विद्यालयी शिक्षा (School Education)
शिक्षा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तन तथा एक न्यायसंगत समाज के निर्माण के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। इक्कीसवीं शताब्दी में आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए प्रासंगिक ज्ञान, दृष्टिकोण एवं कौशल से युक्त सुशिक्षित जनसंख्या अत्यंत आवश्यक है।
शिक्षा समाज को एक सूत्र में बांधती है। यह सामाजिक एकजुटता एवं राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने वाले मूल्य प्रदान करती है। 1976 से पूर्व शिक्षा राज्य सूची का विषय थी। 1976 के संवैधानिक संशोधन के माध्यम शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थान दिया गया।
भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली के सामने आज का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य ‘अधिगम परिणामों (लर्निंग आउटकम)’ में सुधार करना है। सर्व शिक्षा अभियान (SSA) तथा नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम जैसी पहलों के माध्यम से, भारतीय स्कूल प्रणाली ने आगतों (इनपुट) के मापन एवं वितरण पर ध्यान केंद्रित किया है तथा इसमें यह पर्याप्त सीमा तक सफल भी रही है।
- 2015-16 में ग्रेड I-V के लिए सकल नामांकन अनुपात (GER) 99.2% था और ग्रेड VI-VIII के लिए यह 92.8% था। प्राथमिक विद्यालयों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 24:1 था और माध्यमिक विद्यालयों के लिए 27:1 था।
- दुर्भाग्यवश, विद्यालयों में अधिक शिक्षक एवं अधिक छात्रों के नामांकन का अधिक शिक्षा में रूपांतरण नहीं हो सका। ‘प्रथम एजुकेशन फांडेशन’ द्वारा जारी ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) के आंकड़ों के अनुसार ग्रेड III में ऐसे छात्रों का अनुपात जो कम से कम ग्रेड 1 के स्तर का पाठ्यक्रम पढ़ सकता है, 2008 के 50.6 से घटकर 2014 में 40.3 तथा 2016 में मामूली वृद्धि के साथ 42.5 हो गया था।
- ग्रेड ||| में ऐसे छात्रों का अनुपात जो कम से कम घटाने से जुड़े साधारण प्रश्न हल कर सकते थे, 2008 के 39% से घटकर 2014 में 25.4% और 2016 में पुनः बढ़कर 27.7% हो गया। निम्नस्तरीय अधिगम परिणाम (लर्निंग आउटकम) कई अन्य स्रोतों में भी दिखते हैं। इनमें राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) भी सम्मिलित है जिसने कक्षा-V के संबंध में तीसरे दौर (2012) के सर्वेक्षण की तुलना में चौथे दौर (2015) में निम्न स्तरीय परिणाम प्रदर्शित किया है।
ध्यातव्य है कि केवल ये ही ऐसे परिणाम नहीं हैं जो यह बताते हैं कि इनपुट पर ध्यान केंद्रित करने से शिक्षा में सुधार नहीं होता है। वस्तुतः अभी तक के सर्वाधिक मज़बूत और विश्वसनीय साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि केवल परंपरागत उपाय, जैसे- अधिक या बेहतर अवसंरचना, निम्न छात्र-शिक्षक अनुपात, उच्च शिक्षक वेतन तथा अधिक शिक्षक प्रशिक्षण; अपने आप से छात्रों के अधिगम परिणामों में सुधार हेतु प्रभावी नहीं होते हैं।
साक्ष्यों के अनुसार सर्वाधिक महत्वपूर्ण किन्तु उपेक्षित कारक (जो प्रभावी सिद्ध हुए हैं) हैं- अध्यापन-कला जो उचित स्तर पर शिक्षण पर केंद्रित हों, परिणाम आधारित प्रोत्साहन एवं अभिशासन (गवर्नेस) जो व्यवस्था के सुचारु संचालन को सक्षम बनाता हो।
NITI आयोग का कार्रवाई एजेंडा
