भूकंप : पूर्वानुमान इसके विध्वंसक प्रभाव

प्रश्न: आल्प्स क्षेत्र में आने वाले भूकंपों की तुलना में हिमालय में आने वाले भूकम्पों के अधिक तीव्र होने और बारंबार आने के पीछे उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए। वैज्ञानिक उत्तर भारत में उच्च तीव्रता वाले भूकंप आने की भविष्यवाणी क्यों कर रहे हैं? साथ ही, भूकंप पूर्वानुमान संबंधी कुछ प्रमुख तकनीकों का सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आल्प्स क्षेत्र में आने वाले भूकंपों की तुलना में हिमालय में आने वाले भूकम्पों के अधिक तीव्र होने और बारंबार आने के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।
  • वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर भारत में उच्च तीव्रता वाले भूकंप आने की भविष्यवाणी के पीछे निहित कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • कुछ महत्वपूर्ण भूकंप पूर्वानुमान तकनीकों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

‘भूकंप’ भूपर्पटीय प्लेटों के संचलन और स्थानांतरण के दौरान निर्मुक्त ऊर्जा का धरातल पर प्रकटीकरण है। निर्मुक्त ऊर्जा की मात्रा भूकंप की गहराई और प्लेटों के टकराने की तीव्रता पर निर्भर करती है। प्लेटों के निरंतर और तीव्र संचलन वाले क्षेत्रों में प्रायः अधिक भूकंप आते हैं।

आल्प्स की तुलना में हिमालय अपेक्षाकृत नवीन वलित पर्वत हैं। साथ ही यूरेशियन प्लेट की ओर भारतीय प्लेट का संचलन अपेक्षाकृत तीव्र गति से हो रहा है। चूंकि इस क्षेत्र की चट्टानें अधिक अस्थिर हैं, अतः ये भंगुर हैं और प्रायः शीघ्र टूट जाती हैं। यही कारण है कि आल्प्स की तुलना में हिमालय क्षेत्र में भूकंप अधिक तीव्र और बारंबार आते हैं। आल्प्स क्षेत्र में प्लेटें मंद गति से अभिसरित होती हैं जिसके कारण वहाँ कम भूकंप आते हैं।

उत्तर भारत में उच्च तीव्रता वाले भूकंप की भविष्यवाणी के निहित कारण

मध्य हिमालयी क्षेत्र (भारत और पूर्वी नेपाल के कुछ भागों में विस्तृत) पिछले 600 से 700 वर्षों से भूकंपीय गतिविधियों की दृष्टि से शांत रहा है। यह इंगित करता है कि इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर तनाव संचित हुआ होगा। अतः इस क्षेत्र में मौजूद व्यापक स्तर के तनाव के कारण मध्य हिमालय के अतिव्यापी भागों में भविष्य में कभी भी 8.5 या उससे अधिक की तीव्रता का भूकंप आने की संभावना व्याप्त है।

भूकंप पूर्वानुमान इसके विध्वंसक प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • अवलोकन आधारित: अधीरता और व्याकुलता जैसे पशु का असामान्य व्यवहार। हालांकि भूकंप के साथ उनका संबंध अभी तक स्थापित नहीं किया जा सका है।
  • हाइड्रोकेमिकल पूर्वसूचना: भूकंप आने से कुछ दिन पूर्व खनिजों की घुलित सांद्रता में परिवर्तन हो जाता है। रेडॉन गैस का उत्सर्जन भी देखा गया है।
  • भूकंपीय अंतराल: वैज्ञानिकों द्वारा उन भूकंप संभावित क्षेत्रों के लिए जहां विगत कुछ समय से ऐसी घटनाएं घटित नहीं हुई हैं, अनुमानित तनाव के संचय के आधार पर भूकंप का पूर्वानुमान किया जाता है।
  • सांख्यिकीय मॉडल: भूकंप की पारम्परिक सांख्यिकी और संख्यात्मक मॉडल का एक संयोजन जैसे सिस्मो-थर्मो-मैकेनिकल (STM) मॉडलिंग, जो विवर्तनिक प्लेटों के संचलन और टकराव के ढंग को सिमुलेट (आभासी प्रतिरूप) करती है।
  • भौतिकी आधारित मॉडल: हाल ही में कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध के अंतर्गत सुपरकंप्यूटर पर कैलिफोर्निया के लगभग 500,000 वर्षों के भूकंपों को सिमुलेट किया गया। यह शोध सांख्यिकीय मॉडल के आधार पर जोखिमपूर्ण अनुमानों का आकलन करने में सक्षम था।
  • यूनिफ़ॉर्म कैलिफोर्निया अर्थक्वेक रप्चर फोरकॉस्ट (UCERF3): यह दीर्घ और अल्प अवधि में संभावित रूप से भूकंप से होने वाली क्षति और प्रचंडता का आधिकारिक आकलन प्रदान करता है।
  • तकनीकी हस्तक्षेप: GSI द्वारा प्रकाशित स्थानीय भूगर्भिक और संरचनात्मक मानचित्र, गूगल अर्थ, ISRO के कार्टो-सैट 1 द्वारा मानचित्रण आदि अनुसंधान और विकास में सहयोग प्रदान करते हैं।
  • पैलिओसिस्मोलॉजी: सक्रिय भ्रंशों का भूगर्भिक निरीक्षण।
  • पारंपरिक पूर्वानुमान की अन्य विधियों में असामान्य पशु व्यवहार, भूमिगत जल में परिवर्तन, मृदा में रेडॉन गैस के स्तर में वृद्धि आदि सम्मिलित हैं।

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