उर्वरक संयंत्रों की अवस्थिति : उर्वरक संयंत्रों की स्थापना हेतु उत्तरदायी कारक

प्रश्न: उर्वरक संयंत्रों की अवस्थिति तेल शोधन संयंत्रों और कोयला उत्पादक क्षेत्रों की अवस्थिति से घनिष्ठ रूप से संबंधित है। सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, उपभोक्ता केंद्रों के निकट उर्वरक संयंत्रों की स्थापना (जैसे कि उत्तर प्रदेश में है) का सविस्तार कारण बताइए।

दृष्टिकोण

  • सविस्तार वर्णन कीजिए कि किस प्रकार उर्वरक संयंत्रों की अवस्थिति तेल शोधन संयंत्रों और कोयला उत्पादक क्षेत्रों की अवस्थिति से घनिष्ठ रूप से संबंधित है।
  • उपभोक्ता केंद्रों के निकट उर्वरक संयंत्रों की स्थापना हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

वर्तमान में, भारत विश्व में उर्वरकों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। उर्वरक उद्योग की दशा और विकास कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार के अवसर सृजित करने और क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करने हेतु महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य रूप से स्वतंत्रता के बाद के युग में विकसित होने वाले उर्वरक उद्योग गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में संकेंद्रित है।

उर्वरक संयंत्रों की अवस्थिति तेल शोधन संयंत्रों और कोयला उत्पादक क्षेत्रों की अवस्थिति से घनिष्ठ रूप से संबंधित है क्योंकि:

  • तेल शोधन के दौरान प्राप्त नेप्था का उपयोग नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के उत्पादन हेतु आधारभूत कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
  • कोयला संस्तर (coal seams) और कोयला उत्पादन के दौरान प्राप्त मीथेन का उपयोग अमोनिया निर्माण हेतु किया जाता है। अमोनिया का उपयोग यूरिया जैसे नाइट्रोजन आधारित उर्वरक बनाने के लिए किया जाता है।
  • उर्वरक उद्योग हेतु निरंतर ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता होती है। तेल और कोयला स्रोतों के निकट इसकी अवस्थिति से यह आवश्यकता पूर्ण हो जाती है।
  • कोयला उत्पादक क्षेत्र अन्य शैल खनिजों के उत्पादन के साथ भी संबद्ध हैं। उर्वरक उत्पादन प्रक्रिया में इनकी आवश्यकता होती है।

हालांकि, अब निम्नलिखित कारणों से उर्वरक संयत्र उत्तरोत्तर उपभोक्ता केंद्रों के निकट अवस्थित होते जा रहे हैं:

  • सिंधु-गंगा के मैदान में गहन कृषि के कारण उर्वरक खपत में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि विशेष रूप से हरित क्रांति पेटी में हुई है जिसमें पंजाब और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इसने गोरखपुर, पानीपत आदि जैसे उपभोक्ता केंद्रों की ओर इस उद्योग का प्रसार अनिवार्य बना दिया है।
  • हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HVJ) गैस पाइपलाइन और रेलवे के माध्यम से परिवहन की सुगमता ने विजयपुर, जगदलपुर, आंवला, गडेपान, बबराला और शाहजहाँपुर में इस उद्योग के विस्तार की सुविधा प्रदान की है।
  • इसके अतिरिक्त, मृदा निम्नीकरण की बढ़ती घटनाओं के कारण, मूल कृषि पेटी में उर्वरकों की माँग तीव्र हो गयी है। इसने उर्वरक संयंत्रों के स्थानीयकरण को और बढ़ावा दिया है।
  • सरकार द्वारा दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी ने भी उपभोक्ता केंद्रों के निकट विकेंद्रीकृत उर्वरक उत्पादन को प्रोत्साहित किया है।

इस प्रकार उर्वरक उद्योग अब कच्चे माल से समृद्ध क्षेत्रों तक सीमित नहीं रह गया है। सरकार की नीतियों के साथ मिलकर, अब माँग और आपूर्ति पक्ष के कारकों ने इसकी अवस्थिति निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना आरंभ कर दिया है।

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