शेल कंपनियां (Shell Companies)
शेल कंपनियां
- सामान्य तौर पर शेल कंपनियां ऐसी कंपनियां होती हैं जो सक्रिय व्यावसायिक गतिविधियों या पर्याप्त संपत्तियों के बिना ही संचालित की जाती हैं।
- टास्क फोर्स ने व्याख्या की है कि एक सामान्य शेल फर्म को स्टैण्डर्ड मेमोरेंडम (मानक ज्ञापन) या आर्टिकल्स ऑफ़ एसोसिएशन (कंपनी को प्रशासित करने वाले नियमों एवं विनियमों के दस्तावेज़) के साथ निगमित किया जाता है। इसमें निष्क्रिय शेयरधारकों और निदेशकों को सम्मिलित किया जाता है और फिर फर्म को भी निष्क्रिय छोड़ दिया जाता है। यह मुख्यतः वित्तीय धोखाधड़ी के उद्देश्य से स्थापित की जाती है।
- बिक्री लेन-देन के पश्चात निष्क्रिय शेयरधारक सामान्य तौर पर खरीददार को अपने शेयर स्थानांतरित कर देते हैं और तथाकथित निदेशक या तो त्यागपत्र दे देते हैं या भाग जाते हैं।
पृष्ठभूमि
- शेल कंपनियों के भ्रष्टाचार से व्यापक स्तर पर प्रभावी रूप से निपटने के लिए राजस्व सचिव और कॉर्पोरेट मामलों के सचिव की
सह-अध्यक्षता में 2017 में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था। - भारत में शेल कंपनियां कंपनी अधिनियम, 2013 या किसी अन्य कानून के तहत परिभाषित नहीं की गयी हैं।
- हालांकि कुछ कानून धनशोधन जैसी अवैध गतिविधियों को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से शेल कंपनियों को लक्षित करने के लिए प्रयोग किये जा सकते है, जैसे- बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016; धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 और कंपनी अधिनियम, 2013 आदि।
अनुशंसाएँ
- टास्क फोर्स ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रमुख मानकों को सूचीबद्ध किया है कि क्या किसी कंपनी का निर्माण धन शोधन या
विनियामकीय मध्यस्थता का अनुचित लाभ उठाने के लिए किया गया गया है’ (चित्र देखें)।
- टास्क फोर्स ने अनुशंसा की है कि कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of corporate affairs: MCA) को उन कंपनियों के वित्तीय विवरणों की फाइलिंग की जाँच करनी चाहिए जिनका विमुद्रीकरण के पश्चात अघोषित धन के प्रवाह हेतु दुरुपयोग किया गया था।
इसके अतिरिक्त इसने ऐसी कंपनियों पर निगरानी रखने का सुझाव दिया है
- जिनके ऋणों में असामान्य वृद्धि या कमी हुई हो अथवा
- जिनके 10% से अधिक अशोध्य ऋण (bad debt) को राईट ऑफ कर दिया गया हो और;
- वे साझेदारी फर्मे जिनमें निवेश में 100% या उससे अधिक की वृद्धि हुई हो।
शेल कंपनियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए गए अन्य उपाय
- कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय ने ऐसी शेल कंपनियों और उनके सहयोगियों के व्यापक डिजिटल डेटाबेस तैयार किए हैं जिनकी पहचान विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की गयी थी।
- आयकर विभाग द्वारा की गयी जांच के पश्चात् 1155 से अधिक शेल कंपनियों को निरुद्ध किया गया। इन्हें 22,000 से अधिक लाभार्थियों ने स्रोत के रूप में प्रयोग किया था।
- विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य सूचना साझाकरण तंत्र को क्षेत्रीय आर्थिक आसूचना परिषद (REIC) और केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो (CEIB) आदि मंचों के अंतर्गत लागू किया गया है।
- कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने विभिन्न गैर अनुपालनों के लिए और लंबे समय तक निष्क्रिय रही 2.26 लाख से अधिक कंपनियों का पंजीकरण निरस्त कर दिया है।
- सरकार ने बजट 2018-19 के माध्यम से आयकर अधिनियम की धारा 276 cc के अंतर्गत प्रदत्त छूट को हटा दिया है। यह इस बात का प्रावधान करती है कि यदि कर दाता की देनदारी 3000 रुपये से अधिक है और वह निर्धारित समय में जान-बूझ कर आय कर रिटर्न प्रस्तुत करने में विफल रहता है तो उसे कारावास और जुर्माने के माध्यम से दण्डित किया जाएगा। लगभग 3 लाख निष्क्रिय कंपनियों द्वारा ‘शून्य आय’ दिखाकर इस प्रावधान का दुरुपयोग किया जा रहा था।
- लेखा परीक्षकों से संबंधित मुद्देः गैरकानूनी लेन-देन की सुविधा हेतु कथित सहभागिता और ऐसी स्थिति के सामने आने पर
कार्यवाही न करने के कारण, लेखा परीक्षकों की भूमिका भी जाँच के दायरे में आती है। - लेखापरीक्षा फर्मों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर 3 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति (TERI अध्यक्ष अशोक चावला की अध्यक्षता में गठित)
की अनुसंशाओं की जांच MCA द्वारा की जा रही है।
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