स्वयं सहायता समूह (SHG) : महिलाओं के सशक्तिकरण में भूमिका
प्रश्न: उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि स्वयं सहायता समूह (SHGs) भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में किस प्रकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। साथ ही, SHGs को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा आरम्भ किए गए पहलों का भी उल्लेख कीजिए।
दृष्टिकोण
- स्वयं सहायता समूह (SHG) को परिभाषित कीजिए और उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि SHGs भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में किस प्रकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।
- SHGs को प्रोत्साहित करने हेतु केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर सरकारी पहलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
SHGS स्व-शासित, समूह द्वारा नियंत्रित तथा समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के अनौपचारिक समूहों के ऐसे स्वैच्छिक संगठन होते हैं जिनमें साझा उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना निहित होती है। इन्होंने भारत में (विशेषकर ग्रामीण भारत में) महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है:
- SHGs ने भारत में लगभग 46 मिलियन ग्रामीण गरीब महिलाओं को संगठित किया है। साथ ही जिन ग्रामीण महिलाओं का बैंक में खाता नहीं है उनके लिए इन्होंने वित्तीय मध्यस्थता समाधान भी प्रदान किये हैं।
- SHGs महिलाओं के अधिकारों और ऋण तक पहुंच के लिए सामूहिक सौदेबाजी की क्षमता के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।
- SHGs महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को आवश्यक ज्ञान, वित्त, शक्ति और अवसर प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, इला भट्ट द्वारा स्थापित SEWA (स्वनियोजित महिला संघ), 1972।
- ये महिलाओं को अपने समुदाय का मुखर सदस्य बनने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। हिमालय क्षेत्र में आजीविका सुधार परियोजना के अनुसार इस क्षेत्र में महिला SHGs की सदस्य 669 में से 170 स्थानीय सरकारों की प्रमुख निर्वाचित हुई हैं।
- SHGs महिलाओं को मातृ, नवजात शिशु और शिशु स्वास्थ्य देखभाल के विषय में भी शिक्षित करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में किये गये एक अध्ययन के अनुसार SHGS सदस्यों के मध्य नवजात शिशु देखभाल में 24 प्रतिशत और अनन्य रूप से स्तनपान कराने के मामलों में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- SHGs निधि, संसाधन और तकनीकी सहायता के वितरण के माध्यम से सामुदायिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं।
- SHGs उन पिछड़े गांवों का कायाकल्प कर रहे हैं जिनमें स्थित समुदायों में कुपोषण और गरीबी की समस्या विद्यमान है। उदाहरण के लिए, प्रोफेशनल असिस्टेंट फॉर डेवलपमेंट एक्शन (PRADAN) और फोर्ड फाउंडेशन द्वारा समर्थित SHGs ने झारखंड के ग्रामीण अंचल में स्थित तेलिया गांव का कायाकल्प किया है।
समूह, गांव और क्लस्टर स्तर पर सामुदायिक संस्थानों की त्रि-स्तरीय संरचना के माध्यम से SHGs को सरकार ने केन्द्रीय और राज्य सरकार, दोनों की योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित किया है। केन्द्रीय योजनाओं में दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और राज्य सरकारों की पहलों में केरल में कुडुम्बश्री, बिहार में जीविका तथा समर्पित स्वायत्त संगठनों अर्थात् राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों या SRLMS के माध्यम से SHGs को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।
अन्य पहलों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा SARAS नामक ब्रांड के तहत SHGs की प्रदर्शनियों के व्यवस्थापन हेतु सहयोग प्रदान किया जा रहा है।
- नाबार्ड द्वारा SHGs को प्रोत्साहित करने हेतु अनुदान समर्थन तथा SHGs के प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण हेतु अनुदान सहायता प्रदान की जा रही है। देश के 150 पिछड़े और वामपंथी अतिवाद (LWE) से प्रभावित जिलों में नाबार्ड द्वारा महिला स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने की एक योजना चलाई जा रही है।
- ई-शक्ति नाबार्ड की एक पायलट परियोजना है जो SHGs के डिजिटलीकरण से संबंधित है।
- सरकार ने SHGs को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक के रूप में शामिल किया है ताकि SHGs के लिए बैंकिंग सेवाओं को निर्देशित किया जा सके और बढ़ावा दिया जा सके।
कैफे कुडुम्बश्री (केरल में महिलाओं के स्वामित्व वाली और महिलाओं द्वार संचालित कैंटीन की एक श्रृंखला) जैसे उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि सामाजिक आंदोलन के साधन के रूप में SHGs महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं और भविष्य में भारत में ये विकास इंजन के रूप में कार्य करेंगे।
Read More