स्किल इंडिया मिशन : भारत में कार्यबल को कुशल बनाने के महत्व

प्रश्न: भारत में बदलती आर्थिक और जनसांख्यिकीय संरचना के आलोक में कौशल सृजन के महत्व का मूल्यांकन कीजिए। इस संबंध में, स्किल इंडिया मिशन अपने अधिदेश में कितना सफल रहा है।

दृष्टिकोण

  • भारत में कार्यबल को कुशल बनाने के महत्व की विवेचना कीजिए।
  • स्किल इंडिया मिशन के अधिदेश का उल्लेख कीजिए और इस बात की विवेचना कीजिए कि यह अपने अधिदेश को प्राप्त करने में कितना सफल रहा है।
  • आगे की राह सुझाइए।

उत्तर

बेहतर उत्पादकता और आर्थिक विकास के लिए श्रम की प्रभावकारिता और गुणवत्ता में वृद्धि करके लोगों को सशक्त बनाने हेतु कौशल विकास एक शक्तिशाली साधन है।

भारत में कार्यबल को कुशल बनाने का महत्व:

  • जनसांख्यिकीय लाभांश: वर्तमान में भारत की आधी से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। इस प्रकार, भारत जनसांख्यिकीय लाभांश की दृष्टि से लाभपूर्ण स्थिति में है।
  • कौशल की कमी: दक्षिण कोरिया में 96% और जापान में 80% की तुलना में भारत का 5% से कम कार्यबल ही औपचारिक रूप से कुशल है। इसके अतिरिक्त, 2013-2014 की अवधि के अनुमान के अनुसार भारत की वार्षिक स्किलिंग की क्षमता (लगभग 7 मिलियन) वार्षिक रूप से बाजार में प्रवेश करने वाले कर्मचारियों की तुलना में काफी कम है।
  • नए प्रवेशकर्ताओं को गुणवत्तापूर्ण रोजगार: यह अनुमान लगाया गया है कि 2022 तक भारतीय श्रम बाजार में लगभग 104 मिलियन नए प्रवेशी होंगे। इसके अतिरिक्त, युवाओं में बेरोजगारी की निरंतर बढ़ रही दर (जो वर्तमान में लगभग 10.1% तक है) इस मुद्दे को और अधिक चिंतनीय बना देती है।
  • अंतराल को पाटना : भारत का कार्यबल तैयारी (readiness) की दृष्टि से विश्व के सबसे कम प्रशिक्षित कार्यबलों की श्रेणी में विद्यमान है और मौजूदा प्रशिक्षण अवसंरचना का एक बड़ा भाग उद्योग की आवश्यकताओं के लिए अप्रासंगिक है। अधिकांश भारतीय विश्वविद्यालय अध्ययन की दृष्टि से योग्य स्नातक तो दे रहे हैं लेकिन रोजगारपरकता (employability) में ये स्नातक कई प्रकार से अक्षम सिद्ध होते हैं। इसलिए कक्षा शिक्षण और व्यावहारिक प्रशिक्षण का एक उत्कृष्ट मिश्रण इस अंतर को पाटने में मदद कर सकता है।

इस प्रकार, भारत को रोजगार योग्य कौशल और ज्ञान प्रदान करते हुए अपने कार्य बल के विकास को संभव बनाना है जो प्रभावी रूप से इसकी वृद्धि में योगदान कर सके और वैश्विक कार्यबल के अंतराल को पाट सके।

स्किल इंडिया मिशन और उसका विश्लेषण:

2022 तक 40 करोड़ से अधिक भारतीयों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 2015 में स्किल इंडिया मिशन आरंभ किया गया था। इसमें “राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन”, “कौशल विकास और उद्यमिता के लिए राष्ट्रीय नीति, 2015”, “प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, “कौशल ऋण योजना” आदि जैसी विभिन्न पहलें सम्मिलित हैं।  हालाँकि, मिशन के कार्यान्वयन और परिणामों से संबंधित कई समस्याएं विद्यमान रही हैं। इनमें सम्मिलित हैं:

  • कई प्रयासों के बाद भी, भारत कुल कार्यबल के 5% अर्थात लगभग 2.5 करोड़ लोगों को ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित कर पाया है। इसके अतिरिक्त, सूचना के अधिकार संबंधी एक प्रश्न से पता चला कि 2018 में स्किल इंडिया मिशन में भागीदारी करने वाले प्रत्येक 10 लोगों में से केवल 3 को वास्तव में रोजगार मिला।
  • शारदा प्रसाद समिति की रिपोर्ट ने ‘अपर्याप्त उद्योग इंटरफ़ेस’ को भारत में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली के संदर्भ में एक बाधक के रूप में पाया।
  • भारत में कौशल-प्रमाणन का कोई मानकीकरण नहीं है, जिससे नियोक्ताओं के बीच प्रशिक्षण की गुणवत्ता और अखंडता के प्रति विश्वास की कमी उत्पन्न होती है।
  • वर्तमान में, प्रशिक्षण भागीदारों को छात्रों को नौकरियों में नियोजित करने के लक्ष्य दिए जाते हैं। हालाँकि, इससे प्रशिक्षुओं को ऐसे पदों पर और ऐसे नियोक्ताओं के पास नियोजित करने को बढ़ावा मिलता है जो उनके हितों या कौशल से मेल नहीं खाते हैं।
  • एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि कौशल प्रशिक्षण के बाद, पुरुष प्रतिभागियों को महिलाओं की तुलना में नौकरी का प्रस्ताव प्राप्त होने की अधिक संभावना थी, जो अंतर्निहित लैंगिक पूर्वाग्रह को प्रकट करता है।
  • कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की अभिकल्पना और प्रतिभागियों की इच्छाओं, आकांक्षाओं और क्षमताओं के बीच परस्पर तारतम्य का अभाव है। इसके कारण, युवा प्रतिभागियों को प्रशिक्षण के बाद जिन स्थानों पर नियोजित किया जाता है वहां से वे प्रायः अपनी नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं।

स्किल इंडिया मिशन, जिसने कई पहलों के बावजूद वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए हैं, को नए सिरे से तैयार किया जाना चाहिए ताकि कौशल प्रशिक्षण की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल खाए और कार्यबल में प्रवेश करने वाले लाखों युवाओं को समाविष्ट करने के लिए कौशल प्रशिक्षण की पहुँच को बढ़ाया जा सके।

इस उद्देश्य की पूर्ति, गुणवत्ता का एक पैकेज प्रदान करने वाली क्षेत्रक विशिष्ट कौशल परिषदों की स्थापना करके, शिक्षा संस्थानों को कौशल प्रमाणन को मान्यता प्रदान करने का अधिदेश प्रदान करके, पहले से प्राप्त प्रशिक्षण को मान्यता प्रदान करने की  प्रक्रिया (Recognition of Prior Learning: RPL) तथा कौशलों के ऐसे मैट्रिक्स का विकास करके जो विभिन्न क्षेत्रकों के बीच स्थानांतरित किए जा सकते हों (ऊर्ध्व एवं क्षैतिज गतिशीलता से युक्त) इत्यादि माध्यमों से की जा सकती है।

यह अनुमान है कि 2030 तक भारत के पास दुनिया का सबसे युवा और सबसे बड़ा कार्यबल होगा, जोकि एक बिलियन से अधिक होगा। भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश से लाभान्वित करने हेतु, सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी बढ़ती हुई युवा आबादी को कौशल प्रदान करने, उसके कौशलों को उन्नत करने और नई परिस्थितियों के अनुरूप उन्हें नए सिरे से कौशल प्रदान करने के लिए एक उपयुक्त परिवेश का निर्माण करने वाले सुविधा-प्रदाता की भूमिका निभाए।

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