हिन्दी निबंध: कुपोषण मुक्त भारत
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी 1.2 अरब थी। साल 2030 तक भारत की आबादी 1.6 अरब हो जाने का अनुमान है और इस तरह से यह दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। फिलहाल दुनिया की कुल आबादी में भारत की जनसंख्या का हिस्सा 17 प्रतिशत से भी ज्यादा है। लिहाजा, खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत के लिए चुनौती है।
किसी भी देश के विकास के लिए सेहतमंद श्रम पूर्व निर्धारित शर्त है। इस तथ्य को | ध्यान में रखते हुए लोगों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार को हमेशा से उच्च प्राथमिकता दी गई है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 47 कहता है कि ‘राज्य अपनी जनता के पोषण और रहन-सहन का स्तर बढ़ाने व सार्वजनिक स्वास्थ्य में बेहतरी को अपना मुख्य कर्तव्य मानेगा।’ भारतीय नीति निर्माताओं ने हमेशा से स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दी है। एक निश्चित समयसीमा के भीतर देश की जनता के लिए सुरक्षा और पोषण की हालत में सुधार की खातिर पंचवर्षीय योजनाओं में नीतियां और बहुस्तरीय रणनीति पेश की गई और इसके लिए जरूरी फंड भी मुहैया कराए गए।
सरकार शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में सभी जगहों पर बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने को काफी अहमियत दे रही है। नतीजतन, अकाल और जबरदस्त खाद्य सुरक्षा का खतरा अब नहीं रह गया है। हालांकि, देश के विभिन्न हिस्सों में अब भी किसी
खास अवधि के दौरान खाद्य असुरक्षा की समस्या खड़ी हो जाती है। देश में तमाम वर्ग के लोगों की पोषण संबंधी हालत में काफी सुधार हुआ है यानी कुपोषण और पोषण संबंधी छोटी-मोटी कमियों के मामले में अच्छीखासी गिरावट देखने को मिली है।
बहरहाल, मां और बच्चों के कुपोषण की चुनौती अब भी राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में बेहद चिंता का विषय है। यह मामला मौजूदा सरकार की नीतियों की प्राथमिकता के मामले में अहम हैं। भारत में 4 करोड़ नाटे कद के लोग हैं, जबकि 1.7 करोड़ बेहद कमजोर बच्चे (5 साल के से कम के) हैं।
पर्याप्त मात्रा में भोजन या जरूरी पोषण नहीं मिलने से कुपोषण की समस्या पैदा होती है। कुपोषण का मतलब शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से कमजोर होना है। भोजन की उपलब्धता में क्षेत्रीय स्तर पर असमानता रहने और खान-पान की अलग-अलग आदतों के कारण अलग-अलग तरह की कुपोषण की समस्याएं पैदा हुई हैं। यह शहरों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में काफी ज्यादा है। ऐसे में इस चुनौती से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम निवेश और बड़े पैमाने पर मानव संसाधनों के निवेश के साथ क्षेत्र आधारित कार्य योजना की जरूरत है।
इस मामले में राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) का ऐलान काफी अहम कदम है। इस सिलसिले में केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत व्यापक वित्तीय संसाधनों के साथ केंद्रीय नोडल एजेंसी की शुरुआत की गई है। इन योजनाओं को अतिरिक्त वित्तीय संसाधन से भी लैस किया जाएगा। इस कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से सभी राज्यों और जिलों में लागू किया जाएगा। पोषण मिशन के तहत तीन साल के लिए कुल बजट 9,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रखा गया है। इस मिशन की मुख्य रणनीति सख्त निगरानी, जवाबदेही और इंसेंटिव वाले सिस्टम के तहत राज्यों, जिलों और स्थानीय स्तर पर लचीलापन मुहैया कराते हुए विकेंद्रीकृत प्रणाली तैयार करना है, ताकि इस दिशा में समाधान के स्थानीय ढांचे को प्रोत्साहित किया जा सके। इस कार्यक्रम का मकसद तय लक्ष्यों के जरिये लंबाई नहीं बढ़ने, कुपोषण, रक्तहीनता और कम वजन वाले बच्चों के जन्म के मामलों को कम करने के लिए हरमुमकिन कोशिश करना है। इस अभियान से 10 करोड़
से भी ज्यादा लोगों को फायदा होने की उम्मीद है।
सेहतमंद खाने का तरीका आचार-व्यवहार में बदलाव जैसा है। खान-पान का सही तरीका अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने की खातिर सरकारी हस्तक्षेप और बड़े पैमाने पर समुदायों की भागीदारी बेहद अहम है। एनएनएम का इरादा चरणबद्ध तरीके से सभी राज्यों और जिलों को इसके दायरे में लाने का है। इसके तहत 2017-18 में 315 जिलों, 2018-19 में 235 और 2019-20 में बाकी जिलों को इस अभियान से जोड़ा जाएगा। मुख्य जोर समन्वय बनाने, निगरानी का बेहतर सिस्टम सुनिश्चित करने और तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राज्यों केद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करने पर है। अभियान के संचालन के लिए स्पष्ट रोडमैप के साथ एनएनएम संभवत: सरकार का सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है।
सेहतमंद लोग देश के विकास में तभी योगदान कर सकते हैं, जब उन्हें अवसंरचना संबंधी और अन्य सुविधाएं पर्याप्त आधार पर मिलें। लिहाजा, सेहतमंद भारत सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाते वक्त सरकार ने देश के नागरिको की वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा पक्का करने के लिए भी कई कदम उठाए हैं। इसके साथ मजबूत अवसंरचना के लिए उठाए गए कदम और स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे अभियान निश्चित तौर पर भारत को दुनिया के नक्शे पर आगे की पंक्ति में ला खड़ा करेंगे।