शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies: ULBs)

शहरी स्थानीय निकायों से संबंधित मुद्दे (Issues With ULBs)

  • स्थानीय स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास शक्तियों का अभाव: अधिकांश नगरपालिकाअो एवं नगर निगमों में यद्यपि महापौर (मेयर) औपचारिक प्रधान होता है, किन्तु नगर निगम की कार्यकारी शक्तियां राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयुक्त में निहित होती हैं।
  • अप्रभावी नेतृत्व: महापौर एवं पार्षद (काउंसलर्स) इन निकायों के माध्यम से आवश्यक नगरीय सुधार लाने वाले एजेंट बनने के स्थान पर इन्हें अपने राजनीतिक जीवन हेतु सोपान के रूप में देखते हैं और इसे प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर पाते हैं।
  • ULBs की शक्तियों का अन्य निकायों को प्रत्यायोजन: उदाहरण के लिए- स्मार्ट सिटी मिशन जैसे केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में SPV के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को स्थानीय परियोजना से संबंधित ULBs को प्राप्त निर्णय लेने की शक्तियों का प्रत्यायोजन किया गया है।
  • राज्य सरकार का अत्यधिक नियंत्रण- राज्य सरकारों को कुछ परिस्थितियों में नगरपालिकाअशे एवं स्थानीय निकायों को हटाने और भंग करने की शक्ति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों को निम्न शक्तियां भी प्राप्त हैं
  •  वे नगरपालिकाअो के बजट (निगम के अलावा) को मंजूरी प्रदान करती हैं।
  • यहां तक कि संशोधित स्थानीय कर संरचना को भी राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति एवं बाद में सरकार के अनुमोदन की । आवश्यकता पड़ती है।
  • लेखांकन और लेखा परीक्षा प्रणाली,आदि के द्वारा नियंत्रण।
  • वित्त का अभाव- ULBs की आय के मुख्य स्रोत विभिन्न प्रकार के कर हैं, जिनमें से अधिकांश संघ एवं राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाते हैं। शहरी स्थानीय निकायों द्वारा एकत्र की गई कर राशि, प्रदत्त सेवाओं के खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। इन शहरी निकायों का राजस्व कुल सकल घरेलू उत्पाद के 1% से भी कम है। कुल मिलाकर परिणाम यह है कि शहरी स्थानीय निकायों को पर्याप्त वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त नहीं है।
  • पैरास्टेटल एजेंसियों (parastatal Agencies) का निर्माण: उदाहरण के लिए शहरी विकास प्राधिकरण (जो शहर की आधारभूत संरचना का निर्माण करता है) एवं सार्वजनिक निगम (जो शहर को जल, बिजली और परिवहन जैसी सेवाएं उपलब्ध करवाते हैं) केवल राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी हैं, शहरी स्थानीय निकायों के प्रति नहीं। (‘पैरास्टेटल’ वे संस्थान/संगठन हैं, जो पूर्ण या आंशिक रूप से सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन होते हैं)।
  • भ्रष्टाचार और उसके कारण प्रभावकारिता में कमीः इन स्थानीय निकायों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासनिक तंत्र अपर्याप्त एवं अप्रभावी है। जिन कर्मचारियों को कम भुगतान किया जाता है वे भ्रष्ट कार्यों में संलिप्त होते हैं। इससे राजस्व आय में हानि होती है तथा प्रशासन की प्रभावकारिता है।
  • प्रभावी और कुशल कर्मचारियों की कमी: स्थानीय शहरी निकायों को जनसंख्या की गुणात्मक एवं मात्रात्मक रूप से बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेषज्ञों की पेशेवर सेवाओं की आवश्यकता होती है। शहरी निकायों की स्थिति लगातार खराब हो रही है, इसका मुख्य कारण शहरी क्षेत्रों की ओर होने वाले ग्रामीण प्रवासन में वृद्धि है। इसने शहरी क्षेत्रों को तीव्रता से परिवर्तित कर दिया है, परिणामस्वरूप लोगों की मूलभूत सेवाओं तक पहुंच में कमी आई है।
  • जन-सहभागिता का निम्न स्तरः प्रशासन प्रणाली में भाग लेने में जनता की उदासीनता ऐसे संस्थानों को आत्मसंतुष्ट और गैरजिम्मेदार बना देती है।

मार्च 2018 में जारी भारत की शहर प्रणाली के वार्षिक सर्वेक्षण, 2017 में इंगित किए गए मुद्देः

