राजकोषीय नीति : अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका

प्रश्न: राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • राजकोषीय नीति का अर्थ और अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्यों की चर्चा कीजिए।
  • संक्षिप्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

राजकोषीय नीति एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से सरकार देश की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन की निगरानी करने और परिणामस्वरूप उसे प्रभावित करने हेतु अपने व्यय के स्तर और कर की दरों में समायोजन करती है।

यह मुख्यतः जॉन मेनार्ड कीन्स के विचारों पर आधारित है। कीन्स द्वारा तर्क दिया गया कि सरकार व्यय व कर नीतियों को समायोजित करके व्यापार चक्र को स्थिर कर सकती है तथा आर्थिक उत्पादन को विनियमित कर सकती है। राजकोषीय नीति दो प्रकार की होती है – विस्तारवादी (व्ययों को बढ़ाकर अथवा करों को कम करके अथवा दोनों के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु) और संकुचनवादी (मुद्रास्फीति को कम करने हेतु) राजकोषीय नीति।

राजकोषीय नीति के मुख्य उद्देश्य: 

  • संसाधनों के प्रभावी संग्रहण द्वारा विकास: राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य कराधान, सार्वजनिक व निजी बचतों आदि के उपयोग के माध्यम से वित्तीय संसाधनों के संग्रहण द्वारा तीव्र आर्थिक वृद्धि तथा विकास को सुनिश्चित करना है।
  • संसाधनों का इष्टतम आबंटन: कराधान और सार्वजनिक व्यय कार्यक्रमों जैसे राजकोषीय साधन, विभिन्न व्यवसायों तथा क्षेत्रों में संसाधनों के आबंटन को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं।
  • आय का प्रभावी पुनर्वितरण: राजकोषीय नीति का उद्देश्य धन और आय का समान वितरण करना है ताकि समाज में असमानताओं को कम किया जा सके।
  • कीमत स्थिरता और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: राजकोषीय नीति कुछ ऐसी होनी चाहिए जो कीमत स्तर को यथोचित स्थिर बनाए रखे और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखे तथा इस प्रकार समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित कर सके।
  • रोजगार सृजन: विकासशील अर्थव्यवस्था में राजकोषीय नीति का यह एक प्रमुख उद्देश्य है। उदाहरण के लिए, अवसंरचना में निवेश से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार में वृद्धि होती है।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: सरकार पिछड़े क्षेत्रों में परियोजनाएं स्थापित करने हेतु विभिन्न प्रोत्साहन प्रदान करती है, जैसे कि नकद सब्सिडी, करों में रियायत, रियायती ब्याज दरों पर वित्त इत्यादि।
  • भुगतान संतुलन बनाए रखना: राजकोषीय नीति भुगतान संतुलन की समस्या का समाधान करने हेतु अधिक निर्यातों को प्रोत्साहित करने और आयात को हतोत्साहित करने का प्रयास करती है। यह विदेशी मुद्रा उपार्जन में वृद्धि के उद्देश्य को प्राप्त करने में भी सहायता करती है।
  • पूँजी निर्माण: भारत में राजकोषीय नीति का उद्देश्य पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करना है, ताकि प्रमुख क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि कर आर्थिक विकास की दर को तीव्र किया जा सके।

राजकोषीय नीति के उद्देश्यों को सार्वजनिक व्यय, कराधान, ऋण व घाटे के वित्तपोषण जैसे नीतिगत साधनों के प्रभावी उपयोग की स्थिति में ही प्राप्त किया जा सकता है। राजकोषीय नीति की सफलता कार्यान्वयन के दौरान सामयिक उपायों और उनके प्रभावी व्यवस्थापन पर भी निर्भर करती है।

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