नदी तलछट प्रबंधन (Sediment Management)

  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने हाल ही में नदी तलछट प्रबंधन नीति पर मसौदा जारी किया है।
  • इस मसौदा नीति में रेत खनन और बांधों एवं बैराजों के निर्माण के प्रभावों की ओर इंगित किया गया है और नदी तलछट प्रबंधन के
    लिए अपनाए जाने वाले सिद्धांतों की सिफारिश की है।

भारत में तलछट बेसिन

  • तलछट बेसिन ऐसे क्षेत्र हैं जहां तलछटों की मोटाई अत्यधिक होती है (20 किमी तक के स्थानों में)। तलछट बेसिन तटवर्ती और
    अपतटीय दोनों क्षेत्रों में विस्तृत है।
  • भारत में 26 तलछट बेसिन हैं जो भूमि, उथले जल और गहरे जल पर विस्तृत 3.14 मिलियन वर्ग किमी के क्षेत्र पर विस्तृत हैं,
    जिनमें से कुल तलछट बेसिन क्षेत्र के 48% भाग का पर्याप्त भू-वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • हाल ही में, आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति ने तेल और प्राकृतिक गैस भंडार की संभावना के लिए 2019-20 तक भारतीय
    तलछट बेसिन के सर्वेक्षण के लिए 48,243 लाइन किलोमीटर (LKM) 2D भूकंपीय डाटा प्राप्त करने की परियोजना को स्वीकृति
    प्रदान की है।

महत्त्वः

  • यहाँ विश्व के लगभग सभी हाइड्रोकार्बन रिजर्व अवस्थित हैं। इस प्रकार, यह अन्वेषण और उत्पादन गतिविधियों में प्रत्यक्ष और
    अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन करके सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करने में सहायता कर सकता है।
  • अन्य खनिज में कोयला और यूरेनियम, फॉस्फेट का वृहद निक्षेप (एक आवश्यक उर्वरक खनिज) और सीमेंट निर्माण, काओलिन क्ले,
    जिप्सम और लवण के लिए चूना पत्थर सहित विभिन्न औद्योगिक कच्चे माल शामिल हैं।
  • बहुधात्विक निक्षेप (अल्प मात्रा में) में लेड, जस्ता, लौह और मैंगनीज के अयस्क शामिल हैं और कुछ बॉक्साइट भी हो सकते हैं।

नीति की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं-

तलछटीकरण / अवसादीकरण के लिए उत्तरदायी कारक हैं:

  • जलग्रहण की भौतिक और जल विज्ञान संबंधी विशेषताएं, जैसे ढलान, भूमि उपयोग, भूमि कवर, शहरीकरण, कृषि पद्धतियां,
    बाढ़, नदी बेड का अतिक्रमण, वनों की कटाई आदि।
  • खनिजों के अति-दोहन के साथ ही जलग्रहण क्षेत्र (परत, रील, अवनालिका और धारा चैनल के क्षरण) में क्षरण की तीव्रता।
  • नदी द्वारा लाये गए तलछट की गुणवत्ता, मात्रा और सांद्रता।
  • जलाशय का आकार, बनावट और लंबाई तथा जलाशयों की दक्षता को प्रभावित करने वाली संचालन रणनीतियाँ।

अवसादीकरण पर अवसंरचनाओं के निर्माण का प्रभाव: बांध या बैराज जल की गति को कम करते हैं और नदियों में जल एवं तलछट के प्रवाह के संतुलन को बदल देते हैं। इसके कारण अधिवृद्धि (अवसादों के जमाव के कारण भूमि की ऊंचाई में वृद्धि) होती है। हालाँकि, वे बाढ़ के खतरे को कम करते हैं। बाढ़ का जोखिम कम होने के कारण स्थानीय लोगों द्वारा निचले बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण उन्हें तलछट और क्षरण के उच्च जोखिमों के लिए सुभेद्य बनाता है।

अवसादीकरण पर रेत खनन का प्रभाव: जब यह एक इष्टतम स्तर पर किया जाता है, तो रेत का खनन नदियों से अत्यधिक तलछट को हटा देता है। हालांकि, अवैज्ञानिक तरीके से होने वाले रेत खनन के कारण नदी खनिज तेज़ी से नष्ट हो जाते हैं, जिनका नदी तंत्र द्वारा पुन: पूर्ति कर पाना संभव नहीं होता है। अत्यधिक खनन उन पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए नदी तल और नदी किनारों की क्षमता को नष्ट करती है।