  • शहरी स्थानीय निकायों में लोकतान्त्रिक प्रकृति का अभाव: सर्वेक्षण किये गए 23 शहरों में से केवल दो शहरों में ही कम से कम कागज पर वार्ड समितियां एवं क्षेत्र सभाएं मौजूद थीं।
  • 23 शहरों में से 9 शहरों में सिटीजन चार्टर उपलब्ध था। हालाँकि, इन शहरों में जहां चार्टर उपलब्ध है, वहां भी सेवा स्तरों  और सेवाअो प्रदायगी आदि के लिए समय-सीमा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
  • नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए केवल तीन भारतीय शहरों में ही लोकपाल की व्यवस्था है: भुवनेश्वर, रांची और तिरुवनंतपुरम।
  • 23 शहरों में से 19 शहर ऐसे है जो अपनी कार्यप्रणाली और कामकाज के बारे में मूलभूत आंकड़े भी नहीं जारी करते हैं।
  • अधिकांश भारतीय शहरों द्वारा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट का उपयोग किया जाता है। इस एक्ट को अर्थव्यवस्था उदारीकृत होने से दशकों पहले तैयार किया गया था। आधुनिक एवं समकालीन शहरी नियोजन ढांचे के अभाव के कारण प्रति वर्ष भारत की GDP के 3% की हानि होती है।

ULBS हेतु सरकार द्वारा उठाये गए कदम (Steps Taken By Government For ULBs)

  • प्रदर्शन आधारित अनुदान: 14 वें वित्त आयोग ने यह निर्धारित किया है कि लेखांकन, लेखा परीक्षा, रिपोर्टिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में
    सुधारों में प्रदर्शन के आधार पर ULBs को अनुदान प्रदान करने की एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की जाए।
  • केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने नगरपालिकाअशे में सुधारों के लिए एक व्यापक रोड मैप बनाया है। इस रोडमैप में तीन मुख्य मार्गों सहित सुधार के तीन स्तर सम्मिलित हैं, यथा – शासन, नियोजन एवं वित्त।
चरण  उद्देश्य उठाये गए कदम या सुधार
स्तर-1 जारी मुख्य वित्तीय और सेवा  प्रदायगी सुधारों को बढ़ावा देना। शहरों का कार्य:

  •  प्रदर्शन अनुदान की प्राप्ति के समय विगत दो वित्तीय वर्षों के लेखापरीक्षा विवरण को प्रस्तुत करना।
  • विगत वर्ष के राजस्व में वृद्धि प्रदर्शित करना, जो कि लेखा परीक्षा खाते से प्रदर्शित हो रही हो।
  • जल आपूर्ति के लिए सेवा स्तर का मापन एवं प्रकाशन।
स्तर-2 सुधार प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना
  • वैल्यू कैप्चर फाइनेंसिंग पॉलिसी का निर्माण एवं क्रियान्वयन।
  • यह सुनिश्चित करना कि सभी ULBs की क्रेडिट रेटिंग की गयी हो और निवेश योग्य ग्रेड-रेटिंग वाले शहर ही म्युनिसिपल बांड जारी करें।
  • म्युनिसिपल कैडर को पेशेवर बनाना रिक्त पदों को भरना एवं पेशेवरों की लैटरल एंट्री को अनुमति प्रदान करना।
  • ट्रस्ट एंड वेरीफाई मॉडल और सूचना तकनीक के उपयोग के माध्यम से भूमि अधिकार कानून को क्रियान्वित करना।
स्तर 3 तीव्र एवं अधिक परिवर्तनकारी सुधारों को बढ़ावा देना
  •  निधि, प्रकार्यों एवं पदाधिकारियों के अधिक हस्तांतरण के माध्यम से विकेंद्रीकरण सुधारों को बढ़ावा देना तथा ULBs को सुदृढ़ बनाना।
  • आत्म-निर्भरता के लिए स्वयं के राजस्व स्रोतों में वृद्धि करना।
  • शहरी नियोजन में लचीलापन लाना, विशेष रूप से शहरों के मास्टर प्लान को वहां की बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबद्ध करना।
  • म्युनिसिपल बांड: वर्ष 2017 में नीति आयोग द्वारा अपने तीन साल के एक्शन एजेंडा दस्तावेज़ में म्युनिसिपल बॉन्ड मार्किट के उपयोग की चर्चा की गयी है। यह बांड ऋण प्राप्ति की कम लागत को सुनिश्चित करेगा जो ऐसी म्युनिसिपल परियोजनाओं के लिए आवश्यक है जिनकी व्यवहार्यता निम्न, परिपक्वता अवधि दीर्घ और लागत वसूली निम्न से मध्यम के बीच होती है।
  • महापौर का प्रत्यक्ष निर्वाचनः देश में महापौरों के निर्वाचन के लिए प्रत्यक्ष चुनाव एवं उसके पद के सशक्तिकरण के प्रावधान से सम्बंधित एक निजी सदस्य विधेयक संसद में द्वारा प्रस्तुत किया गया था। यदि ऐसा होता है तो यह जवाबदेहिता में वृद्धि करने में सहायक होगा क्योंकि महापौर से सीधे पूछताछ की जा सकेगी तथा साथ ही इससे पारदर्शिता में वृद्धि होगी क्योंकि संचार तथा रिपोर्टिंग प्रत्यक्ष रूप से महापौर द्वारा की जाएगी।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन हेतु अटल मिशन (AMRUT ): वर्ष 2015-17 के दौरान, इस योजना के तहत विभिन्न बुनियादी सुधार किए गए जिसके फलस्वरूपः
  • उपयोगकर्ता शुल्क का बेहतर संग्रहः 14 राज्यों के 104 शहरों में 90% से अधिक उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र किया गया।
  • 21 राज्यों में म्युनिसिपल कैडर की स्थापना।
  • बेहतर सेवा प्रदायगी: 256 शहरों में नागरिक सेवाओं की ऑनलाइन प्रदायगी हेतु पहलें आरंभ की गयी हैं।
  • अन्य: 21 राज्यों ने राज्य वित्त आयोग की स्थापना की है एवं 363 शहरों ने अपनी क्रेडिट रेटिंग को पूरा किया है।

