स्टार्ट-अप पारितंत्र की चुनौतियों ,समाधान और सुझाव
प्रश्न: विगत वर्षों में भारत में स्टार्ट-अप की संख्या में वृद्धि के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए। वर्तमान स्टार्ट-अप पारितंत्र की चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए, उनका समाधान करने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
दृष्टिकोण
- विगत वर्षों में, भारत में स्टार्ट-अप्स की संख्या में वृद्धि हेतु उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए एवं इनका वर्णन कीजिए।
- भारत में स्टार्ट-अप पारितंत्र के समक्ष व्याप्त चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
- निष्कर्ष में इन चुनौतियों के समाधान हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
भारत क्रमिक रूप से एक स्टार्ट-अप हब बनता जा रहा है। वर्ष 2018 में 1,200 से अधिक स्टार्ट-अप्स स्थापित हुए। इसके साथ ही देश में स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या लगभग 7,200 हो गई है।
भारत में स्टार्ट-अप्स की संख्या में चरघातांकी वृद्धि हेतु उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं:
- नवाचारी विचारों से युक्त समर्थ उद्यमी: भारत के शिक्षित युवा सम्पूर्ण विश्व में घटित हो रहे विकास से अवगत हैं तथा एक उच्च जोखिम एवं उच्च प्रतिफल से युक्त व्यवसाय मॉडल में उद्यम करने के इच्छुक हैं।
- निधियन के विभिन्न स्रोत: एंजेल निवेशक, क्राउड फंडिंग अभियान तथा स्थापित उद्यम पूँजी फर्मों के साथ-साथ प्रारम्भिक स्तर के निवेशक नवीन विचारों का स्वागत करते हुए निवेश करने की इच्छा रखते हैं।
- वैश्विक स्टार्ट-अप परिवेश का प्रभाव: लगभग 400 से अधिक स्टार्ट-अप्स का वैश्विक स्तर पर विस्तार हुआ है, जिससे भारत में भी एक सकारात्मक स्टार्ट-अप पारितंत्र का सृजन हुआ है।
- निम्न लागत वाली प्रौद्योगिकी तक पहुंच: सॉफ्टवेयर विकास या हार्डवेयर इंटिग्रेटेशन को मूर्त रूप देने हेतु तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों के साथ-साथ बहुतायत उपकरण एवं एप्लीकेशन उपलब्ध हैं।
- इनोवेशन पार्कों और IITS जैसे शैक्षणिक संस्थानों में स्टार्ट-अप इन्क्यूबेटर स्थापित किए गए हैं।
- नैसकॉम (NASSCOM) जैसे संगठनों ने वार्षिक रूप से स्टार्ट-अप्स की एक निश्चित संख्या को सहायता प्रदान करने हेतु लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
- मेक इन इंडिया जैसी सरकारी पहलों ने भी स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहन दिया है।
मौजूदा स्टार्ट-अप पारितंत्र के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ विद्यमान हैं:
- प्रारम्भिक चरण (सीड स्टेज) में कंपनियों के निधियन में कमी (वर्ष 2017 के 191 मिलियन डॉलर से घटकर वर्ष 2018 में 151 मिलियन डॉलर) की स्थिति नवाचार को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
- अधिकांश स्टार्ट-अप्स बाजार के आकार, राजस्व और लाभ संबंधी लक्ष्यों पर विचार करने में विफल रहे हैं। इस प्रकार, वे दीर्घकाल तक संचालित नहीं रहते।
- अवसंरचना, सरकारी विनियमन और वृद्धि के विभिन्न चरणों में वित्त की उपलब्धता स्टार्ट-अप्स हेतु चुनौतियों के रूप में विद्यमान है।
- उच्च गुणवत्तायुक्त प्रतिभा को नियोजित करना एवं उसे बनाए रखना विशेष रूप से उत्पादन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है।
- जैसे ही परिचालन में वृद्धि होती है और राजस्व घटने लगते हैं तो ऐसे में व्ययों में वृद्धि होती जाती है, जिसके परिणामस्वरूप स्टार्ट-अप्स निधियन संबंधी पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करने हेतु बाध्य हो जाते हैं तथा व्यवसाय के मूल घटकों से ध्यान हट जाता है।
- वर्तमान समय में भी, भारत में श्रम और बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित कानून तथा कंपनी के पंजीकरण से संबद्ध विनियमन कठोर हैं।
भारत में स्टार्ट-अप पारितंत्र में मौजूद बाधाओं के निराकरण हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- नगण्य उद्यम, अल्प व्यवसाय तथा अल्प बाजार अनुभव रखने वाले वैसे स्टार्ट-अप्स को मेंटरशिप प्रदान करना जिनके पास उन्नत विचार हैं।
- जागरूकता सृजन करना तथा ई-बिज़ (e-Biz) पोर्टल, मुद्रा (MUDRA) योजना, सेतु (SETU) फण्ड इत्यादि जैसी सरकारी पहलों का प्रभावी क्रियान्वयन।
- बड़े व्यावसायिक घरानों द्वारा निवेश सहायता को प्रोत्साहित करना।
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