राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों की स्थिति की तुलना

प्रश्न: भारतीय संसदीय प्रणाली में राज्यसभा वस्तुतः दसरा सदन होने के स्थान पर एक दूसरे दर्जे का सदन मात्र है। इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। साथ ही,राज्य विधान परिषदों के मुकाबले राज्यसभा की स्थिति की तुलना कीजिए और अंतर बताइए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय संसदीय प्रणाली में राज्यसभा को दूसरा सदन माने जाने के कारण बताइए।
  • राज्यसभा के महत्त्व को सूचीबद्ध कीजिए।
  • राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों की स्थिति की तुलना कीजिए और इनके बीच के अंतर को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

भारतीय संविधान में द्विसदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया है, जिसमें राज्यसभा (RS) में अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों द्वारा भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है और लोकसभा (LS) में प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्य भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

RS को दूसरा सदन माना जाता है, क्योंकि:

  •  इसे विलंब करने वाला सदन माना जाता है क्योंकि यह विधेयक पारित करने की प्रक्रिया को लम्बा बनाता है।
  • धन और वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में इसकी स्थिति लोकसभा के समान नहीं है तथा यह सदन में अविश्वास प्रस्ताव भी नहीं ला सकता है।
  • इसे क्रोनी कैपिटलिस्ट्स, पार्टी के लिए फण्ड जुटाने वालों आदि के लिए स्वर्ग कहकर इसकी आलोचना की जाती है,क्योंकि राज्यसभा के सदस्य अपने प्रतिनिधि राज्य की तुलना में अपने पार्टी के एजेंडे में अधिक रूचि रखते हैं। इसके अतिरिक्त कुलदीप नय्यर वाद (2006) के पश्चात निवास स्थान की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया गया है।
  • RS चुनाव राजनीतिक दलों द्वारा कथित रूप से अवैध तरीकों का प्रयोग करने के लिए कुख्यात हैं।
  • संयुक्त बैठकों में LS अपनी संख्यात्मक क्षमता के कारण RS के मत को परास्त कर देता है। हालाँकि कुछ क्षेत्रों में RS को LS के समान शक्तियां प्राप्त हैं और कुछ क्षेत्रों में तो LS से भी अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो इसे महत्त्वपूर्ण संसदीय संस्था बनाता है।
  • यह राज्यों के हितों की रक्षा कर संघीय संतुलन को बनाए रखता है।
  • लोकसभा में जल्दबाजी में पारित किये गए विधेयकों की RS द्वारा बारीकी से जाँच की जाती है।
  • समाज के प्रतिष्ठित सदस्यों को नामांकन के द्वारा उनका प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाता है, जो अन्यथा चुनावों में सम्मिलित नहीं होते।
  • सामान्य विधेयकों, संविधान संशोधन विधेयकों और अध्यादेश के अनुमोदन में इसे LS के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • RS को दो विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं- राज्य सूची के विषय (अनुच्छेद 249) पर विधि निर्माण और नई अखिल भारतीय सेवाओं (अनुच्छेद 312) के सृजन हेतु यह संसद को अधिकृत करती हैं।

राज्य विधान परिषद (SLC) की तुलना में RS की स्थिति:

  • RS और SLCs क्रमश संसद और राज्य विधान मंडलों के उच्च सदन हैं। हालाँकि RS एक स्थायी संस्था है, जबकि SLCs एक वैकल्पिक संस्था है, जिन्हें समाप्त किया जा सकता है।
  • RS में राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं और यह संघीय संतुलन को बनाए रखता है।
  • SLCs के मामले में संघीय महत्त्व का मुद्दा ही नहीं उठता। SLCs किसी सामान्य विधेयक को अधिकतम चार महीने तक विलंबित रख सकते हैं : ये विलंबकारी सदन के रूप में कार्य करते हैं। सामान्य विधेयक के मामले में RS और LS को समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। RS और SLC दोनों ही धन विधेयक को केवल 14 दिन तक विलंबित रख सकते हैं।
  • अनुच्छेद 299 और 312 के तहत राज्यसभा को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं जो SLCs को उपलब्ध नहीं हैं।

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