शरणार्थी संकट तथा आप्रवासन से संबंधित नैतिक मुद्दों पर चर्चा

प्रश्न: वैश्वीकरण और नागरिकों एवं विदेशियों के अधिकारों के व्यापक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से विचार करते हुए एक वैश्विक परिघटना के रूप में शरणार्थी संकट और आप्रवासन में समाविष्ट नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सम्पूर्ण विश्व में शरणार्थी संकट तथा आप्रवासन (वैध एवं अवैध) का परिचय दीजिए।
  • इनसे संबंधित राष्ट्र-राज्यों की मुख्य चिंताओं को रेखांकित कीजिए।
  • शरणार्थी संकट तथा आप्रवासन से संबंधित नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
  • निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

सीमा पार लोगों की आवाजाही को वैध या अवैध तथा बलात् या स्वैच्छिक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। हाल ही में यूरोपीय देशों ने युद्ध द्वारा क्षतिग्रस्त सीरिया एवं इराक से शरणार्थियों के अंतर्वाह का सामना किया है। इसी प्रकार, बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोगों ने म्यांमार से पलायन किया तथा सम्पूर्ण बांग्लादेश और भारत में फैले हुए शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। गैर-नागरिकों के अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रों का उत्तरदायित्व भारत सहित विश्व भर में विवाद का विषय बना हुआ है तथा निरंतर जारी शरणार्थी संकट ने इस विवाद को और अधिक तीव्र बना दिया है।

एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य संविधान, विधि के शासन तथा नागरिकता की मान्यता पर स्थापित होता है। नागरिकता एक अनन्य अवधारणा है अर्थात् केवल परिभाषित मानदंड की प्रतिपूर्ति करने वाले लोगों को नागरिकों के रूप में स्वीकृति दी जाती है तथा नागरिक होने के कारण वे उन्हें प्रदत्त अधिकारों का लाभ उठाते हैं। गैर-नागरिक अर्थात् शरणार्थी एवं आप्रवासी, दोनों इन अधिकारों में से अधिकांश से वंचित रहते हैं।

इस संदर्भ में, मानवाधिकारों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा को ध्यान में रखते हुए हालिया शरणार्थी संकट तथा आप्रवासन के कारण उत्पन्न नैतिक मुद्दों की पहचान की जानी चाहिए। विस्तृत रूप से ये मुद्दे निम्न हैं: राष्ट्रों का उत्तरदायित्व, शरण की माँग करने वालों के प्रति सहानुभूति, नागरिकों की चिंताओं का समाधान तथा ऐसे सिद्धांतों को मान्यता प्रदान करना जिनका उपयोग शरणार्थियों को सहायता प्रदान करने के लिए एक रूपरेखा के निर्माण हेतु किया जा सकता है।

आप्रवासन के मुद्दे के संबंध में प्राय: विदेशी लोगों के प्रति भय (xenophobia) उत्पन्न होता है तथा आर्थिक संसाधनों की निकासी, रोजगार अवसरों की क्षति की सम्भावना जैसे तर्क सामने आते हैं। इसके अतिरिक्त, शरणार्थी संकट के चलते, विभिन्न यूरोपीय देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत ने भी इन आधारों पर शरणार्थियों के प्रवेश को निषिद्ध किया है कि यह उनके देशों में धार्मिक उग्रवादियों के प्रवेश का कारण बन सकता है। हालांकि, यह दृष्टिकोण विभिन्न नैतिक मुद्दों तथा आधुनिक संविधान द्वारा शासित समाज के मौलिक पहलुओं पर प्रश्न उठाता है जैसे कि:

  • नागरिकों और विदेशियों के अधिकार: व्यक्तियों को नागरिक होने के नाते अधिकार प्रदान किए जाते हैं। हालांकि, कुछ आधारभूत मानवाधिकार भी हैं जिन्हें सभी देशों द्वारा न केवल प्रदान किया जाना चाहिए बल्कि उनकी गारंटी भी दी जानी चाहिए। इन सभी अधिकारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार जीवन का अधिकार है। मानवता को स्वयं में एक साध्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। वैसे तो, नागरिकों को प्रदान किए गए सभी अधिकारों की विदेशियों को गारंटी नहीं दी जा सकती, किन्तु उन्हें सबसे आधारभूत अधिकार प्रदान न करने का प्रश्न ही नहीं उठता। वैश्वीकृत संरचना के परिप्रेक्ष्य में समुचित कार्य के अधिकार को भी आधारभूत अधिकार में से एक अधिकार के रूप में स्वीकृत किया जाना चाहिए।
  • वैश्विक नागरिकता: एक परस्पर संबद्ध वैश्वीकृत विश्व के युग में यह तर्क दिया जाता है कि यद्यपि एक विश्व समुदाय और वैश्विक समाज अभी तक विद्यमान नहीं है, तथापि लोग पहले से ही राष्ट्रीय सीमाओं के पार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हालांकि वित्तीय संसाधनों के संदर्भ में देश एक दूसरे की सहायता करते हैं, परन्तु विकसित देशों में भी आप्रवासियों और शरणार्थियों को स्वीकार करने हेतु एक दृढ प्रतिरोध विद्यमान है।
  • राष्ट्रों का उत्तरदायित्व- मानवतावाद: यदि कोई भी राज्य शरणार्थियों को स्वीकार करने का इच्छुक नहीं होता तो वे राज्यविहीन हो जाएंगे तथा उन्हें शिविरों में या अवैध प्रवासियों के रूप में रहने हेतु बाध्य होना पड़ेगा। प्राय: वे विधिक रूप से कार्य नहीं कर सकते या अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर सकते, इसलिए मानवतावाद मांग करता है कि मनुष्यों को अपने साथियों, विशेष रूप से सुभेद्य वर्गों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें सार्थक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  • सहायता की रूपरेखाउत्तरदायित्वों को साझा करना: सभी राष्ट्रों को शरणार्थियों के कारण उत्पन्न संसाधनों के बोझ को समान रूप से साझा करने हेतु सहमत होना चाहिए। इस संदर्भ में आर्थिक क्षमता, ऐतिहासिक के साथ-साथ समकालीन भूमिका, भौगोलिक निकटता तथा निष्कासन पर प्रतिबंध(non-refoulement) जैसे पहलुओं की पहचान की जानी चाहिए।
  • अत:, विश्व के विभिन्न भागों में आप्रवासन के व्यापक मुद्दों के साथ शरणार्थी संकट नागरिकता के अर्थ और अधिकारों की उदार व्याख्या की मांग करता है जो समानता, मानववाद तथा निष्पक्षता के विचार पर आधारित होनी चाहिए। यह शरणार्थियों को एक अस्थाई विधिक दर्जा प्रदान करेगा तथा उनके लिए आधारभूत मानवाधिकारों की गारंटी भी प्रदान करेगा।

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