विद्यालयी शिक्षा के लिए NITI आयोग का कार्रवाई एजेंडा निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करता है
व्यवस्था को परिणाम-उन्मुख बनाना :
- एक स्वतंत्र, अत्याधुनिक नमूना-आधारित परिणाम मापन प्रणाली (outcome measurement system) को प्रारंभ
करना। - विद्यालय शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक (SEQI) के माध्यम से राज्य स्तर के सुधारों पर नजर रखना और उनका समर्थन
करना। - RTE आवश्यकताओं की आगत-उन्मुखता को संशोधित करना और इसे परिणाम की ओर स्थानांतरित करना ताकि
RTE स्कूल जाने का अधिकार होने के बजाय सीखने के अधिकार में परिवर्तित हो सके।
प्रभावी अधिगम के लिए शिक्षकों और छात्रों को उपकरण प्रदान करना:
- साक्ष्य-आधारित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी उपकरणों को अपनाना।
- आधारभूत शिक्षा (foundational learning) पर ध्यान केंद्रित करना। एक समयबद्ध राष्ट्रीय कार्यक्रम का शुभारम्भ
किया जाना चाहिए जो यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित हो कि सभी छात्र आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल से
युक्त हों। - प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित एवं अनुकूलन योग्य “एग्जाम ऑन डिमांड” प्रणाली को परीक्षण के स्तर पर लागू करना जो
‘अंकों’ के बजाय छात्रों का पूर्ण दक्षताओं पर परीक्षण करती हो तथा छात्रों के तैयार होने पर उन्हें परीक्षा में एक या कई
बार बैठने की अनुमति प्रदान करती हो।
मौजूदा अभिशासन तंत्र में सुधार करना:
- सार्वजनिक विद्यालयों में नामांकन निजी विद्यालयों की तुलना में काफी कम हैं। इसका कारण शिक्षक अनुपस्थिति की
उच्च दर, कक्षा में उपस्थिति के दौरान अध्यापन पर कम समय देना और सामान्यतया शिक्षा की निम्न गुणवत्ता है। - बेहतर अभिशासन के माध्यम से गुणवत्ता सुधार इस प्रक्रिया को मंद करने या उलटने का एक तरीका है। बुनियादी
अभिशासन प्रक्रियाओं और संरचनात्मक सुधारों की एक व्यवस्था (जिसका अधिकतम प्रभाव हो) को विद्यालय शिक्षा
गुणवत्ता सूचकांक में चिह्नित और सम्मिलित किया गया है।
नवीन अभिशासन तंत्रों को परीक्षण के तौर पर लागू करना :
- नीति निर्माण, विनियमन और वितरण के कार्यों का पृथक्करण। वर्तमान में, ये सभी कार्य राज्य शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत
संचालित किए जाते हैं जो प्रायः निजी विद्यालयों के कामकाज के पहलुओं (जैसे-स्कूल फीस) को अस्थायी ढंग से नियंत्रित करते हैं। - शिक्षा निदेशालय को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना और निम्नलिखित के माध्यम से इसे उत्तरदायी बनाना- स्पष्ट, मापनीय लक्ष्य; चयनित शीर्ष प्रबंधकों के लिए पात्रता का निर्धारण; लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु प्रबंधन को अधिक स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान करना; तथा परिणामों की विश्वसनीय माप के आधार पर निरीक्षण और उत्तरदायित्व का निर्धारण।
राज्यों और निजी अभिकर्ताओं के लिए भूमिकाओं का पता लगाना:
- इच्छुक राज्यों द्वारा अन्य साहसी प्रयोगों की सम्भावना की जांच और उनका आरम्भ करने के लिए राज्यों की सहभागिता के साथ एक कार्यकारी समूह की स्थापना की जानी चाहिए। इनमें शिक्षा सम्बन्धी प्रमाणपत्रों (education vouchers) और स्थानीय सरकार के नेतृत्व में स्कूली शिक्षा सेवाओं की खरीद को शामिल किया जा सकता है।