  • जो योजनाएं वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा समर्थित हैं उन्हें ध्यान में रखते हुए साइट की शर्तों को लागू किया जाना चाहिए। यह
    खनन हेतु उपयुक्त साइटों की पहचान करने, उचित निर्माण सामग्री और ड्रेजिंग (नदी तेल की सफाई) को नियंत्रित करने के
    लिए सुधारात्मक उपाय करने में मदद करेगा।
  • रेत खनन GSI दिशानिर्देशों और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट
    गाइडलाइन्स -2016 के अनुसार किया जा सकता है।

नदी तलछट प्रबंधन के सिद्धांत:

  • तलछट प्रबंधन को एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन का एक भाग बनाना,
  • नदी के प्रवाह के नुकसान को कम करने के लिए सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों का उपयोग करके, साक्ष्य के आधार पर गाद को हटाना।
  • तेज़ी से विकसित हो रहे अवसंरचनात्मक परियोजनाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट) में वार्षिक तलछट की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है और नदी के प्रसार में होने वाली बेतहाशा वृद्धि एवं आसपास के क्षेत्र में उसके विस्तार का भौतिक मोड में
    विश्लेषण किया जा सकता है।

नदी तलछट प्रबंधन के दृष्टिकोण

  • युवा चरण – इस चरण में, नदियों में तीव्र ढाल एवं तलछट परिवहन की उच्च क्षमता होती है।  निम्नलिखित तलछट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाया जा सकता है: कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट, स्टोरेज रिजर्वायर एवं बोल्डर/ग्रेवेल माइनिंग।
  • परिपक्व चरण – इस अवस्था में, नदी मैदानों में प्रवेश करती है और इस अवस्था की विशेषता व्यापक नदी तल एवं बाढ़ के मैदान हैं। इसमें मानवीय हस्तक्षेप द्वारा परिवर्तन किया जाता है, जिसमें भारी मात्रा में जल के बहाव को मोड़ना/कम करना और घरेलू, औद्योगिक और कृषि गतिविधियों से उच्च प्रदूषक पदार्थों का भारी बोझ होता है। निम्नलिखित तलछट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाया जा सकता है: नदी किनारों का संरक्षण, प्रोत्साहन आदि, रेत खनन, तलछट | निकालना/निकर्षण (ड्रेजिंग) जैसे नदी प्रशिक्षण कार्य करना।
  • प्रौढ़ावस्था चरण – इस चरण में, नदी के तलछट परिवहन एवं अवसादीकरण में काफी बदलाव आ जाता है, जो व्यापक बाढ़ का कारण बनता है। इसके साथ ही नदी मार्ग/ डेल्टा निर्माण में लगातार परिवर्तन होता है। इन क्षेत्रों में प्रवाह की निरंतरता और तलछटों का समुद्र तक परिवहन बनाए रखने के लिए इन क्षेत्रों में ड्रेजिंग/तलछटों को हटाने का कार्य किया जाता है।

जलाशय अवसादीकरण प्रबंधन

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: ठोस अपशिष्ट का निपटान स्थानीय नगर निकायों और सरकारी निकायों द्वारा नियंत्रित करने की आवश्यकता है। औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • बाढ़ मैदान प्रबंधन: जल विज्ञान और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए, नदी तल और बाढ़ मैदानों के विभिन्न क्षेत्रों पर विभिन्न गतिविधियों का नियमन और निषेध आवश्यक है। जरूरी क्षेत्रों के सीमांकन करने के लिए रिवर रेगुलेशन जोन को यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए।
  • संस्थागत व्यवस्थाएं: दोआबिया समिति (Doabia Committee) की सिफारिश के अनुसार सभी नदी बेसिनों के लिए नदी बेसिन प्राधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता है। किसी भी अंतर-राज्यीय/अंतर्राष्ट्रीय नदी बेसिनों से एक लाख क्यूबिक मीटर से अधिक का कोई भी तलछट निकालने के कार्य को अन्य मंजूरी के अतिरिक्त, CWC या संबंधित बेसिन के नदी बेसिन प्राधिकरण से मंजूरी को आवश्यक बना देना चाहिए।

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