प्रजनन, मातृत्व, नवजात, बालक एवं किशोर स्वास्थ्य (RMNCH + A)

प्रजनन/मातृत्व (Reproductive/Maternity)

  • कई राज्यों ने स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार करने हेतु वितरण केन्द्रों के परिचालन पर ध्यान केन्द्रित किया है।
    हालांकि, वितरण केन्द्रों को जनसंख्या मानदंडों के आधार पर समायोजित करने की आवश्यकता है।
  • सभी राज्यों में परिवार नियोजन संबंधी सामग्री जैसे गर्भनिरोधक गोलियों इत्यादि की उपलब्धता में वृद्धि हुई है।
  • विभिन्न अंतराल विधियों (spacing methods) में से IUCD (इंट्रायूटरिन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस) का प्रयोग शीर्ष वरीयता बना हुआ है। हालांकि, बहुत कम राज्यों में ही गर्भपात के पश्चात् IUCD की सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
  • सेवा प्रदाताओं तथा समुदाय के मध्य परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (FPIS) के विषय में जागरूकता का अभाव है। महिलाएँ अभी भी परिवार नियोजन तथा अंतिम बंध्याकरण का भार वहन कर रही हैं (इसकी चर्चा जेंडर सेक्शन में की गई है)।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) के प्रारंभ होने के साथ गर्भावस्था के दौरान उच्च जोखिम की पहचान में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। विभिन्न राज्यों ने PMSMA लाभार्थियों को सेवाएं प्रदान करने के लिए निजी स्वास्थ्य / गैरस्वास्थ्य संगठनों (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के भाग के रूप में) लायंस एवं रोटरी क्लब, निजी नर्सिंग कॉलेजों एवं अन्य विभागों के साथ सहयोग किया है।
  • राज्यों में गंभीर एनीमिया (Hb<7) के कारण अभी तक गर्भावस्था अत्यधिक जोखिमपूर्ण बनी हुई है।
  • नर्सिंग स्टाफ में महत्वपूर्ण कौशल जैसे प्रसव के तृतीय चरण के सक्रिय प्रबंधन, नवजात शिशुओं का रिससिटैशन (मृतप्राय अवस्था से पुनर्जीवित करना), मातृत्व से संबंधित जटिलताओं की पहचान एवं प्रबंधन आदि का अभाव है।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) ने लोक व्यवस्था के भीतर स्वास्थ्य देखभाल संबंधी दृष्टिकोण को अधिकार के रूप में बढ़ावा देने में सहायता की है तथा यह आउट ऑफ़ पॉकेट (OOP) व्यय को कम करने में भी सक्षम है।

RMNCH+A के बारे में

RMNCH+A रणनीति प्रजनन, मातृत्व, नवजात, बालक तथा किशोरा स्वास्थ्य के पांच स्तंभों अथवा विषयगत क्षेत्रों में व्यापक देखभाल प्रदान किये जाने पर आधारित है। यह समता, सार्वभौमिक देखभाल, अधिकारिता तथा उत्तरदायित्व के केंद्रीय सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।

इस रणनीति में उल्लिखित “प्लस” निम्नलिखित पक्षों पर केंद्रित है

  •  एक विशिष्ट जीवन चरण के रूप में पहली बार किशोरावस्था को सम्मिलित करना।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को प्रजनन स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, किशोर स्वास्थ्य, HIV, लिंग और गर्भधारण पूर्व एवं
    प्रसूति पूर्व निदान तकनीकों से जोड़ना;
  • गृह एवं समुदाय-आधारित सेवाओं को सुविधा-आधारित देखभाल से जोड़ना; तथा
  • प्राथमिक (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र), द्वितीयक (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) और तृतीयक स्तर (जिला अस्पताल) पर स्वास्थ्य सुविधाओं के मध्य संयोजन, रेफरल तथा काउंटर रेफरल को सुनिश्चित करना।