- सार्वजनिक–निजी साझेदारी (PPP) मॉडल की संभावनाओं पर भी विचार किया जा सकता है। निजी क्षेत्र सरकारी स्कूलों को गोद लेते हैं और प्रति छात्र के आधार पर इनका सार्वजनिक वित्तपोषण किया जाता है।
समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan)
केन्द्रीय बजट 2018-19 में विद्यालयी शिक्षा को प्री-नर्सरी से कक्षा 12 तक विभाजित किए बिना, इसे समग्र रूप से प्रबंधित करने का प्रस्ताव किया गया था। समग्र शिक्षा अभियान विद्यालय शिक्षा क्षेत्र में प्री-स्कूल से कक्षा 12 तक विस्तारित एक अति महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का व्यापक लक्ष्य विद्यालय की प्रभावकारिता में सुधार करना है जिसका मापन शिक्षा के लिए समान अवसर तथा उचित अधिगम परिणामों के संदर्भ में किया जाता है।
योजना के बारे में
- विद्यालयी शिक्षा पर यह एकीकृत केंद्र प्रायोजित योजना विद्यालय’ की संकल्पना के अंतर्गत प्री-स्कूल, प्राइमरी, अपर प्राइमरी, माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्तरों के समेकन की परिकल्पना करती है।
- इस योजना में सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा (TE) जैसी योजनाओं का विलय किया गया है।
- उपर्युक्त सभी केंद्र प्रायोजित योजनाएं (SSA, RMSA तथा TE) मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) की प्रमुख विद्यालयी शिक्षा विकास योजनाएं हैं। इन योजनाओं का क्रियान्वयन MHRD द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर किया जा रहा है।
इन सभी योजनाओं के साझा उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- गुणवत्तापूर्ण विद्यालयी शिक्षा के विस्तार के माध्यम से पहुँच में वृद्धि करना;
- वंचित समूहों तथा कमजोर वर्गों के समावेशन के माध्यम से समता को बढ़ावा देना; तथा
- सभी के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना।
योजना का लक्ष्य शिक्षा हेतु सतत विकास लक्ष्य (SDG) के अनुरूप प्री-स्कूल से उच्च माध्यमिक स्तर तक समावेशी और समतापूर्ण गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करना है। इस योजना के अंतर्गत शैक्षणिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों (EBBs), चरमपंथ प्रभावित राज्यों, विशेष फोकस जिलों (SFDs), सीमावर्ती क्षेत्रों तथा 115 आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी जाएगी।
सतत विकास लक्ष्य 4.1 (SDG 4.1)
- 2030 तक यह सुनिश्चित करना कि सभी लड़के और लड़कियाँ नि:शुल्क, न्यायोचित तथा गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक और
माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करें, जिससे प्रासंगिक एवं प्रभावी अधिगम परिणामों को प्राप्त किया जा सके।
सतत विकास लक्ष्य 4.5 (SDG 4.5)
- 2030 तक, शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता का उन्मूलन करना तथा नि:शक्तजनों, स्थानीय लोगों तथा सुभेद्य परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों सहित सभी सुभेद्य वर्गों की शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के सभी स्तरों तक समान
पहुँच सुनिश्चित करना।
अनुसरणीय सिद्धांत
ये सिद्धांत सर्व शिक्षा अभियान में सुधार के सन्दर्भ में अनिल बोर्दिया समिति की रिपोर्ट पर आधारित हैं।