AMRUT के बारे में :

  •  यह पांच वर्षों की अवधि में 500 शहरों और कस्बों को निवास योग्य कुशल शहरी क्षेत्रों में परिवर्तित करने पर केंद्रित है।
  • यह स्मार्ट सिटीज मिशन के क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण के विपरीत एक परियोजना उन्मुख विकास दृष्टिकोण पर आधारित योजना है।
  • इस योजना में केंद्र द्वारा 80% बजटीय सहयोग किया जा रहा है तथा यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है।

इसके लक्ष्य हैं

  • इसमें यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि प्रत्येक घर को जलापूर्ति की सुनिश्चितता वाले नल की उपलब्धता हो और प्रत्येक
    घर में सीवरेज कनेक्शन हो;
  • हरे-भरे एवं बेहतर रखरखाव वाले खुले स्थानों (जैसे पार्को) को विकसित करके शहरों के सुविधात्मक मूल्य में वृद्धि
    करना; और
  • सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करना अथवा गैर मोटर चालित परिवहन (जैसे चलना और साइकिल चलाना) आदि
    के लिए सुविधाओं का निर्माण करना और प्रदूषण को नियंत्रित करना।

निष्कर्षः

भारत में स्थानीय स्वशासन को सशक्त किया जाना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा स्थानीय आवश्यकताअो को पूरा किया जाता है और उत्तरदायी शासन सुनिश्चित होता है। चूंकि शहरी स्थानीय निकायों को अपने निवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संघर्ष करना पड़ता है, अतः शहरी निकायों में स्वशासन स्थापित करने के मौजूदा तरीकों की पुनः जांच की जानी चाहिए।

73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायतों को तीन स्तर प्रदान किए गए हैं, परन्तु इसके विपरीत शहरी क्षेत्रों में शक्ति केवल एक नगरपालिका निकाय में ही केंद्रित होती है (चाहे वह एक नगर निगम हो, नगरपालिका परिषद हो या नगर पंचायत)। ऐसे में जब भारतीय शहर उत्तरोत्तर विशाल होते जा रहे हैं और कुछ तो 10 मिलियन आबादी के स्तर को पार कर चुके हैं, इस संरचना का पुनर्गठन किये जाने की आवश्यकता है।

स्थानीय निकायों के वित्तपोषण में वृद्धि करने हेतु विभिन्न अभिनव उपायों को भी अपनाया जा सकता है जैसे कि:

  • स्थानीय समुदायों द्वारा स्पेशल पर्पज वेहिकल (SPV) का निर्माण किया जा सकता है: यदि अवसंरचना की आवश्यकता हो एवं
    स्थानीय लोग इसके लिए भुगतान करने को तैयार हों तो समुदाय एक SPV बना सकता है। इसका उपयोग अपेक्षित परियोजना के लिए निविदाएं जारी करने तथा वित्त के संग्रहण एवं नियोजन हेतु किया जा सकता है।
  • समय के साथ राजस्व में वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए उचित कर एवं शुल्क दरों का निर्धारण, संग्रह क्षमता में सुधार तथा वित्तपोषण तंत्र का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय निकायों की ऋण पूंजी बाजारों तक पहुंच वित्तपोषण का एक मूल्यवान स्रोत साबित हो सकती है। यह उन्हें योजनाबद्ध बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अवसर प्रदान करेगी। किन्तु इसके लिए स्थानीय निकायों को अपनी सम्पूर्ण प्रशासनिक एवं तकनीकी क्षमता में अत्यधिक सुधार करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें ऋण बॉन्ड, विशेष रूप से दीर्घकालिक बॉन्ड, प्राप्त हो सकें।

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