स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों का वर्णन : भारतीय लोकतंत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियां
प्रश्न: इतिहास ने इस भविष्यवाणी को नकार दिया है की भारत में लोकतंत्र सफल नहीं होगा। इस संदर्भ में, स्वतंत्रता-प्राप्ति के उपरांत भारत में लोकतंत्र की उपलब्धियों और चुनौतियों का आलोचनात्मक आकलन कीजिए।
दृष्टिकोण
- स्वतंत्रता के पश्चात कई लोगों ने भारतीय लोकतंत्र के विफल होने की भविष्यवाणियाँ की थीं।
- इस संदर्भ में एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- भारतीय लोकतंत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर
विभाजन के पश्चात अनेक व्यक्तियों द्वारा भविष्यवाणी की गई थी कि धर्म, जाति, नृजातीयता और भाषा की अत्यधिक विविधता के कारण भारत में लोकतंत्र सफल नहीं होगा। उदाहरणार्थ विंस्टन चर्चिल ने यह कहा था कि भारत तेज़ी से मध्ययुगीन बर्बरता एवं वंचना की अवस्था से ग्रसित हो जायेगा।
हालांकि, ये भविष्यवाणियां लोकतंत्र की निम्नलिखित उपलब्धियों के कारण सत्य सिद्ध नहीं हो पायीं:
- विगत 70 वर्षों में 16 संसदीय चुनावों का आयोजन किया जा चुका है।
- जाति, वर्ग, धर्म एवं शिक्षा-स्तर की सीमाओं से परे जाकर, लोगों ने विभिन्न स्तरों पर चुनावों में भाग लेते हुए अपने मत का प्रयोग किया।
- पूर्व में उपनिवेश रहे कई देशों में लोकतंत्र विफल रहा, जबकि भारत लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सशस्त्र बलों को बाहर रखने में सक्षम रहा है।
- लोकतंत्र ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के माध्यम से एक साथ क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय पहचान को मान्यता प्रदान की है।
- लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं जन-केंद्रित शासन स्थापित किया गया। उदाहरण के लिए संविधान का 73वां और 74वां संवैधानिक संशोधन।
- कार्यपालिका को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है।
- अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण तथा इनके लिए राष्ट्रीय आयोगों (राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) की स्थापना कर इन्हें देश की मुख्यधारा से जोड़ा गया है।
- भारत में न्यायपालिका सदैव स्वतंत्र रही है।
उपर्युक्त उपलब्धियों के बावजूद भारत में लोकतंत्र को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए:
- वंशवादी राजनीति एवं चाटुकारिता अभी भी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं बनी हुई हैं।
- बाहूबल तथा धनबल के उपयोग, राजनीति के अपराधीकरण इत्यादि प्रवृतियों में निरंतर वृद्धि हुई है तथा इन मुद्दों से निपटने हेतु आवश्यक चुनावी सुधारों का भी अभाव है।
- लैंगिक संतुलन स्थापित किए जाने की भी आवश्यकता है। उदाहरणार्थ, 2014 के आम चुनावों में निर्वाचित महिला सांसदों की संख्या लोक सभा की कुल सदस्य संख्या का मात्र 11 प्रतिशत है।
- समाज के प्रभावशाली समूहों को सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में प्राथमिकता मिलने के कारण निर्धन तथा अधिकारहीन समूहों को राजनीतिक अभिव्यक्ति प्राप्त नहीं हो सकी है।
- साथ ही निर्धनता एवं भुखमरी की समस्या में कमी होने के बावजूद ये समस्याएं अभी भी विद्यमान हैं।
- लोकतांत्रिक संस्थानों की क्षमता पर निरंतर प्रश्न उठाए गए हैं। जैसे कि संसद की कार्यप्रणाली में व्याप्त शिथिलताएँ देश के शासन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
वर्तमान समय में, महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा समाज के पिछड़े वर्गों को अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना तथा चुनावों में धनबल एवं बाहूबल की शक्ति को नियंत्रित करने हेतु चुनावी सुधार समय की माँग है।
Read More
- लोकतंत्र में अंतः-दलीय लोकतंत्र की भूमिका का वर्णन : दलीय लोकतंत्र की आवश्यकताओं/गुणों का वर्णन
- भारत जैसे लोकतंत्र में मीडिया के महत्व : भारत में मीडिया से संबंधित समकालीन मुद्दे
- दबाव समूहों के संबंध में परिचय : लोकतंत्र को सहभागी और अनुक्रियाशील बनाने में दबाव समूहों की भूमिका
- वर्ष 1975-77 की समयावधि ने भारत में लोकतंत्र‘
- राष्ट्रवादी आन्दोलन: लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रतायें