- शिक्षा का समग्र दृष्टिकोण (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 के अनुरूप): इसमें पाठ्यचर्या, शिक्षक शिक्षा, शिक्षण
योजना एवं प्रबंधन हेतु महत्वपूर्ण निहितार्थों के साथ सम्पूर्ण विषय सूची तथा शिक्षा की प्रक्रिया का सुव्यवस्थित पुनर्निर्माण करना शामिल है। - निष्पक्षता और पहुँच: इसका अर्थ केवल समान अवसर अथवा एक निर्दिष्ट दूरी के अंतर्गत विद्यालय का सुलभ होना नहीं है। बल्कि ऐसी परिस्थितियों का सृजन करना है जिसमें समाज के वंचित वर्ग जैसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति, मुस्लिम अल्पसंख्यक, भूमिहीन कृषि श्रमिकों के बच्चे तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चे इत्यादि अवसरों का लाभ उठा सकें।
- लैंगिक चिंताएं: इसका आशय लड़कियों को लड़कों के समान सक्षम बनाने का प्रयास करना ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986/92 के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का अवलोकन करना अर्थात् महिलाओं की प्रस्थिति में आधारभूत परिवर्तन लाने हेतु एक निर्णायक हस्तक्षेप करना भी है।
- शिक्षकों को केंद्र में रखना: शिक्षकों को महत्व प्रदान करना ताकि वे कक्षा के अंदर तथा कक्षा के बाहर भी, बच्चों के लिए एक समावेशी परिवेश का सृजन करने के लिए प्रेरित हो सकें। इससे विशेषकर उत्पीड़ित और हाशिये पर स्थित वर्गों की बालिकाओं हेतु एक समावेशी परिवेश का सृजन करेगा।
- नैतिक बाध्यता: दंडात्मक प्रक्रियाओं पर बल देने के स्थान पर माता-पिता, शिक्षकों, शैक्षणिक प्रशासकों तथा अन्य हितधारकों
पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम के माध्यम से नैतिक बाध्यता अधिरोपित की गई है।
शैक्षणिक प्रबंधन की कन्वर्जेंट और एकीकृत प्रणाली: शिक्षा का अधिकार कानून के क्रियान्वयन हेतु शैक्षणिक प्रबंधन की कन्वर्जेंट और एकीकृत प्रणाली एक पूर्वापेक्षा है। सभी राज्यों को यथासंभव उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।
इस योजना के महत्वपूर्ण घटक
प्री-स्कूल शिक्षा
- लड़कियों को उनके भाई/बहन की देखभाल सम्बन्धी उत्तरदायित्वों से मुक्त करने में उनकी शिक्षा हेतु एक अनिवार्य आगत के
रूप में पूर्व बाल्यावस्था देखभाल को व्यापक रूप से अभिस्वीकृत किया गया है। इसके परिणामस्वरूप स्कूल में उनकी नियमित उपस्थिति दर्ज की जा सकती है और प्री-स्कूल के बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने में सहायता मिलती है। - महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए एक व्यापक कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है। यद्यपि छोटे कस्बों में प्री-स्कूल की मांग में वृद्धि हुई है परन्तु केवल 1% बच्चों का ही इसमें नामांकन हुआ है।
- अतः समग्र शिक्षा अभियान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की समेकित बाल विकास योजना (ICDS) के साथ वृहत अभिसरण के माध्यम से प्री-स्कूल शिक्षा के क्षेत्र को मजबूत करेगा।
विद्यालय तक पहुँच, अवसंरचनात्मक विकास तथा विद्यालय में बच्चों का प्रतिधारण
विद्यालय तक पहुँच:
- इसमें परम्परागत रूप से बहिष्कृत वर्गों यथा- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सर्वाधिक वंचित समूहों के अन्य
