धूम-कोहरा (स्मॉग) : इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उठाए व्यवहार्य कदम
प्रश्न: सरकारी और न्यायिक हस्तक्षेप के बावजूद उत्तर भारत के एक बड़े भाग में धूम-कोहरा (स्मॉग) की चिरस्थायी समस्या और विकट हो गई है। परीक्षण कीजिए। इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कौन-से व्यवहार्य कदम उठाए जा सकते हैं?
दृष्टिकोण
- इस विषय के संक्षिप्त विवरण के साथ प्रारंभ करते हुए इसके कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
- समस्या से निपटने के लिए सरकार और न्यायपालिका द्वारा विगत वर्षों में उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
- उठाए गए कदमों की विफलता के प्रमुख कारणों की चर्चा कीजिए।
- अंत में, इस समस्या के प्रभावी निवारण हेतु उपयुक्त समाधानों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व अन्य क्षेत्रों सहित एक विस्तृत क्षेत्र सामान्यतः सर्दियों में धूम-कोहरे (स्मॉग) की मोटी परत से ढका रहता है। इस क्षेत्र को वर्ष दर वर्ष हवा की गुणवत्ता में गिरावट की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। शीतकालीन मौसम और स्थिर हवा के कारण फसल के बचे अवशेषों एवं कचरे को जलाने व औद्योगिक प्रदूषण के कारण उत्पन्न धुआँ और सड़क से उड़ने वाली धूल के कण, वायुमंडल की निचली परतों में ही निलंबित रह जाते हैं। यह दशा ही इस स्मॉग का मुख्य कारण है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदम:
- ‘विषम-सम’ नियम (ऑड-ईवेन रूल), जिसका उद्देश्य सड़कों पर यातायात कम करना है।
- एम्बिएंट एयर क्वालिटी अर्थात् स्थानीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता के मूल्यांकन हेतु निगरानी तंत्र विकसित करना।
- भारत स्टेज’ मानकों का कार्यान्वयन।
- वाणिज्यिक वाहनों पर हरित उपकर आरोपित करना, आदि।
न्यायपालिका द्वारा उठाए गए कदम:
न्यायपालिका ने इस मुद्दे का संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किए हैं, जैसे:
- पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण का गठन
- राष्ट्रीय राजधानी में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लाने (GRAP) का प्रवर्तन
- वाणिज्यिक वाहनों को सीएनजी से चलाने का आदेश, आदि।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फसल के अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध आरोपित किया है। साथ ही, केन्द्रीय और राज्य सरकार के कर्मियों के लिए डीजल वाहनों के उपयोग को धीरे-धीरे समाप्त करने का आदेश दिया गया है।
हालांकि, इन उपायों के बावजूद स्मॉग की समस्या एक सतत वार्षिक परिघटना बन गयी है। इसके लिए राज्य सरकारों के निष्क्रिय और प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण, शहरी क्षेत्रों पर बढ़ते दबाव, भौगोलिक कारणों जैसे महाद्वीपीयता के प्रभावस्वरूप उत्तरी भारत में वायु की दिशा में दैनिक परिवर्तन/उत्क्रमण का न होना, संबंधित अधिकारियों के मध्य उचित समन्वय तंत्र का अभाव, न्यायिक निर्देशों के प्रभावी कार्यान्वयन की कमी, धूल के स्तर को नियंत्रित रखने हेतु सड़कों के किनारे हरियाली बढ़ाने के प्रति सिविक एजेंसियों की लापरवाही, आदि को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
समस्या के प्रभावी समाधान के लिए आवश्यक कदम:
इनके अतिरिक्त, एक व्यापक कार्य योजना कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है जिसमें निम्नलिखित उपाय सम्मिलित होने चाहिए:
- प्रभावी नीति और वित्तीय सहायताः फसल के अवशेष , धान की भूसी और अन्य कृषि-अपशिष्टों के निपटान हेतु बायोमास ब्रिकेट (biomass briquette) का निर्माण जो पशुओं के लिए चारा, खाद आदि बनाने के उपयोग में आता है।
- मिशन मोड आधार पर शहरों को हरा-भरा बनानाः इसमें खुले स्थलों की लैंडस्केपिंग और सार्वजनिक स्थानों पर फर्श के निर्माण के माध्यम से धूल कम करना शामिल होना चाहिए।
- अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन: विशेष रूप से, इमारतों के निर्माण और विध्वंस से उत्पन्न अपशिष्ट का पुनः उपयोग सुनिश्चित करना और शहरी अपशिष्ट को जलाने पर लगे प्रतिबंध का कठोरता से पालन।
- शहरों में आवागमन सरल बनाने हेतु पर्याप्त पार्किंग सुविधाओं और अवसंरचनात्मक ढाँचे के सृजन के साथ सार्वजनिक परिवहन के उपयोग पर बल।
- सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों को अपनाना, जैसे ‘ग्रेट लंदन स्मॉग’ के दौरान उठाये गए कदम, बीजिंग और मेक्सिको में वायु प्रदूषण से संबंधित कार्य योजना आदि।
उपर्युक्त उपायों की सफलता सुनिश्चित करने हेतु, अंतरराज्यीय और अंतर-विभागीय समन्वय आवश्यक है।
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