विश्व स्तर पर अग्रणी शक्ति बनने की भारत की तैयारियों के संबंध में संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: विश्व स्तर पर एक अग्रणी शक्ति बनने की भारत की अभिलाषा के आलोक में, अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उभर रहे प्रमुख मुद्दों को हल करने के प्रति वांछित परिणामों को प्राप्त करने की इसकी क्षमता और तैयारियों का आकलन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • विश्व स्तर पर अग्रणी शक्ति बनने की भारत की तैयारियों के संबंध में संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रमुख उभरते हुए मुद्दों और इस सन्दर्भ में भारत की स्थिति की चर्चा कीजिए।
  • इन मुद्दों के आलोक में, इस सन्दर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों की चर्चा कीजिए।
  • वांछित परिणामों को प्राप्त करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति का सुझाव दीजिए।

उत्तर

आर्थिक, लोकतांत्रिक और जनसांख्यिकीय स्थिति को देखते हुए, भारत के पास बहुध्रुवीय विश्व में अग्रणी शक्ति बनने के लिए सभी आधारभूत क्षमताएं विद्यमान हैं। फिर भी, इन क्षमताओं को वास्तविकता में परिवर्तित करने एवं वांछित परिणामों की प्राप्ति हेतु लक्ष्यों को परिभाषित करने तथा संसाधनों को संगठित करने की आवश्यकता है। यह ऐसे विश्व के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जो परस्पर निर्भर है और जिसे पारदेशीय प्रकृति के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। निम्नलिखित कारकों के आधार पर भारत की क्षमता की जाँच की जा सकती है:

  • जनसांख्यिकी: कार्यशील आयु वर्ग की बढ़ती जनसंख्या भारत की बेहतर स्थिति को इंगित करती है। देश में संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश विद्यमान है।
  • लोकतंत्र: लोकतांत्रिक संस्थानों की सफलता ने सहभागिता को सुदृढ़ता प्रदान करने के साथ-साथ नीति निर्माण में स्थिरता और पूर्वानुमाने की क्षमता प्रदान की है।
  • तकनीकी कौशल: भारत में तकनीकी रूप से कुशल मानव संसाधनों की विशाल क्षमता विद्यमान है।
  • डायस्पोरा: हाल ही में, भारतीय डायस्पोरा भारतीय प्रभाव और छवि के एक प्रमुख घटक के रूप में उभरा है। साथ ही डायस्पोरा के साथ संलग्नता को पुनर्संरचित किया जा रहा है।
  • अर्थव्यवस्था: भारत की सतत आर्थिक वृद्धि ने वांछित परिणामों को प्राप्त करने की अपनी क्षमता को आगे बढ़ाया है।

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कई उभरते मुद्दों के प्रति भारत से उचित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है:

  • जलवायु परिवर्तन: भारत को अपने आर्थिक विकास की संभावनाओं को जोखिम में न डालते हुए देश के उच्च कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए मध्य मार्ग खोजना चाहिए।
  • वैश्विक संबंधों में बदलाव: रणनीतिक साझेदारी के गठन से अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता को रूस के साथ पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हुए सहजता से संतुलित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, चीन के उद्भव के कारण, भारत को अपने निकटतम पड़ोसी देशों, अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों में अपनी संलग्नता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक अभिशासन अर्थात विश्व बैंक और IMF जैसे पुराने संस्थानों तथा AIIB और NDB जैसे नए संस्थानों के मध्य संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
  • मानवीय मुद्दे: भारत को रोहिंग्या संकट जैसे मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को विदेशी नीति के मूल सिद्धांतों के आधार पर दृढ़ता एवं स्पष्टता से अभिव्यक्त करने की आवश्यकता है न की अस्पष्ट रूप से।
  • ऊर्जा सुरक्षा: पारंपरिक ईंधन और ऊर्जा की आवश्यकताओं के संदर्भ में भारत आत्मनिर्भर नहीं है। इसके अतिरिक्त, परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्ता देश न होने के कारण, असैनिक परमाणु समझौतों के लिए अथक प्रयास करने पड़ते हैं।
  • ग्लोबल कॉमन्स का अभिशासन: तटीय राष्ट्रों के परे स्थित क्षेत्रों यथा आर्कटिक एवं अंटार्कटिक क्षेत्रों के साथ नई सहयोगी साझेदारी के गठन हेतु आने वाले समय में सावधानीपूर्वक राजनयिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भारत की तैयारियों को निम्नानुसार समझा जा सकता है:

  • भारत UNSC, NSG और अन्य निकायों में अपना वैध स्थान प्राप्त करने हेतु प्रयासरत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करने और अपने राष्ट्रीय हितों के समक्ष उत्पन्न खतरों का सामना करने हेतु, भारत सरकार ने विभिन्न पहलों जैसे कि एक्ट ईस्ट पॉलिसी का पुनरुद्भवन, नेबरहुड फर्स्ट-पॉलिसी, प्रोजेक्ट मौसम, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर, BRICS, SCO, ASEAN जैसे मंचों पर बहुपक्षीय भागीदारी को प्रोत्साहन आदि को प्रारम्भ किया है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत की सॉफ्ट पावर (योग, बॉलीवुड, डायस्पोरा इत्यादि के माध्यम से) की क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित किया जा रहा है।
  • विकास हेतु सहायता और लाइंस ऑफ़ क्रेडिट के माध्यम से भारत ने अपने आर्थिक लाभ को अन्य देशों के साथ साझा करने का प्रयास किया है।

यद्यपि भारत में अग्रणी शक्ति बनने की उत्सुकता एवं क्षमता विद्यमान है, लेकिन यह आवश्यक रूप से बदलते वैश्विक परिदृश्य और परिवर्तित घरेलू आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त संसाधन और संस्थागत सुदृढ़ता की आवश्यकता है।

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