स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) : निम्नस्तरीय कार्य-निष्पादन के पीछे उत्तरदायी कारण
प्रश्न: स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) के निम्नस्तरीय कार्य-निष्पादन के पीछे उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए। उनके कार्य निष्पादन को कैसे बेहतर किया जा सकता है?
दृष्टिकोण
- स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) का संक्षिप्त विवरण देते हुए परिचय दीजिए।
- स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) के निम्नस्तरीय कार्य-निष्पादन के पीछे उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए।
- इन परिषदों के प्रदर्शन में सुधार करने हेतु उपाय सुझाइए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर सुधार हेतु आवश्यक पहलों को रेखांकित करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में निवास करने वाले आदिवासियों हेतु स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Council: ADC) का गठन कर स्वशासन का एक अभिनव उपकरण प्रदान किया गया है।
हालांकि, ADCs को विधायी, वित्तीय, न्यायिक और कार्यकारी क्षेत्रों में एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य निष्पादन करने हेतु पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की गई है, परंतु कुछ अंतर्निहित अवरोधों के कारण उनका कार्य-निष्पादन निम्नस्तरीय रहा है।
निम्नस्तरीय कार्य-निष्पादन हेतु उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:
- वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव: ये परिषदें अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर होती हैं। कई बार, स्वीकृत बजट एवं ADCs द्वारा प्राप्त धन के मध्य अंतराल विद्यमान होता है।
- धन का दुरुपयोग: कुछ ADCs द्वारा सरकारी धन का दुरुपयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा कोई अधिकारी मौजूद नहीं होता है जिसे विशिष्ट रूप से ADCs द्वारा प्रारंभ की गई पहलों के निरीक्षण एवं अंकेक्षण हेतु नियुक्त किया गया हो।
- पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व नहीं: ADC एक 30 सदस्यीय परिषद होती है, अत: यह माना जाता है कि यह अपने अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत कई प्रमुख एवं गौण जनजातियों को पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व प्रदान करने में अक्षम होती है। इसके अतिरिक्त, इन परिषदों में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत कम है।
- कार्यात्मक उत्तरदायित्वों का अतिव्यापन: छठी अनुसूची के तहत कुछ निर्दिष्ट विषयों को पूर्ण रूप से जिला एवं क्षेत्रीय परिषदों को हस्तांतरित किया गया है किन्तु इसके बावजूद भी इनमें से कई विषयों को वास्तविक रूप से परिषद को स्थानांतरित नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न स्तरों पर समन्वय का अभाव है क्योंकि जिला परिषदों, क्षेत्रीय परिषदों और राज्य सरकारों के मध्य गतिविधियों के समन्वय हेतु कोई विशेष प्रावधान मौजूद नहीं है।
- समुचित नियोजन का अभाव: चूँकि इन परिषदों की पेशेवर नियोजनकर्ताओं तक पहुँच नहीं होती है, अत: समुचित तकनीकी एवं वित्तीय विचार-विमर्श के बिना ही विकास परियोजनाएँ प्रारंभ कर दी जाती हैं।
परिषद के प्रदर्शन में सुधार के लिए आवश्यक कदम
- संविधान की छठी अनुसूची को और भी अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए ग्राम स्तरीय निकायों का पुनरुत्थान किया जाना चाहिए तथा उन्हें योजनाओं को तैयार करने हेतु सक्षम बनाया जाना चाहिए।
- राज्य वित्त आयोग की अनुशंसाओं के माध्यम से परिषदों के लिए वित्त की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
- राज्य एवं जिला परिषद के मध्य कार्यात्मक उत्तरदायित्वों के अधिव्यापन को समाप्त करने के लिए राज्य और स्थानीय स्तर पर भूमिकाओं का स्पष्ट निर्धारण किया जाना चाहिए।
- नियोजन और परियोजना निर्माण से संबंधित नीति में सुधार करने हेतु परिषदों के नियोजन तंत्र में पेशेवरों को शामिल किया जाना चाहिए।
- निधियों के गबन को रोकने के लिए स्वायत्त प्रणाली के साथ-साथ सामाजिक अंकेक्षण (social audit) तंत्र के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- परिषद की सहायता एवं परामर्श के बिना स्वविवेक के आधार पर कार्य करने संबंधी राज्यपाल की शक्तियों का छठी अनुसूची के अंतर्गत स्पष्ट रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
- संघ सरकार के अधीन कार्यरत एक स्वतंत्र आयोग द्वारा परिषदों के प्रशासन की आवधिक समीक्षा की जानी चाहिए।
उपर्युक्त आलोचना के बावजूद, इन स्वायत्त जिला परिषदों द्वारा जनजातीय लोगों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की गयी है। अत:, समय की मांग है कि परिषदों के अंतर्गत उपर्युक्त सुधारों को क्रियान्वित किया जाए, ताकि छठी अनुसूची के अधिदेश को अक्षरशः कार्यान्वित किया जा सके।
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