हिन्दी निबंध: भारत में जनशिकायत निवारण

आपको यह शिकायत रहती है कि आपका बिजली का बिल बढ़ा-चढ़ाकर भेजा गया है और जब आप अपनी बात रखने के लिए बिजली के दफ्तर जाते हैं तो आपको वहां से भगा दिया जाता है। या आपकी कॉल बहुत अधिक ड्रॉप होती है और आपको पता ही नहीं चलता कि समस्या दूर करने के लिए किससे शिकायत की जाए। या आपको अपनी संपत्ति अपने नाम करानी है और संबंधित दफ्तर के दर्जनों चक्कर काटने पर भी आपका काम नहीं होता। हममें से अधिकतर लोगों को कभी न कभी ऐसी समस्याओं का सामना करना ही पड़ता है, जिनका समाधान किसी सरकारी अधिकारी या संस्था से कराना होता है। और जब भी हम समस्या हल कराने की कोशिश करते हैं या केवल जवाब ही मांगते हैं तो कोई हमारी बात ही नहीं सुनता।

कोई भी व्यवस्था पूरी तरह निर्दोष नहीं होती। खामियों की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है, लेकिन अगर ये खामियां लोगों के बुनियादी हितों को ही प्रभावित करने लगें तो उन्हें अपनी तकलीफें दूर कराने का पूरा अधिकार है। शिकायत करने वाले ग्राहक के लिए यह दिखाने का अच्छा अवसर हो सकता है कि आप कितने अच्छे हैं। इसीलिए जनशिकायत निवारण को अच्छे प्रशासन वाले लोकतंत्र की बुनियाद कहा जाता है। |

हमारे संविधान ने अपने नागरिकों को विभिन्न अधिकार दिए हैं, लेकिन लोगों की रोजमर्रा की तकलीफें दूर करने की प्रभावशाली प्रणाली नहीं होना आज भी भारत में प्रशासन की कमजोरी है। पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न सरकारों ने सुशासन का प्रयास करते हुए आम आदमी की तकलीफें दूर करने के लिए व्यवस्था तैयार करने की कोशिश की है। स्थिति सुधारने के बिल्कुल शुरुआती प्रयासों में नागरिक घोषणापत्र शामिल है, जो 1994 में लाया गया था। लोक शिकायत विभाग द्वारा तैयार किए गए नागरिक घोषणापत्र के घटकों में संगठन की दृष्टि एवं मिशन उद्घोषणा, शिकायत निवारण प्रणाली का विवरण और उसका इस्तेमाल करने की विधि शामिल है। दुर्भाग्य से विभिन्न संगठनों के नागरिक घोषणापत्र कोरे दस्तावेज ही बनकर रह गए और ग्राहकों की हालत पहले जैसी ही रह गई।

उसके बाद 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून लागू किया गया। आरटीआई लोक शिकायत निवारण के मामले में ऐतिहासिक सुधार साबित हुआ क्योंकि इसने निवारण का जिम्मा उस मामले से जुड़े अधिकारियों पर डाल दिया और दंड का प्रावधान भी किया। इसके कारण संबंधित अधिकारी अथवा संगठन समय पर शिकायत दूर करने के लिए ही विवश नहीं हुए बल्कि भ्रष्टाचार में भी कमी आई क्योंकि शिकायतकर्ता को फाइलों में लिखी टिप्पणियों समेत समस्या से जुड़े सभी दस्तावेज हासिल हो जाते हैं और जवाबदेही तय हो जाती है।

ई-प्रशासन और न्यूनतम शासन, अधिकतम प्रशासन की अवधारणा बढ़ने के साथ ही वेब और मोबाइल पर आधारित शिकायत निवारण प्लेटफॉर्मों पर जोर बढ़ता गया है। हाल ही में आरंभ की गई कुछ प्रणालियां हैं – विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जुड़ी शिकायतें प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुचारू तथा एकीकृत बनाने के लिए लोक शिकायत निवारण विभाग द्वारा आरंभ की गई वेब आधारित लोक शिकायत निवारण प्रणाली सीपीग्राम्स (केद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली) आम आदमी की शिकायतें दूर करने और केंद्र तथा राज्य सरकारों के कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं की निगरानी करने के लिए संवादपरक प्लेटफॉर्म प्रगति (प्रो-एक्टिव गवर्नमेंट एवं टाइमली इंप्लीमेंटेशन) नागरिकों को जोड़ने वाला मंच माईगाँव और कर से जुड़ी शिकायतों को कागजों के बगैर ही निपटाने के लिए ई-निवारण आदि। विभिन्न सेवाओं से जुड़ी शिकायतें दूर करने के लिए विभिन्न नियामकीय प्रणालियां भी आरंभ की गई हैं, जैसे दूरसंचार के लिए ट्राई, बैंकिंग के लिए बैंक लोकपाल, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एमसीआई आदि।

महिलाएं अक्सर आबादी का सबसे अधिक संवेदनशील हिस्सा होती हैं, जिनके साथ घर और कार्यस्थल में उत्पीड़न का खतरा होता है। हालांकि महिलाओं को घरेलू हिंसा और घर तथा कार्यस्थल पर उत्पीड़न से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के कानून हैं जैसे कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 आदि। फिर भी महिलाएं शिकार बनती ही रहती हैं। समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने हाल ही में शी बॉक्स (सेक्सुअल हैरासमेंट इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स) आरंभ किया है, जो प्रत्येक महिला को किसी भी प्रकार के उत्पीड़न की शिकायत करने की एकल खिड़की प्रदान करती है।

सभी नीतियों और गतिविधियों के लिए जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही ही लोकतंत्र का मूल है। और प्रभावी तथा सक्षम शिकायत निवारण प्रणाली ही नागरिकों में विश्वास कायम कर सकती है और उन्हें यह आश्वासन दे सकती है कि सरकार ‘ जनता की है और जनता के लिए है’।

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