वर्गों, मुस्लिम अल्पसंख्यक, सामान्य वर्ग की लड़कियों तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शैक्षणिक आवश्यकताओं
तथा कठिनाइयों के बारे में समझ विकसित करना शामिल होगा। - विद्यालय तक पहुँच का आशय अन्य वंचित वर्गों के बच्चों की आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं का समाधान करना होगा।
उदाहरणार्थ – प्रवास से प्रभावित बच्चे, शहरी वंचित बच्चे, निम्न श्रेणी के समझे जाने वाले व्यवसायों में संलग्न परिवारों के बच्चे तथा आवासहीन, ट्रांसजेंडर और अन्य सभी श्रेणियों के वे बच्चे जिन्हें स्कूली शिक्षा तक पहुँच और उसमें भागीदारी
करने हेतु अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है।
संयुक्त/एकीकृत विद्यालय:
लम्बवत एकीकरण को प्रोत्साहित करते हुए प्री-स्कूल से 12वीं कक्षा तक विद्यालयी शिक्षा के सभी स्तर एक ही स्थान पर उपलब्ध होने चाहिए।
SDMIS के माध्यम से बच्चों की निगरानी:
- योजना का उद्देश्य सभी बच्चों की निगरानी के माध्यम से प्री-स्कूल से उच्च माध्यमिक विद्यालय तक 100% प्रतिधारण (Retention) के लक्ष्य को प्राप्त करना है। राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्टूडेंट डेटा मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (SDMIS) के माध्यम से बच्चों की निगरानी कर सकते हैं।
सार्वभौमिक पहुँच हेतु मानचित्रण:
विद्यालयों की वर्तमान उपलब्धता, अंतरालों की पहचान अर्थात् असेवित क्षेत्र या अधिवासों की पहचान तथा संभावित समाधानों के माध्यम से पहचाने गए असेवित क्षेत्रों/अधिवासों को विद्यालय तक पहुंच प्रदान करने की योजना के संबंध में एक स्पष्टता होनी चाहिए।
गुणवत्तापूर्ण हस्तक्षेप
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 के अनुसार, नई योजना विद्यार्थी के संज्ञानात्मक विकास, मूल्यों एवं उत्तरदायी नागरिकता की अभिवृत्ति को प्रोत्साहित करने में शिक्षा की भूमिका तथा रचनात्मक व भावनात्मक विकास के पोषण पर
ध्यान केन्द्रित करेगी। - इसमें निगरानी तथा अनुसंधान घटक अंतनिर्हित होंगे जैसे पाठ्यचर्या सुधार, शिक्षक शिक्षा एवं परीक्षा में सुधार तथा सभी
क्षेत्रों से हितधारकों की भागीदारी को सुनिश्चित करना। - विद्यालयी शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए अस्थायी उपायों के रूप में विद्यालयी शिक्षा प्रदान करने हेतु संबंधित क्षेत्रों में
नियमित, पूर्णकालिक विद्यालयी शिक्षा की सुविधा उपलब्ध होने तक ब्रिज कोर्स संचालित किया जा सकता है। - ग्रामीण-शहरी विभाजन तथा क्षेत्रीय असमानताओं को भी कम करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) के अनुसार, विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से एक विद्यार्थी के समग्र विकास हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए:
- ज्ञान को विद्यालय के बाहर जीवन से जोड़ना;
- शिक्षा को रटने की पद्धति से अलग करना;
- बच्चों के समग्र विकास हेतु पाठ्य पुस्तक केन्द्रित बने रहने के स्थान पर पाठ्यचर्या को समृद्ध बनाना;
- कक्षा में परीक्षाओं को अधिक लचीला एवं एकीकृत बनाना तथा
- देश की लोकतांत्रिक राजव्यवस्था के भीतर एक ऐसी पहचान को पोषित करना जिसमें रूढ़ियों और स्थापित मान्यताओं को अस्वीकार करने का साहस तथा समाज के व्यापक हित को समझने की क्षमता हो।
विद्यालयी शिक्षा में ICT उपकरणों का प्रयोग