इस क्षेत्र में सरकार की नवीनतम पहलें

लक्ष्य कार्यक्रम (LaQshya Program): इसका आरम्भ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रसव के दौरान तथा
प्रसव के तत्काल बाद की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता में सुधार हेतु किया गया था। इस प्रकार यह कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करने वाली सभी गर्भवती महिलाओं को सम्मानित मातृत्व देखभाल (RMC) प्रदान करता है। इससे मातृ एवं नवजात शिशुओं की रुग्णता और मृत्यु दर में कमी आएगी।

  •  इसका लक्ष्य 18 महीनों के अन्दर ठोस परिणामों को प्राप्त करने के लिए ‘फास्ट ट्रैक’ हस्तक्षेपों को कार्यान्वित करना है।
    इस कार्यक्रम को सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों, जिला अस्पतालों और प्रथम रेफरल यूनिट (FRU) एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में लागू किया जाएगा।
  • इसके लिए एक बहु-आयामी रणनीति को अपनाया गया है। इस रणनीति के अंतर्गत अवसंरचना का उन्नयन, आवश्यक उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, पर्याप्त मानव संसाधन उपलब्ध कराना, स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं का
    क्षमता निर्माण और प्रसूति कक्ष में गुणवत्ता प्रक्रियाओं में सुधार करना इत्यादि सम्मिलित हैं।
  • प्रसूति कक्ष तथा मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर की गुणवत्ता सुधार का NQAS (राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक) के
    माध्यम से मूल्यांकन किया जाएगा।

संबंधित तथ्य

भारत, मातृ मृत्यु दर (MMR) को पर्याप्त सीमा तक कम करने में सफल रहा है। यह 2001-03 के 301 से घटकर 2011-13 में 167 के स्तर पर पहुँच गयी थी। एक दशक में ही इसमें 45% की प्रभावशाली गिरावट दर्ज की गयी है।

नए गर्भनिरोधक-

मंत्रालय ने दम्पत्तियों की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु दो नए गर्भनिरोधक, ‘अंतरा’ (एक इंजेक्शन योग्य गर्भ निरोधक) तथा ‘छाया’ (गर्भनिरोधक गोली) को प्रारंभ किया है।

  • अंतरा, जन्म को नियंत्रित करने वाले मेड्रॉक्सीप्रोजेस्टरोन एसीटेट (MPA) नामक हार्मोन का एक इंजेक्शन है। यह 3 महीने तक प्रभावी रहता है।
  • ‘छाया’ एक नॉन-स्टेरॉयडल, नॉन-हार्मोनल ओरल गर्भ निरोधक गोली है जो 1 सप्ताह तक ही प्रभावी रहती है।
  • गर्भ निरोधक सभी मेडिकल कॉलेजों तथा जिला अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाएंगे।
  • हाल ही में, महाराष्ट्र महिलाओं को इंजेक्शन योग्य गर्भ निरोधक प्रदान करने वाला देश का प्रथम राज्य बन गया है।

महत्व

  • गर्भ निरोधकों तक पहुंच न केवल विकासशील देशों में गुणवत्तापूर्ण परिवार नियोजन तक पहुंच एवं विकल्पों में वृद्धि करेगी
    बल्कि मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और महिला सशक्तिकरण से संबंधित संकेतकों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा
  • हाल ही में प्रारंभ किए गए गर्भ निरोधक दम्पत्तियों की बदलती आवश्यकताओं को पूर्ण करने के साथ ही महिलाओं को उनकी
    गर्भावस्था के नियोजन एवं दो गर्भधारणों के मध्य अंतराल को बढ़ाने में भी सहायक होंगे।
  • गर्भ निरोधकों का नि:शुल्क वितरण वर्ष 2025 तक 2.1 की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate:TFR) को प्राप्त करने में
    सहायता करेगा। दृष्टव्य है कि यह लक्ष्य मिशन परिवार विकास के अंतर्गत निर्धारित किया गया है। इस प्रकार यह वर्ष 2045
    तक जनसंख्या स्थिरीकरण को भी प्राप्त करने में सहायता करेगा जो भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2002 का लक्ष्य है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • वर्तमान में भारत में कुल विवाहित महिलाओं में से केवल 56% द्वारा ही परिवार नियोजन की कुछ विधियों का उपयोग किया जा रहा है। उनमें से अधिकांश (37%) महिलाओं ने बंध्याकरण जैसे स्थायी तरीकों को अपनाया है।
  • हाल ही के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) IV के आंकड़ों के अनुसार 12.9% प्रतिशत महिलाओं को गर्भ निरोधकों तक पहुँच प्राप्त नहीं है जिससे अवांछित प्रजनन को बढ़ावा मिलता है।

