भारत में न्यायिक प्रणाली में आवश्यक सुधारों का विस्तारपूर्वक वर्णन

प्रश्न: भारत में न्यायिक प्रणाली में आवश्यक सुधारों के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान कीजिए। इस संदर्भ में, एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा स्थापित करने के विचार के महत्व का परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में न्यायिक प्रणाली में आवश्यक सुधारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  • अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service: AIJS) के विचार के उद्गम, इसके महत्व तथा इससे संबंधित आशंकाओं का उल्लेख कीजिए।
  • प्रधानमंत्री एवं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इसका आह्वान करने के आलोक में AIJS के परिचालन की तात्कालिक आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

वर्ष 2017 में दक्ष (DAKSH) नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा कराए गए अध्ययन में यह पाया गया कि भारत में न्याय प्राप्त करने हेतु न्यायालय एवं पुलिस न्यूनतम वरीयता प्राप्त विकल्प हैं, अर्थात लोग न्याय हेतु अनौपचारिक तंत्रों को अधिक वरीयता देते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों का मानना है कि उनके विवादों का निवारण करने वाली न्यायिक व्यवस्था अत्यधिक महँगी, अति जटिल एवं धीमी है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत इस प्रकार की समस्याएं विगत कई दशकों से चिंता का मुख्य विषय बनी हुई हैं।

निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तात्कालिक सुधार करने की आवश्यकता है:

न्यायिक कार्यबल: 

  • न्यायाधीशों की कमी: विधि मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए औसतन केवल 19 न्यायाधीश उपस्थित हैं। इसके अतिरिक्त वर्तमान में न्यायपालिका कुल मिलाकर 6,000 से अधिक न्यायाधीशों की कमी की समस्या का भी सामना कर रही है। इनमें से 5000 न्यायाधीशों की कमी निचले न्यायालयों में ही है।
  • न्यायिक नियुक्तियों के अंतर्गत अपारदर्शिता, अनिश्चितता एवं भाई-भतीजावाद की समस्या विद्यमान है।

न्यायिक कार्यप्रणाली:

  • न्यायिक बैकलॉग: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार भारत में लगभग 3 करोड़ से अधिक मामले लंबित
  • न्यायिक भ्रष्टाचार: मामलों की लंबितता रिश्वत की मांग हेतु अवसरों का सृजन करती है। वस्तुतः न्यायालय के कर्मियों को रिश्वत देकर किसी मामले की सुनवाई को धीमा या तीव्र किया जा सकता है या किसी शिकायत को खारिज करवाया जा सकता है।

न्यायिक अवसंरचना: देश में जिला एवं अन्य निचले न्यायालयों के अतिरिक्त डिजिटल रूप से सक्षम (डिजिटली-एनेबल्ड) न्यायालयों का भी अभाव है।

सरकारी मुकदमों में वृद्धि- न्यायालयों में मौजूदा सभी मुकदमों अथवा अपीलों में 46% हिस्सेदारी राज्य या केंद्र सरकारों द्वारा दायर मुकदमों की है।

वर्ष 2003 में मलिमथ समिति ने आपराधिक न्यायिक व्यवस्था में सुधार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया था।
साक्ष्यों के वैज्ञानिक रूप से एकत्रण हेतु पुलिस कर्मियों में प्रशिक्षण का अभाव होता है। इसके अतिरिक्त पुलिस एवं जेल 
अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में अक्षम होते हैं, जिसके फलस्वरूप मुकदमे की सुनवाई में अत्यधिक विलम्ब होता है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service: AIJS) को न्यायपालिका की समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तावित किया गया है। इसे 1950 के दशक में सर्वप्रथम तत्कालीन विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत किया गया था। संसद ने 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 312 के अंतर्गत एक प्रावधान शामिल किया। इसके अतिरिक्त हाल ही में इस सन्दर्भ में विकल्पों पर विचार किया गया है। इस विचार के तहत अखिल भारतीय परीक्षा के माध्यम से जिला न्यायाधीशों की भर्ती की जायेगी, उसके पश्चात अखिल भारतीय सेवाओं की भांति उन्हें प्रत्येक राज्य में नियुक्त किया जाएगा।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) का महत्व:

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित होगी, अतः इससे न्यायिक व्यवस्था में भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार में कमी आएगी।
  • प्रतिभाशाली नवनियुक्त न्यायाधीश, न्यायपालिका में कुशलता एवं क्षमता सुनिश्चित करेंगे।
  • यह न्यायाधीशों की गुणवत्ता के संदर्भ में सम्पूर्ण भारत में एकरूपता को सुनिश्चित करेगी।
  • न्यायाधीशों की रिक्तियों में कमी आएगी तथा मामलों की लंबितता में भी कटौती होगी।
  • जनसामान्य के न्यायपालिका में विश्वास की पुनर्बहाली होगी।

हालांकि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) के विरुद्ध कुछ तर्क भी दिए गए हैं, यथा:

  • इस सेवा का देश के नौ उच्च न्यायालयों ने विरोध किया है।
  • एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा स्थानीय कानूनों एवं परिपाटियों की अवहेलना कर सकती है।
  • राज्यों द्वारा इसे संघीय ढाँचे के विरुद्ध बताकर इसका विरोध किया जा सकता है।
  • यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विरुद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे कार्यपालिका न्यायिक कैडर को अपने नियंत्रण में कर सकती है।

AIJS निचले न्यायालयों में न्याय की गुणवत्ता एवं गति में सुधार हेतु अत्यावश्यक वृहत्तर सुधारों का भाग है। AIJS को उच्चतम न्यायालय का समर्थन प्राप्त है तथा वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी इसके विचार को अपना समर्थन दिया है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार राज्यों तथा न्यायपालिका की आशंकाओं को भी समझने का प्रयास कर रही है।

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