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) आधुनिक समाज के आधारभूत घटकों में से एक बन चुकी है। अतः विद्यालयी शिक्षा के नवीन दृष्टिकोण में सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों तथा शिक्षा प्रदाताओं (टीचर एजुकेटर्स) की एक अत्याधुनिक ICT और IT सक्षम शैक्षिक परिवेश, उपकरणों और डिजिटल संसाधनों तक सार्वभौमिक, न्यायोचित, निर्बाध और नि:शुल्क पहुँच
सम्मिलित है।
शिक्षा का व्यावसायीकरण
- यह उन व्यावहारिक विषयों तथा पाठ्यक्रमों के समावेश को संदर्भित करता है जो छात्रों के मध्य उस मौलिक ज्ञान, कौशल
एवं प्रकृति को उत्पन्न करने में सक्षम है जिससे वे कुशल श्रमिक या उद्यमी बनने हेतु प्रेरित एवं तैयार होते हैं। यह योजना विद्यालयों में कौशल विकास पर बल देगी। - इसे शैक्षिक अवसरों में विविधता प्रदान करने, व्यक्ति की रोजगार क्षमता में वृद्धि करने तथा व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने हेतु एक उपकरण के रूप में देखा जा सकता है।
- विद्यालयी शिक्षा का व्यावसायीकरण कक्षा 11 से 12 तक सामान्य शिक्षा के विषयों के साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के
आरम्भ के लिए निधि का प्रबंधन करेगा। - व्यावसायिक विषयों को माध्यमिक स्तर पर एक अतिरिक्त या अनिवार्य विषय के रूप में तथा उच्च माध्यमिक स्तर पर अनिवार्य (चयनित) विषय के रूप में लागू किया जाएगा।
- व्यावसायिक शिक्षा कक्षा 6 से 8 में भी उपलब्ध होगी। इसका उद्देश्य छात्रों को किसी क्षेत्र में विभिन्न व्यवसायों हेतु आवश्यक कौशल अर्जित करने के साथ ही उन्हें उसके अनुरूप स्वयं को ढालने का अवसर प्रदान करना तथा उन्हें उच्च कक्षाओं में अपनी पसंद के विषयों का चयन करते समय एक सुविज्ञ निर्णय लेने में सक्षम बनाना है।
- शिक्षा के व्यावसायीकरण का आरंभ माध्यमिक स्तर पर विद्यालय छोड़ने की उच्च दर को लगभग 18% तक कम कर सकता है।
- यह अकादमिक और व्यावहारिक अधिगम (उद्योग हेतु आवश्यक कौशल) के मध्य अन्तराल को भी कम करने में सहायक
होगा।
विद्यालयी शिक्षा में लैंगिक और समता के मुद्दों का समाधान करना
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह निर्दिष्ट करती है कि शिक्षा को एक परिवर्तनकारी बल होना चाहिए जो महिलाओं के आत्मविश्वास में
वृद्धि कर सके, समाज में उनकी प्रस्थिति में सुधार कर सके तथा असमानताओं के समक्ष चुनौती प्रस्तुत कर सके। - यह योजना बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ पर केन्द्रित होगी।
लड़कियों में ड्रॉप-आउट:
- लड़कियों के नामांकन में महत्वपूर्ण सुधार के बावजूद, वंचित समुदायों की लड़कियों में विद्यालय छोड़ने वाली लड़कियों
की संख्या सर्वाधिक है। इसलिए पहुँच और प्रतिधारण (retention) दोनों को समता का मुद्दा माना जाता है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा मुस्लिम समुदाय की लड़कियां सर्वाधिक सुभेद्य हैं और उनमें विद्यालय छोड़ने की संभावना भी अधिक होती है। - समग्र योजना में अभिगम और प्रतिधारण के संदर्भ में अधिक आयु की लड़कियों पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है।
(जहाँ इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है)। - सहायक उपायों में परिवहन, अनुरक्षण, परामर्श, घरेलू कार्य के भार को कम करने में उनकी सहायता करना, समुदाय
