भारतीय व्यवस्थापिका में अध्यक्ष की स्थिति

प्रश्न: भारतीय विधायिकाओं में अध्यक्ष (Speaker ) को प्रदान की गई महत्वपूर्ण प्रस्थिति वस्तुतः उन्हें अनुचित राजनीतिक दवाबों एवं प्रोत्साहनों से सुरक्षित करना आवश्यक बनाती है। परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय व्यवस्थापिका में अध्यक्ष की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए परिचय दीजिए। 
  • हमारी राजव्यवस्था के कुछ ऐसे दृष्टांतों पर चर्चा कीजिए जहाँ सदन के अध्यक्ष ने स्पष्ट दिखने वाले राजनीतिक निर्णयों से राजनीतिक संकट उत्पन्न कर दिया हो।
  • उन प्रावधानों और उपायों की चर्चा कीजिए जो अध्यक्ष को अनुचित राजनीतिक दबावों और प्रोत्साहनों से बचाने में सहायक हो सकते हैं।
  • उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर समापन कीजिए।

उत्तर

हमारे संसदीय लोकतंत्र में अध्यक्ष के पद की महत्वपूर्ण भूमिका है। अध्यक्ष को संसदीय लोकतंत्र की परम्पराओं के सच्चे अभिभावक के रूप में देखा जाता है। अध्यक्ष की महत्वपूर्ण स्थिति को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है:

  •  लोकसभा अध्यक्ष सदन के भीतर कार्यवाही का संचालन करता है और निर्णय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं। वे सदन में अनुशासन और शिष्टाचार बनाये रखते हैं और किसी सदस्य को उसके उद्दण्ड व्यवहार के लिए निलंबित करके दंडित कर सकते हैं।
  • वे विभिन्न प्रकार के प्रस्तावों और संकल्पों जैसे अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव को नियमानुसार प्रस्तुत करने की अनुमति देते हैं।
  • दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत एक सांसद या विधायक को अयोग्य घोषित करने की शक्ति सदन या विधान सभाओं के पीठासीन अधिकारी को प्राप्त है।

इन कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए संविधान में अध्यक्ष के पद को अनुचित राजनीतिक दबाव से बचाने के लिए कई सुरक्षा उपबंध किए गए हैं, उदाहरण के लिए, कार्यकाल की सुरक्षा, वेतन-भुगतान का भारत की संचित निधि पर भारित होना, उनके आचरण पर चर्चा केवल मूल प्रस्ताव पर ही किया जाना इत्यादि।

यद्यपि, संविधान में अध्यक्ष की परिकल्पना एक निष्पक्ष पद के रूप में की गयी है परन्तु हमारी राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ अध्यक्ष की कार्यवाही ने कई चिंताएँ उपस्थित कर दी हैं। उदाहरण के लिए:

  • आधिकारिक रूप से अपने दल को न त्यागने अथवा पार्टी के निर्देशों आदि की अवज्ञा न किए जाने के बावजूद अरुणाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के 16 विधायकों और उत्तराखंड विधानसभा के 9 विधायकों को 2016 में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया।
  • लोकसभा अध्यक्ष द्वारा आधार विधेयक 2016 को धन-विधेयक घोषित करने से सम्बंधित विवाद। इसलिए, वर्तमान सुरक्षा उपायों के अतिरिक्त कुछ अन्य कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए:
  • सदस्यों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय करने की शक्ति चुनाव आयोग को सौंपी जा सकती है।
  • अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के पश्चात संबंधित व्यक्ति को दल की सदस्यता से त्यागपत्र दे देना चाहिए, जैसा कि ब्रिटेन जैसे परिपक्व लोकतंत्र में किए जाने की परंपरा है। इसके अतिरिक्त अगले आम चुनाव में उनके निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचन नहीं होना चाहिए।
  • अध्यक्ष द्वारा गैर-पक्षपाती कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक आम सहमति के माध्यम से लोकतान्त्रिक प्रथाओं को विकसित किया जाना चाहिए।

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