भारत में बाल विवाह के प्रचलन : गैर-कानूनी घोषित किए जाने के बावजूद बाल विवाह के प्रचलन में बने रहने के कारण
प्रश्न: नाबालिग विवाह को गैरकानूनी घोषित किए जाने के बावजूद, यह संपूर्ण भारत में व्याप्त है। इसके कारणों की व्याख्या करते हुए, इसके रोकथाम के मार्ग में विद्यमान चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। इन चुनौतियों के समाधान हेतु क्या किया जा सकता है?
दृष्टिकोण
- भारत में बाल विवाह के प्रचलन का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए, आकंड़ों के द्वारा इसकी पुष्टि कीजिए।
- इस प्रथा को समाप्त करने के लिए विद्यमान विभिन्न संवैधानिक, कानूनी और नीतिगत उपकरणों को सूचीबद्ध कीजिए।
- गैर-कानूनी घोषित किए जाने के बावजूद बाल विवाह के प्रचलन में बने रहने के कारणों एवं इसके रोकथाम के मार्ग में विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
- इस समस्या से निपटने के लिए आगे की राह सुझाते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
गैर-कानूनी होने के बावजूद भारत में बाल विवाह की प्रथा मजबूती से जड़ें जमाए हुए है। यूनिसेफ के एक अध्ययन के अनुसार विश्व में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या भारत में है।
निम्नलिखित कदम उठाये जाने के बावजूद भारत में नाबालिग विवाह की प्रथा अनवरत जारी है:
- कानूनों का अधिनियमन: बाल-विवाह निषेध अधिनियम 2006 , किशोर न्याय अधिनियम, बच्चों का लैंगिक अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act), 2012 आदि।
- विवाह की आयु में देरी के लिए लाई गई पहलें, जैसे- बच्चों के लिए कार्यवाही की राष्ट्रीय योजना, 2016 एवं राष्ट्रीय बाल नीति, 2013
- CEDAW, बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन, UNFPA जैसी वैश्विक पहलों में भागीदारी।
उचित प्रयोजन से उठाए गए उपरोक्त क़दमों के उद्देश्यों को प्राप्त करने में निम्नलिखित बाधाएं हैं:
- पितृसत्तात्मक समाज: प्रतिबंधात्मक नियम लड़कियों की भूमिका को बेटी, पत्नी व माँ तक सीमित कर देते हैं।
- निर्धनता: निर्धनता और वैवाहिक व्ययों जैसे- दहेज आदि के चलते परिवार अपनी बच्चियों का विवाह कम आयु में करने को प्रवृत होते हैं ताकि विवाह की लागतें घटाई जा सकें।
- शिक्षा और कम आयु में विवाह: लड़कियों के लिए शिक्षा के कम अवसर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- सामाजिक, सामुदायिक और लैंगिक मानदंड: लड़कियों और महिलाओं के यौन आचरण को नियंत्रित करने के लिए यौवनारम्भ में ही इनके विवाह की व्यवस्था कर दी जाती है।
चुनौतियाँ
- अपर्याप्त मशीनरी, संरचना और अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण विभिन्न प्रावधान प्रभावी रूप से व्यवहार में नहीं लाए जा सके हैं।
- बाल विवाह की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए कार्यक्रमों और नीतियों में अन्तराल है। उदाहरण के लिए बालकों और बालिकाओं के लिए ज्यादातर कार्यक्रम और योजनाएं अपारदर्शी ढंग से डिजाईन की जाती हैं।
- कानून निर्माण में नारीवादी दृष्टिकोण का अभाव: उदाहरणस्वरूप लड़कों और लड़कियों की विवाह योग्य आयु में अंतर है।
- सामाजिक दबाव: माता-पिता पर अपनी बेटियों का जितना जल्दी हो सके, विवाह कर देने का दबाव होता है।
- बाल विवाह से संबंधित दांडिक प्रावधानों के संबंध में जागरुकता का अभाव।
आगे की राह
- बालविवाह के सर्वाधिक मामलों वाले क्षेत्रों के लिए राज्य एवं जिला स्तर की योजनाओं का विकास किया जाए।
- विवाह का पंजीकरण अनिवार्य, सरल और प्रयोगकर्ता के लिए अनुकूल बनाए जाने की आवश्यकता है।
- उन निर्धन परिवारों के लिए उचित आर्थिक सहायता का प्रावधान जो अपनी लड़कियों का विवाह कम आयु में करने के लिए विवश हैं। इस हेतु धनलक्ष्मी, भाग्यलक्ष्मी जैसी योजनाओं को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है।
- कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाए और बाल-विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को सख्ती के साथ लागू किया जाए।
- सिविल सोसाइटी समूहों की मदद से निगरानी समूहों की स्थापना, जागरूकता का प्रसार आदि।
- उन क्षेत्रों में, जहाँ बाल विवाह प्रचलित है, समुदायों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने हेतु धर्म गुरुओं के शक्तिशाली वर्ग को इस अभियान से जोड़ना।
- बालिकाओं के दुर्व्यापार और उनके प्रति हिंसा के कृत्यों को रोका जाए ,क्योंकि ये कृत्य बालविवाह से परस्पर संबद्ध होते हैं।
- नवविवाहित किशोरियों पर ध्यान देने और उन्हें सहायता दिए जाने की आवश्यकता है,क्योंकि वे अत्यधिक असुरक्षित होती हैं और शारीरिक व यौन हिंसा के मामले में उच्च जोखिम का सामना करती हैं।
बाल विवाह की प्रथा के पूर्णतः उन्मूलन के लिए, इस विषय की विस्तृत समझ पर आधारित एक स्पष्ट दिशा-निर्देश व रणनीति विकसित किए जाने की आवश्यकता है। मात्र क़ानून व नीतियाँ बनाने की अपेक्षा सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से परिवर्तन लाए जाने की आवश्यकता है।
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