सार्वजनिक सेवा आपूर्ति में निजी क्षेत्र की संलग्नता

प्रश्न: भ्रष्टाचार न केवल भारत में सरकार की कार्य-प्रणाली अपितु कारोबार एवं कॉर्पोरेट गतिविधियों को भी विकृत करता है। व्याख्या करते हुए चर्चा कीजिए कि राज्य निजी क्षेत्र में नैतिकता की कमी से किस प्रकार प्रभावी रूप से निपट सकता है।

दृष्टिकोण

  • सार्वजनिक सेवा आपूर्ति में निजी क्षेत्र की संलग्नता के साथ उत्तर प्रारम्भ कीजिए।
  • वर्तमान समय में निजी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने हेतु एक उचित तंत्र के अभाव तथा इसकी आवश्यकता का उल्लेख कीजिए।
  • निजी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के निवारण हेतु समुचित रूप से कौन से उपाय अपनाए जाने चाहिए, चर्चा कीजिए।

उत्तर

शक्ति या प्रभाव के किसी पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा देय सेवा या सुविधा (वह सेवा या सुविधा जो ऐसे व्यक्तियों के अधिकार क्षेत्र में आती है) प्रदान करने हेतु प्राप्त किया गया अवैध परितोषण या विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों के द्वारा सेवा प्रदाता (सरकारी या एक कॉर्पोरेट कार्यालय या एक पंजीकृत सोसाइटी) से अपने पक्ष में कोई निर्णय प्राप्त करना भ्रष्टाचार है। इस प्रकार भ्रष्टाचार वह मूल्य है जो व्यक्ति अपने कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व के निर्वहन के बदले लेता है। यह मूल्य किसी भी लाभ के रूप में यथामौद्रिक या अन्य किसी रूप में हो सकता है।

शक्तियों का यह प्रयोग अवैध हो भी सकता है और नहीं भी। ऐसे अनेक कार्य हैं जिनमें भ्रष्टाचार की संभावना है। भ्रष्टाचार की चर्चा सामान्यतया सरकार के संदर्भ में की जाती है यथा सरकार के भीतर किये जाने वाले समझौते (जैसे-पदोन्नति हेतु अनुशंसा करना) अथवा सरकार एवं नागरिकों या निजी संस्थाओं के मध्य समझौते (जैसे-एक रियल एस्टेट परियोजना को अनुमोदन)। हालाँकि, शक्तियों के प्रयोग के तत्व के सन्दर्भ में भ्रष्टाचार निजी क्षेत्र में भी गहनता से व्याप्त है। सार्वजनिक सेवाओं की अदायगी में निजी क्षेत्र की संलग्नता से इस तत्व में वृद्धि हुई है।

अनेक क्रियाकलाप हैं जहाँ निजी गतिविधियों में भ्रष्टाचार प्रकट होता है। कार्टेलाइज़ेशन और बाजार में मूल्यों का हेर-फेर करना, कृत्रिम अभाव का सृजन करना, इनसाइडर ट्रेडिंग, न्यासित (entrusted) शक्तियों या संसाधनों का निजी लाभ हेतु प्रयोग (जैसे कि ICICI बैंक द्वारा सार्वजनिक धन का उपयुक्त जांच के बिना ऋण देने हेतु प्रयोग करना) तथा लेखा-परीक्षकों द्वारा कंपनियों के बही खातों में की गयी धोखाधड़ी को प्रकट न करना आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। यद्यपि इन गतिविधियों में से अधिकांश कानून के तहत विनियमित या प्रतिबंधित हैं, परन्तु विभिन्न रचनात्मक साधनों के प्रयोग द्वारा इन कानूनों की प्राय: उपेक्षा की जाती है। अत: इस मुद्दे के समाधान हेतु कठोर कानूनों, विनियामक निकायों और साथ ही सुदृढ़ नैतिक सिद्धांतों की आवश्यकता है।

यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार से निपटने हेतु सांविधिक ढांचा मौजूद है, परन्तु निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार के निवारण के लिए किसी उचित तंत्र का अभाव है। निजी क्षेत्र में किया जाने वाला भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में नहीं आता। हालांकि, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में किए गए हालिया संशोधनों के पश्चात् यदि निजी क्षेत्र या उसके द्वारा नियोजित कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण को रिश्वत देने में संलिप्त पाया जाता है तो उसे रिश्वतखोरी के अवप्रेरण के अपराध हेतु दण्डित किए जाने का प्रावधान है।

निजी क्षेत्र में नैतिकता हेतु आवश्यक उपाय:

  • अनेक गैर-सरकारी संगठन सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं तथा सार्वजनिक धन का व्यय करते हैं। इस संदर्भ में यह वांछनीय होगा कि ऐसे संगठनों द्वारा नियोजित व्यक्ति भी सार्वजनिक सेवकों की भांति समान जांच और उत्तरदायित्व के स्तरों के अधीन हों।
  • प्रासंगिक निजी संस्थाओं में सत्यनिष्ठा के रक्षोपायों के रूप में मानकों और प्रक्रियाओं के विकास तथा आचार संहिता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बार एसोसिएशन, चिकित्सा परिषद, द इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया (ICAI) आदि पेशेवर निकायों को, उनके सदस्यों द्वारा पेशेवर नैतिकता को बनाए रखने से सम्बंधित प्रावधान बनाने चाहिए।
  • निजी क्षेत्र में लेखांकन और लेखा परीक्षा मानकों में वृद्धि की जानी चाहिए। इसके साथ ही जहां उचित हो, वहां ऐसे उपायों के अनुपालन में विफलता की स्थिति में प्रभावशाली, आनुपातिक और निवर्तक (समस्या को दूर करने वाले) नागरिक, प्रशासनिक या आपराधिक दंड आरोपित किये जाने चाहिए।
  • सार्वजनिक विभागों में सतर्कता प्रकोष्ठों (vigilance cells) की भांति सार्वजनिक सेवाओं को उपलब्ध कराने वाली निजी संस्थाओं में भी सतर्कता प्रकोष्ठों का सृजन किया जाना चाहिए। साथ ही शिकायत निवारण तंत्र की भी स्थापना की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट जगत में वित्तीय धोखाधड़ी हेतु बहु-विषयक गम्भीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय ( Serious Fraud investigation Office: SFIO) की क्षमताओं को और अधिक सुदृढ़ तथा संवर्द्धित करते हुए एक अधिक संगठित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • बेईमानीपूर्ण आचरण की प्रथाओं को रोकने हेतु कंपनी अधिनियम में संशोधन के द्वारा त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) का निजी क्षेत्र तक विस्तार किया जाना चाहिए। इस कार्यवाही से निजी अस्पतालों द्वारा ग्राहकों की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर ओवर बिलिंग करने जैसी कुप्रथाओं का निवारण किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त इसे एक आपराधिक कृत्य स्वीकार करते हुए दंडनीय बनाया जाना चाहिए।

वस्तुतः निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार से निपटने हेतु एक सक्षम विधिक ढाँचे की उपस्थिति अनिवार्य है तथा साथ ही बिज़नेस के विद्यार्थियों के मध्य ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के मूल्यों को अन्तर्विष्ट करना अत्यंत आवश्यक है।

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