सामाजिक लेखा परीक्षा कानून (Social Audit Law)
मेघालय, सामाजिक लेखा परीक्षा कानून- ‘मेघालय सामुदायिक भागीदारी एवं लोक सेवा सामाजिक लेखा परीक्षा, अधिनियम 2017 (‘The Meghalaya Community Participation and Public Services Social Audit Act, 2017’) को लागू करने वाला भारत का प्रथम राज्य बन गया है।
अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएँ
- एक सोशल ऑडिट फैसिलिटेटर (social audit facilitator) की नियुक्ति की जाएगी जो प्रत्यक्ष रूप से जनता से ऑडिट करके ऑडिट के परिणामों को ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत करेगा। तत्पश्चात ग्राम सभा के इनपुट को शामिल करके उसे लेखा परीक्षक के पास भेजा जाएगा।
- सरकारी कार्यक्रमों की उनके कार्यान्वयन के दौरान समीक्षा हेतु एक पैनल के रूप में सोशल ऑडिट काउंसिल (SAC) की स्थापना
की गई है। - इस अधिनियम के अंतर्गत ऑडिट किये जाने वाले कार्यक्रमों, योजनाओं और परियोजनाओं की एक सूची सम्मिलित की गयी है।
सोशल ऑडिट काउंसिल (SAC) के प्रमुख कार्य
- एक व्यवस्थित लेखा परीक्षा से संबंधित नियमों का निर्धारण।
- इस अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित सभी विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देना।
समय-समय पर निगरानी एवं शिकायत निवारण तंत्र की समीक्षा करना और आवश्यक सुधारों की सिफारिश करना। - कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन की स्थिति पर विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत होने वाली वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना।
- इस अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी।
इस कदम का महत्व
- इसके माध्यम से किसी योजना की दिशा और कार्यवाही में सरलता और तीव्रता से सुधार किया जा सकेगा क्योंकि इसे योजना के
साथ संचालित किया जाएगा। - अब तक, सोशल ऑडिट नागरिक समाज संगठनों की पहल के आधार पर किये जाते थे, जिन्हें आधिकारिक स्वीकृति प्राप्त नहीं थी।
- यह अधिनियम विकास की योजनाओं और अन्य विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक
वैधानिक ढाँचा प्रदान करता है। - यह सोशल ऑडिट कानून के निर्माण हेतु अन्य राज्यों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
सामजिक लेखा परीक्षा क्या है?
- सामजिक लेखा परीक्षा सामान्यतः सरकारी संगठनों (विशेषकर जो विकास लक्ष्यों से संबंधित हैं) की किसी भी या सभी
गतिविधियों द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति को मापने में हितधारकों की भागीदारी को संदर्भित करती है। - यह समाज में लोगों के परिप्रेक्ष्य से किसी गतिविधि को समझने में सहायता करती है। लोगों के लिए ही संस्थागत/प्रशासनिक | प्रणाली तैयार की जाती है अतः इस फीडबैक इन प्रणालियों के सुधार में सहायक हो सकता है।
- इस प्रक्रिया का उद्देश्य सामाजिक भागीदारी, पारदर्शिता और सूचना के संप्रेषण का एक माध्यम प्रदान करना है। यह निर्णय निर्माताओं, प्रतिनिधियों और प्रबंधकों की जवाबदेही में वृद्धि करती है। यह एक सतत प्रक्रिया हो सकती है जो इसे लक्षित
गतिविधि/कार्यक्रम के सभी चरणों को कवर करती हो।
सामाजिक लेखा परीक्षा का महत्व
- 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा पर PRIs , ULBs को केंद्रीय निधि के अधिक हस्तांतरण के पश्चात् सामाजिक लेखा परीक्षा अत्यंत
महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि इस प्रकार की संस्थाओं पर CAG का लेखापरीक्षा क्षेत्राधिकार अस्पष्ट है। - इनपुट, प्रक्रियाओं, वित्तीय और भौतिक रिपोर्टिग, अनुपालन, भौतिक सत्यापन, दुरुपयोग, धोखाधड़ी एवं दुर्विनियोग के विरुद्ध सुरक्षा तथा संसाधनों और संपत्तियों के उपयोग के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रदान करने हेतु इस पद्धति की उपयोगिता सुस्थापित है।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना: लोग प्रत्यक्ष रूप से अपने क्षेत्र में सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का निरीक्षण करते हैं।
जिससे प्रक्रिया सहभागितापूर्ण बनती है। दीर्घकाल में यह लोगों को सशक्त और विकास की प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाता है। - इसमें विकास पहलों के लिए सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा प्रयुक्त वित्तीय और गैर-वित्तीय, दोनों प्रकार के साधनों का आलोचनात्मक
मूल्यांकन सम्मिलित है।
सामाजिक लेखा परीक्षा की सीमाएं
- सामाजिक लेखा परीक्षा का दायरा गहन परंतु अत्यधिक स्थानीयकृत है और वित्तीय, अनुपालन एवं निष्पादन लेखा परीक्षाओं में
लेखा-परीक्षा से संबंधित एक विस्तृत श्रृंखला में से केवल कुछ चयनित पहलुओं को ही कवर करता है। - सामाजिक लेखापरीक्षा के माध्यम से निगरानी सीमित अनुवर्ती कार्रवाई के साथ अनौपचारिक और अप्रसंस्कृत होती है।
- जमीनी स्तर पर सामाजिक लेखापरीक्षा का संस्थानीकरण अपर्याप्त रहा है और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए को इसको संस्थागत बनाने में पर्याप्त प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे स्थापित व्यवस्था की ओर से अत्यधिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है।
- डेटा तक अपर्याप्त पहुंच और विशेषज्ञता की कमी अन्य बाधाएं हैं।
- मीडिया द्वारा सामाजिक लेखा परीक्षा पर विशेष ध्यान न दिया जाना और जांच-पड़ताल कम किया जाना।
- जहाँ MNREGA के लिए औपचारिक सामाजिक लेखा परीक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई गई है, वहीं PDS, NRHM जैसे अन्य
कार्यक्रमों में जमीनी स्तर की निगरानी के लिए भिन्न-भिन्न व्यवस्थाएं विद्यमान हैं। इससे सामाजिक लेखा परीक्षा की उपयोगिता
सीमित होती है।
अनुशंसाएँ
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने निम्नलिखित अनुशंसाएं की हैं –
- सभी कार्यक्रमों के लिए अनिवार्य सामाजिक लेखापरीक्षा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
- सहयोग और समन्वय के औपचारिक फ्रेमवर्क: सभी योजनाओं और नागरिक केंद्रित कार्यक्रमों के संचालनात्मक दिशा-निर्देशों में | सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र का प्रावधान किया जाना चाहिए।
- संगठनों को लोगों के अधिक अनुकूल बनाने हेतु प्रक्रियाओं में आवश्यक परिवर्तनों की अनुशंसा करने के लिए पब्लिक इंटरफ़ेस
के क्षेत्रों की जांच हेतु एक सामाजिक लेखा परीक्षा पैनल का गठन किया जाना चाहिए।
- सामाजिक लेखा परीक्षा CAG की लेखा परीक्षा का पूरक है और इसलिए सभी सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों की लेखा परीक्षा के लिए इसे हमारी मुख्यधारा की प्रक्रियाओं में शामिल किया जाना चाहिए।
- आंध्र प्रदेश और राजस्थान में सामाजिक लेखापरीक्षा के लिए अलग निदेशालयों की स्थापना में सिविल सोसाइटी समूहों और ग्राम
सभा द्वारा की गई प्रगति से सीख लेते हुए अन्य राज्य भी ऐसे उपाय लागू कर सकते हैं। - सभी सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के लिए ग्रामीण स्तर पर सामाजिक लेखापरीक्षा में एकरूपता लायी जानी चाहिए ताकि
समुदायिक सहभागिता की व्यवस्था बेहतर रूप से संस्थागत हो सके। - ग्राम सभा की शिक्षा और जागरूकता की दिशा में पहल की जानी चाहिए जिससे वे अपने अधिकारों को बेहतर तरीके से समझने में सक्षम हो सकें।