वर्नाकुलर प्रेस (भारतीय भाषा समाचार पत्र) के बारे में संक्षिप्त परिचय : भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वर्नाकुलर प्रेस द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं और इसके दमन के प्रयास
प्रश्न: भले ही अंग्रेजों ने प्रत्येक संभाव्य अवसर पर इसके दमन का प्रयत्न किया, फिर भी वर्नाकुलर प्रेस (भारतीय भाषा समाचार पत्र) ने स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- वर्नाकुलर प्रेस (भारतीय भाषा समाचार पत्र) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वर्नाकुलर प्रेस द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं और इसके दमन के प्रयासों के बारे में बताइए।
- संक्षेप में उल्लेख कीजिए कि कैसे वर्नाकुलर प्रेस ने उपर्युक्त चुनौतियों से निपटने का प्रयास किया।
- स्वतंत्रता आंदोलन में वर्नाकुलर प्रेस द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
भारत में आधुनिक प्रेस की स्थापना के आरंभ के साथ ही, भारतीय वर्नाकुलर प्रेस ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक विकास, राष्ट्रीय एकीकरण और प्रगति के लिए सर्वाधिक योगदान दिया। हालाँकि इसके साथ ही अंग्रेजों द्वारा इसके दमन हेतु अनवरत प्रयास भी किए गए।
ब्रिटिश शासन द्वारा किए गए दमनकारी कार्य:
यद्यपि कुछ ब्रिटिश अधिकारियों जैसे चार्ल्स मेटकॉफ, लॉर्ड मैकॉले इत्यादि ने प्रेस के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया, तथापि वर्नाकुलर प्रेस को विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यथा:
- सेंसरशिप: विभिन्न प्रेस अधिनियमों द्वारा सभी समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, पम्प्लेट्स और पुस्तकों पर सेंसरशिप आरोपित की गयी जिसमें निर्वासन की सजा का भी प्रावधान था।
- लाइसेंसिंग और विनियमन: लाइसेंसिंग रेगुलेशन एक्ट, 1823 द्वारा कई स्थानीय समाचार पत्रों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए। उदाहरण के लिए, राजाराम मोहन राय की पत्रिका मिरात-उल-अखबार का प्रकाशन बंद करना पड़ा।
- भेदभाव: 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट या ‘मुंह बंद करने वाला अधिनियम’ राजद्रोही लेखों को दबाने और ऐसा करने वाले समाचार पत्रों को दंडित करने हेतु पारित किया गया था। इसके द्वारा अंग्रेजी प्रेस एवं वर्नाकुलर प्रेस के मध्य भेदभाव किया गया था। साथ ही इस कानून के द्वारा कोर्ट में अपील करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया।
- पंजीकरण जमानत की जब्ती: भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910 के द्वारा आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने का दोषी पाए जाने पर किसी समाचार पत्र के प्रकाशक या प्रिंटर या पंजीकरणकर्ता से स्थानीय सरकारों को पंजीकरण जमानत (Registration security) की ज़ब्त करने का अधिकार दे दिया गया।
- देशद्रोह : बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा देश से निर्वासन की सजा देकर 6 वर्ष के लिए मांडले जेल (रंगून) भेज दिया गया था।
- सरकारी सहयोग: देशी भाषा के समाचार पत्रों को किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिला, जबकि ब्रिटिश पत्र-पत्रिकाओं ने विज्ञापन प्रकाशित कर धन कमाया।
भारतीय पत्रकारों ने इन कानूनी बाधाओं से बचने के लिए बुद्धिमतापूर्ण रणनीतियों का विकास किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने सरकार की आलोचना करने वाले लेखों के प्रारंभ में सरकार के प्रति निष्ठापूर्ण भावों को अभिव्यक्त किया अथवा इंग्लैंड के समाचार पत्रों में छपे समाजवादी या आयरिश राष्ट्रवादियों के महत्वपूर्ण लेखों का उद्धरण दिया। कलकत्ता में अमृत बाजार पत्रिका ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के पारित होने के एक सप्ताह के अंदर ही पत्रिका को अंग्रेज़ी साप्ताहिक के रूप में परिवर्तित कर दिया।
स्वतंत्रता आंदोलन में वर्नाकुलर प्रेस द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका:
1857 की क्रांति के पश्चात ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय चेतना के प्रसार हेतु कई प्रभावशाली और प्रसिद्ध समाचार पत्र उभरे तथा वर्नाकुलर प्रेस ने राष्ट्रीय जागरण में अग्रणी भूमिका निभाई।
इसका प्रयोग भारत से बाहर भी लोगों को संगठित करने और आपसी सहयोग को बढ़ाने हेतु किया गया। इसके साथ ही गदर पार्टी के साप्ताहिक प्रकाशन का पहला पत्र उर्दू में प्रकाशित हुआ था, जबकि दूसरे का प्रकाशन गुरुमुखी में हुआ था। भारतीय राष्ट्रवादियों के समक्ष वर्नाकुलर प्रेस एक महत्वपूर्ण साधन था जिसके माध्यम से वे निरंकुश ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विचारों की स्वतंत्रता, सार्वजनिक हितों एवं राष्ट्रीय भावनाओं आदि का प्रसार कर सकते थे। कालांतर में यह सरकारी नीतियों के प्रति और भी मुखर और आलोचनात्मक होता गया।
वर्नाकुलर प्रेस ने सेंसरशिप, जुर्माना और प्रेसों को ज़ब्त किए जाने जैसी घटनाओं के बाद भी सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय जागरण तथा राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसारण और प्रचार को जारी रखा। इसने जनता को शिक्षित किया तथा उनमें सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सुधारों के प्रति समझ विकसित की।
भारतीय वर्नाकुलर प्रेस केवल एक व्यापारिक उपक्रम नहीं था,अपितु इसने राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने के लिए भी कार्य किया। वर्नाकुलर प्रेस ने एक राष्ट्रीय सेवक, प्रचारक, स्वतंत्रता सेनानी की भांति कार्य करने के साथ-साथ ब्रिटिश शोषण से देश की मुक्ति हेतु एक साधन के रूप कार्य किया। भारत के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना इसका मुख्य उद्देश्य था।
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