवं विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:
- विस्तृत समुद्री सतह, जहाँ तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो;
- कोरिऑलिस बल की उपस्थिति;
- वायु की ऊर्ध्वाधर गति में अल्प परिवर्तन होना;
- कमजोर निम्न दाब वाले क्षेत्र अथवा निम्न-स्तरीय चक्रवाती परिसंचरण की पहले से उपस्थिति;
- समुद्र तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।
चूंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात व्यापारिक पवनों का भाग होता है अतः यह व्यापारिक पवनों के साथ संचरण करता है। यह सामान्य रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में पूर्वी तट तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में पश्चिमी तट को स्पर्श करता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का समापन
चक्रवात को अपेक्षाकृत अधिक विध्वंसक बनाने वाली ऊर्जा चक्रवात के केंद्र के चारों ओर ऊँचाई तक फैले हुए कपासी मेघों में होने वाली संघनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त होती है। समुद्र से निरंतर आर्द्रता की आपूर्ति से यह चक्रवात अधिक प्रबल हो जाता है। स्थल पर पहुंचकर आर्द्रता की आपूर्ति अवरुद्ध हो जाती है तथा चक्रवात क्षीण होकर समाप्त हो जाता है। वह स्थान जहाँ से उष्णकटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर स्थल पर पहुँचता है, चक्रवात का लैंडफॉल कहा जाता है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा तितली चक्रवात को ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ घोषित करने के कारण निम्नलिखित हैं:
हाल ही में, ओडिशा के तट से टकराने वाले तितली चक्रवात को ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ घोषित किया गया है क्योंकि लैंडफॉल के पश्चात इसकी प्रबलता में पुनः वृद्धि हुई। तितली चक्रवात ने लैंडफॉल के पश्चात अपना मार्ग परिवर्तित कर दिया था, परंतु इसने अपनी विनाशकारी क्षमता को बनाए रखा। तटीय क्षेत्रों से दूर जाते हुए इसका रिकर्वेचर (दिशा परवर्तन) दो दिनों से अधिक समय तक बना रहा। इसका मुख्य कारण लैंडफॉल का बिंदु हो सकता है, जो भूमध्य रेखा के उत्तर में लगभग 20 डिग्री पर अवस्थित था।
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