दक्षिण एशिया के हॉटस्पॉट(South Asia’s Hotspots)
विश्व बैंक द्वारा “दक्षिण एशिया के हॉटस्पॉट: तापमान और वर्षण में परिवर्तन का जीवन स्तर पर प्रभाव” नामक अपनी रिपोर्ट जारी की गयी है।
रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्य
- इसमें यह अनुमान लगाया गया है कि तापमान तथा मानसून प्रतिरूप में परिवर्तन दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद
(GDP) तथा जीवन स्तर को किस प्रकार प्रभावित करेंगे। - यह रिपोर्ट उन राज्यों/जिलों की “हॉटस्पॉट” के रूप में पहचान करती है, जहां इन परिवर्तनों का जीवन स्तर पर एक उल्लेखनीय प्रभाव होगा।
- इसमें अध्ययन के लिए दक्षिण एशिया के छह देशों- नेपाल, अफगानिस्तान, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं श्रीलंका का अवलोकन किया गया है।
- यह रिपोर्ट दो परिदृश्यों पर प्रकाश डालती हैः जलवायु-संवेदनशील परिदृश्य तथा कार्बन-गहन परिदृश्य। दोनों ही आने वाले दशकों में पूरे क्षेत्र में तापमान वृद्धि को प्रदर्शित करते हैं। कार्बन-गहन परिदृश्य में अधिक तापमान वृद्धि का अनुमान है।
- यह स्थानीय सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं तथा जलवायु से संबंधित जोखिमों के अनुसार सामाजिक कल्याण कार्यक्रम निर्मित करने तथा ‘हॉटस्पॉट’ में निवास करने वाले लोगों (जलवायु परिवर्तन द्वारा परोक्ष रूप से पीड़ित) को लक्षित करते हुए रणनीतियों
व नीतियों को पुनर्निर्धारित करने हेतु उपयोगी होगी।
जलवायु-संवेदनशील परिदृश्य (Climate-sensitive scenario)
यह एक ऐसी भविष्य को प्रदर्शित करता है जिसमें ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन तथा पूर्व-औद्योगिक स्तर के सापेक्ष वैश्विक वार्षिक औसत तापमान को 21वीं सदी के अंत तक 2.4 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने हेतु कुछ सामूहिक कार्यवाई की जाती है।
कार्बन-गहन परिदृश्य (Carbon-intensive scenario)
यह उस भविष्य को दर्शाता है जिसमें उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई कार्यवाहियाँ नहीं की जाती हैं तथा जहां पूर्व-औद्योगिक | स्तर के सापेक्ष वैश्विक वार्षिक औसत तापमान में 21वीं सदी के अंत तक 4.3 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो जाएगी।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
संपूर्ण क्षेत्र से संबंधित निष्कर्ष
- दक्षिण एशिया की लगभग आधी जनसंख्या उन क्षेत्रों में निवास करती है, जिनके 2050 तक कार्बन-गहन परिदृश्य के अंतर्गत मध्यम से गंभीर हॉटस्पॉट के रूप में परिवर्तित होने की संभावना है।
- यह पाया गया है कि वर्तमान में शीत व शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में मामूली सुधार हो सकता है। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान व श्रीलंका इन परिवर्तनों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे, जबकि अफगानिस्तान तथा नेपाल को लाभ प्राप्त होगा क्योंकि वे अपेक्षाकृत शीत क्षेत्र हैं।
- रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकांश अपेक्षित हॉटस्पॉट वर्तमान में निम्न जीवन स्तर, निम्नस्तरीय सड़क कनेक्टिविटी, बाजारों तक
पहुंच की असमान सुविधा तथा विकास संबंधी अन्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। - रिपोर्ट में सम्मिलित अधिकांश हॉटस्पॉट आंतरिक क्षेत्रों में अवस्थित हैं अर्थात 2050 के पश्चात् आंतरिक क्षेत्रों में तापन में अधिक
वृद्धि हो जाएगी तथा तटीय क्षेत्रों में तापमान में कमी होगी। - औसत तापमान के एक सीमा से अधिक हो जाने पर इस क्षेत्र में औसत घरेलू खपत में कमी आएगी। क्षेत्र की अधिकांश जनसंख्या उन
क्षेत्रों में निवास कर रही है, जहां तापमान पहले से ही निर्धारित सीमा से अधिक है।
भारत के संबंध में निष्कर्ष
- वर्तमान में भारत में लगभग 600 मिलियन लोग ऐसे स्थानों पर निवास कर रहें हैं, जो 2050 तक कार्बन-गहन परिदृश्य के अंतर्गत
मध्यम या गंभीर हॉटस्पॉट बन जाएंगे। - यदि पर्याप्त उपाय नहीं किए गए, तो 2050 तक भारत के औसत तापमान में 1.5-3 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होगी। वहीं यदि पेरिस समझौते के अनुरूप निवारक उपाय अपनाए जाते हैं तो इसमें 2050 तक 1-2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
- जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और मानसूनी वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन के कारण भारत को सकल घरेलू उत्पाद में 2.8% की हानि हो सकती है तथा 2050 तक देश की लगभग आधी जनसंख्या का जीवन स्तर भी प्रभावित हो सकता है।
- भारत के मध्य, उत्तरी व उत्तर-पश्चिमी भागों के राज्य सर्वाधिक सुभेद्य माने गए हैं। छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश, भारत में दो शीर्ष ‘हॉटस्पॉट’ राज्य हैं। इन राज्यों में जीवन स्तर में 9% से अधिक की गिरावट का अनुमान किया गया है। इसके बाद राजस्थान, उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र हैं।
- 10 सर्वाधिक प्रभावित हॉटस्पॉट जिलों में विदर्भ (महाराष्ट्र) से सात तथा छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश से तीन शामिल हैं।
- जलवायु शमन संबंधी महत्त्वपूर्ण रणनीतियों की अनुपस्थिति में, 2050 तक लगभग 148 मिलियन भारतीय इन गंभीर हॉटस्पॉट में निवास कर रहे होंगे।
अनुशंसाएं
- सभी हॉटस्पॉट के लिए कार्यवाहियों का कोई एक समुच्चय कार्य नहीं करेगा। प्रभावी शमन के लिए स्थानीय परिस्थितियों के आधार
पर विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार लक्षित नीतियों एवं कार्यवाहियों की आवश्यकता है। सर्वाधिक सुभेद्य समुदायों व समूहों के लिए संसाधनों को लक्षित करना प्राथमिकता होनी चाहिए। - कौशल, स्वास्थ्य, ज्ञान, बेहतर आधारभूत संरचना एवं एक विविधिकृत अर्थव्यवस्था में निवेश, घरेलू, जिला एवं राष्ट्रीय स्तर पर
जलवायु हॉटस्पॉट को कम करेगा। - नई प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना जैसे सूखा-प्रतिरोधी फसलों तथा विस्तारित सिंचाई प्रणाली सहित
अन्य तकनीकी उन्नयन। इससे दीर्घावधि में कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील बनाया जा सकता है। - सरकारों को नए कौशल के अनुकूलन हेतु व्यक्तिगत कार्यवाईयों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे मौसम पूर्वानुमान और जलवायु जोखिम आकलन प्रदान करने वाली नीतियों के द्वारा प्रत्यास्थता का निर्माण किया जा सकेगा।
- भारत के लिए विशिष्ट उपायों में शिक्षा प्राप्ति में सुधार, जल पर दबाव को कम करना और गैर-कृषि रोजगार के अवसरों को बढ़ावा
देने के लिए लक्षित हस्तक्षेप एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
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