सहायता प्रणाली तथा समस्या की प्रकृति के आधार पर अकादमिक समर्थन सम्मिलित होंगे।
एकीकृत योजना के अंतर्गत कक्षा 12 तक आवासीय और विद्यालयी सुविधाएँ प्रदान करने हेतु उच्च प्राथमिक स्तर पर मौजूदा कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालयों (KGBVs) तथा माध्यमिक स्तर पर कन्या छात्रावासों का विस्तार/अभिसरण किया जाएगा। इन संस्थाओं की निगरानी तंत्र को सुदृढ़ बनाया जाएगा तथा निगरानी प्रक्रियाओं में पंचायती राज संस्थाओं को भी
सम्मिलित किया जाएगा।
विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (CWSN) का शिक्षा में समावेश
यह योजना सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों के विद्यालयों में पढ़ रहे एक से अधिक अक्षमताओं वाले
उन सभी विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को सम्मिलित करेगी जिन्हें निःशक्तजन अधिकार अधिनियम (RPwD Act), 2016 की नि:शक्तता सूची में शामिल किया गया है।
शिक्षक शिक्षा तथा शिक्षक प्रशिक्षण
- विभिन्न समितियों जैसे-कोठारी आयोग (1964-66) एवं चट्टोपाध्याय समिति (1983-85) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
तथा साथ ही नवीन शिक्षा नीति (कस्तूरीरंगन समिति) ने भी शिक्षक शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला है। - समग्र शिक्षा अभियान, इन समितियों द्वारा प्रस्तुत की गई अनुशंसाओं के परिप्रेक्ष्य में SCERTs (राज्य शैक्षिक अनुसंधान
एवं प्रशिक्षण परिषद) 7 SIEs(राज्य शिक्षा संस्थान) / DIETS (जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान) को पुनर्गठित करेगा एवं इन्हें सुदृढ़ बनाएगा। - यह उच्च माध्यमिक स्तर तक के शिक्षकों के सेवा-पूर्व या सेवा के दौरान प्रशिक्षण को सुनिश्चित करेगा।
विद्यालयों का अवस्थिति के आधार पर विलय
(Location-Specific Mergers of School)
- आंध्र प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों ने प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर स्कूलों (स्कूल सुव्यवस्थीकरण, मुख्यधारा में लाना, समामेलन और एकीकरण जैसे नामों के माध्यमों से) को समेकित करने का प्रयास किया गया है।
- केंद्र सरकार द्वारा कम छात्र-संख्या वाले सरकारी विद्यालयों के “विलय” के राजस्थान मॉडल के आधार पर सरकारी संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए लगभग 2,60,000 छोटे सरकारी विद्यालयों का अवस्थिति के आधार पर
विलय करने पर विचार किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि
- 2000-2001 के बाद से सर्व शिक्षा अभियान (SSA) का संचालन किया जा रहा है ताकि सार्वभौमिक पहुँच और प्रतिधारण के लिए विभिन्न पहलें की जा सकें, प्राथमिक शिक्षा में लैंगिक और सामाजिक श्रेणी की रिक्तता को भरा जा सके तथा सीखने की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
- SSA की पहलों में, नये विद्यालय खोलना, विद्यालयों का निर्माण और अतिरिक्त कक्षाओं, शौचालयों एवं पेयजल, शिक्षकों का प्रावधान, निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, यूनिफार्म और सीखने के स्तर में सुधार आदि के लिए सहायता सम्मिलित है।
- सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत, सरकार ने 367,000 विद्यालयों का निर्माण करवाया है। वर्तमान में इसके सभी स्तरों के 15
लाख विद्यालय हैं।
समेकन की आवश्यकता क्यों है?
