सीमा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका

प्रश्न: सीमा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, इस संबंध में अब तक उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत के संदर्भ में सीमा प्रबंधन में कठिनाइयों के परिदृश्य को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए, सीमा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • इस संबंध में उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
  • इससे संबद्ध विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ 15,200 किलोमीटर लंबी स्थलीय सीमा साझा करता है। इन पड़ोसियों में पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रु देश भी शामिल हैं। इसलिए, सम्पूर्ण सीमा की बाड़बंदी करना अत्यावश्यक है। किन्तु इस क्षेत्र का उच्चावच और स्थलाकृतिक विषमताएं इस लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती हैं। इस चुनौती के निराकरण के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग को एक प्रभावी तरीके के रूप में देखा जाता है।

सीमा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका:

  • समय पर सूचना: विभिन्न उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त जानकारी का उपयोग सुरक्षा प्रतिष्ठानों सहित विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, मौसम उपग्रह स्थलाकृतिक विशेषताओं और मौसम की स्थिति के बारे में समय पर जानकारी प्रदान कर सकते हैं। इनकी जानकारी सैन्य एवं अर्द्ध-सैनिक बलों के अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
  • खुफिया जानकारी और निगरानी: रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स, रडार सैटेलाइट्स और सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) सेंसर्स युक्त उपग्रह दिन और रात, किसी भी समय सभी स्थलों और सभी मौसमों में सूचनाएं प्रदान करने में सक्षम हैं। भूअवलोकन उपग्रह उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का विस्तृत चित्र प्रदान करते हैं जहां सीमाएं उच्च पर्वतीय क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं। भारत अभी भी चित्रों और साथ ही राष्ट्र की विवादित सीमाओं के हाई-रिज़ॉल्यूशन वीडियो संगृहीत करने के लिए रिसैट और कार्टोसैट जैसे उपग्रहों का उपयोग कर रहा है।
  • घुसपैठ पर नियंत्रण: मध्यम उंचाई और दीर्घ स्थायित्व एवं अधिक उंचाई व दीर्घ स्थायित्व वाले मानव रहित विमानों (UAVs) की तैनाती के साथ-साथ निम्न भू-कक्षा निगरानी उपग्रहों के प्रयोग से घुसपैठ की जाँच तथा भारत की निगरानी और प्राथमिक सर्वेक्षण संबंधी क्षमताओं में सुधार हो सकता है।
  • एजेंसियों के बीच समन्वय: सीमा सुरक्षा में तैनात सुरक्षा बल IB, RAW और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा साझा की गई खुफिया सूचनाओं पर निर्भर रहते हैं। वे लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर घाटी जैसे क्षेत्रों में निम्न गुणवत्ता युक्त संचार व्यवस्था से संबंधित मुद्दों का सामना भी करते हैं। उपग्रह प्रौद्योगिकी के साथ सीमा सुरक्षा प्रतिष्ठान मुख्यालयों, सीमा चौकियों या बॉर्डर गश्ती इकाइयों से महत्वपूर्ण सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं या उस तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।

इस संबंध में उठाए गए कदम:

  • सीमा प्रबंधन में सुधार और संचालन में सहायता के लिए गृह मंत्रालय के सीमा प्रबंधन प्रभाग के अंतर्गत एक अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ को स्थापित करने की योजना है।
  • भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा सीमा प्रबंधन में उपयोग किए जाने वाले नेविगेशन की GPS पर निर्भरता को कम करते हुए इसे स्वदेशी रूप से विकसित NAVIC (IRNSS) द्वारा संचालित करने की योजना है।
  • संचार: भारत ने सैन्य क्षेत्रों में संचार उद्देश्यों के लिए विभिन्न उपग्रहों का विकास किया है, जैसे:
  • GSAT-7 या INSAT-4F, ISRO द्वारा विकसित एक मल्टी-बैंड सैन्य संचार उपग्रह है जो भारतीय नौसेना को उसकी समुद्री क्षमताओं का विस्तार करने में सक्षम बनाएगा और इनमारसैट (अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक उपग्रह संगठन; Inmarsat) जैसी विदेशी उपग्रह संचार प्रणालियों पर निर्भरता को समाप्त करेगा।
  • जीसैट -7A, जो भारतीय वायु सेना की वर्तमान उपग्रह आधारित संचार क्षमताओं को बढ़ाएगा। 
  • सीमा प्रबंधन के लिए सैटेलाइट इमेजरी: सुरक्षा बलों को भारत की स्थलीय सीमाओं के साथ होने वाले विकास कार्यों की देख-रेख करने में सहायता करने के लिए सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण सीन-स्पॉट (scene-spot) इमेजरी की आवश्यकता होती है। कार्टोसैट श्रृंखला भी इस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए ही निर्मित की गई है। इसी प्रकार, जियो-इमेजिंग सैटेलाइट (GIST) भारत के विस्तृत क्षेत्रों के लाइव एवं रियल टाइम चित्र उपलब्ध कराएगा।

साथ ही, गृह मंत्रालय द्वारा गठित कार्यबल की रिपोर्ट सीमा प्रबंधन के सुधार में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के क्षेत्रों की पहचान करती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के हस्तक्षेपों के माध्यम से सैन्य कार्मिकों की प्रभावी तैनाती का अभाव और परियोजनाओं के समय पर क्रियान्वयन नहीं होने जैसी चुनौतियों का भी समाधान किया जाना चाहिए। साथ ही, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। सूचनाओं का आदान-प्रदान और अन्य देशों के साथ अनुभव साझा करने के साथ-साथ आगे बढ़ना चाहिए।

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