पृथ्वी के ऊष्मा बजट की अवधारणा

प्रश्न: सौर ऊर्जा के अनवरत आपतन के बावजूद, पृथ्वी का औसत तापमान लगभग स्थिर रहता है। इसके पीछे उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए। इस संबंध में, पृथ्वी के ऊष्मा बजट की चर्चा कीजिए और पृथ्वी की सतह पर तापमान के वितरण को नियंत्रित करने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ऊष्मा बजट की अवधारणा की सहायता से, चर्चा कीजिए कि पृथ्वी पर आपतित (incoming) और निर्गत (outgoing) सौर ऊर्जा में संतुलन किस प्रकार स्थापित है।
  • तत्पश्चात चर्चा कीजिए कि किस प्रकार पृथ्वी का औसत तापमान स्थिर रहता है।
  • उन कारकों को सूचीबद्ध कीजिए जो पृथ्वी की सतह पर तापमान के वितरण को नियंत्रित करते हैं।

उत्तर

सौर ऊर्जा के अनवरत आपतन के बावजूद, पृथ्वी ऊष्मा का न तो संचय करती है न ही ह्रास करती है। आपतित ऊष्मा लघु तरंगीय विकिरण के रूप में पृथ्वी द्वारा अवशोषित होती है तथा यह अवशोषित ऊष्मा, पृथ्वी द्वारा दीर्घ तरंगीय विकिरण के रूप में परावर्तित ऊष्मा द्वारा संतुलित होती है। यह संतुलन पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहलाता है।

पृथ्वी का ऊष्मा बजट:

ऊष्मा बजट की अवधारणा में यह माना जाता है कि वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्राप्त सूर्यातप 100 प्रतिशत है। वायुमंडल में ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित, प्रकीर्णित एवं अवशोषित हो जाता है; केवल शेष भाग ही पृथ्वी की सतह तक पहुंचता है।

  • बादलों, हिम और बर्फ से ढंकी सतहों के एल्बिडो प्रभाव के कारण पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से पूर्व लगभग 35 ईकाई अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं।
  • शेष 65 ईकाई अवशोषित होती हैं। इनमें से 14 ईकाई वायुमंडल में और 51 ईकाई पार्थिव विकिरण अर्थात् दीर्घ तरंगीय विकिरण के रूप में अवशोषित होती हैं।
  • इनमें से 17 ईकाई सीधे अंतरिक्ष में विकिरित हो जाती है और शेष 34 ईकाई वायुमंडल द्वारा अवशोषित होती है।
  • वायुमंडल भी अवशोषित 48 ईकाइयों (14 ईकाई सूर्यातप + 34 ईकाई पार्थिव विकिरण से) को पुनः अंतरिक्ष में विकिरित कर देता है। इस प्रकार ऊष्मा की 65 ईकाईयां अंतरिक्ष में वापस चली जाती हैं। इससे सूर्यातप और पार्थिव विकिरण के मध्य संतुलन बना रहता है।

पृथ्वी की सतह पर तापमान के वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक:

  • पृथ्वी का ऊष्मा इंजन- पृथ्वी के लगभग गोलाकार के होने के कारण पृथ्वी की सतह पर विकिरण की मात्रा में भिन्नताएं होती हैं। इस प्रकार, 40 डिग्री उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के मध्य शुद्ध विकिरण संतुलन का अधिशेष (surplus) रहता है जबकि ध्रुवों के पास कमी (deficit) पायी जाती है। हालांकि, वायुमंडलीय और महासागरीय प्रणालियां (जैसे- वैश्विक पवन प्रणाली और महासागरीय धाराएं) उच्च ताप वाले क्षेत्र से निम्न ताप वाले क्षेत्र की ओर ऊष्मा का स्थानान्तरण करके सौर ताप असंतुलन को कुछ सीमा तक कम करने का कार्य करती हैं।
  • अक्षांश- विषुवतीय क्षेत्र से ध्रुवीय अक्षांशों की ओर बढ़ने पर सूर्यातप कम हो जाता है। ऊंचाई- वायुमंडल में निचली परतें अप्रत्यक्ष रूप से पार्थिव विकिरण द्वारा गर्म हो जाती हैं। यही कारण है कि समुद्र तल से कम ऊंचाई वाले स्थानों का तापमान अधिक और अधिक ऊंचाई पर स्थित स्थानों का तापमान कम होता है।
  • समुद्र से दूरी- स्थल की अपेक्षा समुद्र धीरे-धीरे गर्म होता है और धीरे-धीरे ठंडा होता है। समुद्र के निकट स्थित क्षेत्रों पर समुद्र एवं स्थल समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है तथा ऐसे क्षेत्रों में तापमान लगभग समान बना रहता है।

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