- सरकार के अनुसार यह “पिछले वर्षों में किये गये स्कूली शिक्षा सुविधाओं के विस्तार और स्कूलों के राष्ट्रव्यापी समेकन कीआवश्यकता पर पुनर्विचार करने का समय है।
- प्रारूप के दिशानिर्देशों के अनुसार, 2015-16 के दौरान कम से कम 1,87,006 प्राथमिक विद्यालय (कक्षा I-V) और 62,988 उच्च प्राथमिक (कक्षा VI-VII) विद्यालयों में 30 से भी कम छात्र थे। इसके अतिरिक्त 7,166 विद्यालयों में किसी भी छात्र का नामांकन नहीं हुआ था। इसके अतिरिक्त 87,000 विद्यालयों में एक ही शिक्षक है।
यह देखा गया कि छोटे विद्यालयों की अधिकता से निम्नलिखित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है:
- संसाधनों की सुलभता।
- सीखने की प्रक्रिया, और
- निगरानी और पर्यवेक्षण
दिशानिर्देश में सुझाये गये समाधान:
- मंत्रालय “बच्चों के सर्वोत्तम हित” में और कम-उपयोग के साथ-साथ अपव्यय को रोकने हेतु जिन विद्यालयों में शिक्षक और
अन्य संसाधन आवश्यकता से अधिक हैं, वहां से उन्हें संसाधनों की कमी वाले विद्यालयों में पुन: आंवटित करेगा। - किसी भी एक बस्ती में, जहाँ दो या दो से अधिक छोटे विद्यालय हैं, वहां बच्चों और संसाधनों को एक साथ संयोजित करने का सुझाव दिया जाता है। यह न केवल बेहतर शिक्षा-शिक्षण वातावरण प्रदान करेगा बल्कि RTE के अनुरूप भी होगा।
- विलय की प्रक्रिया के पश्चात विलय किये गये विद्यालयों को आवश्यक रूप से प्रत्येक राज्य के RTE के नियमों में परिभाषित
नेबरहुड स्कूलों संबंधी मानदंडों का पालन करना चाहिए।
चुनौतियाँ:
- हाल ही में, यह देखा गया था कि सुव्यवस्थीकरण के भाग के रूप में 4,000 सरकारी स्कूलों के विलय ने बालिकाओं के ड्राप आउट रेट (स्कूल छोड़ने की दर) की वृद्धि में योगदान दिया है। छात्रावास और पेयजल की उपलब्धता के अतिरिक्त बालिकाएं अपने नए स्कूलों की दूरी, पर्याप्त कक्षाओं और शौचालयों की कमी तथा अपने पीरियड्स के दौरान अनुभव करने वाली
कठिनाइयों से प्रभावित होती हैं। - विद्यालयों के विलय के उपरांत छात्रों के लिए घर और विद्यालय के बीच आने जाने एवं परिवहन की सुविधाओं के सम्बन्ध में
कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इसके साथ ही विद्यालय बंद करने से पहले स्थानीय स्तर पर परामर्श नहीं किया गया। - यह सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्यों की भावना और शिक्षा के अधिकार को व्यापक बनाने के विरुद्ध हो सकता है।
आगे की राह
भारतीय विद्यालयों को गुणवत्ता और अवसरंचना में सुधार हेतु एक बड़े प्रयास की आवश्यकता है। इस क्षेत्र को सुधारने का कोई भी प्रयास एक सकारात्मक कदम है, परन्तु इसे समयबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए। विद्यालयों के अब विद्यालयों के सन्दर्भ में वर्षों से प्रचलित इनपुट आधारित प्रारूपों की जगह परिणामों पर आधारित दृष्टिकोण पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
- बंद करने से पूर्व निर्माण: विद्यालयों को बंद करने से पहले समेकित विद्यालय में कार्यात्मक विद्यालयी अवसंरचना का
निर्माण और शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए। - कोई भी बच्चा छोड़ा नहीं जाना चाहिए: विद्यालयी समेकन के परिणामस्वरूप किसी भी बच्चे की विद्यालय तक पहुंच
बाधित नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक बच्चे की पहुँच और भागीदारी के माध्यम सुनिश्चित किए जाने चाहिए। यदि समेकन से विद्यालय पहुँचने में कठिनाई होती है तो सभी संभावित परिवहन विकल्पों की खोज की जानी चाहिए। - समेकन से पूर्व परामर्श: समेकन स्थानीय समुदायों के साथ स्कूल की अवस्थिति और परिवहन जैसे मुद्दों पर परामर्श पर
आधारित होना चाहिए।
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