नवजात/शिशु (Neonatal/Child)

  • नवजात शिशु से संबंधित सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है तथा कई राज्यों में आवश्यक नवजात देखभाल सेवाएं
    क्रियाशील हैं।
  • अधिकांश अस्पतालों में नवजात शिशुओं को डिस्चार्ज करने से पहले टीके लगाए जाते हैं। निरपेक्ष मातृ स्नेह (Mother’s Absolute Affection: MAA) कार्यक्रम प्रारंभ होने के पश्चात स्तनपान को शीघ्र आरम्भ करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है। माताओं को विशिष्ट रूप से स्तनपान तथा पूरक भोजन के सम्बन्ध में परामर्श दिया जाता है।
  • टीकाकरण में भी सुधार हुआ है। कोल्ड चेन में व्याप्त अंतराल समाप्त हो गए हैं तथा अब टीके भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। सामुदायिक स्तर पर गृह-आधारित शिशु देखभाल (HBNC) से बीमार नवजात शिशुओं की पहचान करने तथा उन्हें रेफर करने के सम्बन्ध में बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं।
  • कई राज्यों द्वारा कम वजन वाले शिशुओं (Low Weight Babies) के लिए कंगारू मदर केयर (KMC) पद्धति आरम्भ की गयी है। हालांकि इन इकाइयों का उचित ढंग से उपयोग नहीं किया गया है तथा इनमें इनकी क्षमता से अधिक
    (overcrowded) शिशुओं की देखभाल की जा रही है।

किशोरावस्था (Adolescent)

  • किशोरावस्था स्वास्थ्य पर पूर्ण ध्यान न देने से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और इस प्रकार जीवन
    चक्र का एक महत्वपूर्ण चरण उपेक्षित रह जाता है। केवल कुछ ही राज्यों द्वारा राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK) का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • यदि किशोर अनुकूल स्वास्थ्य क्लीनिक (AFHC) उपस्थित भी हैं तो इनमें से अधिकतर या तो क्रियाशील नहीं हैं या उनका
    उचित तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा है।
  • कई राज्य अपने स्कूलों में साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड पूरक (WIFS) कार्यक्रम को तेजी से लागू कर रहे हैं।
    हालाँकि स्वास्थ्य, शिक्षा तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मध्य अंतर्विभागीय समन्वय का अभाव है जिसके परिणामस्वरूप WIFS कार्यक्रम के अंतर्गत की गयी रिपोर्टिग निम्नस्तरीय है।
  • विभिन्न राज्यों में मासिक धर्म स्वच्छता योजना तथा सेनेटरी नैपकिन की व्यवस्था को बेहतर तरीके से संचालित नहीं किया  गया है। यद्यपि सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच का स्तर भिन्न-भिन्न राज्यों के मध्य भिन्न-भिन्न है।

अनुशंसाएं

  • वरीयता प्राप्त सेवा प्रदाताओं को बेहतर प्रशिक्षण, निर्बाध औषधि आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर लॉजिस्टिक्स
    सेवाएं और गुणवत्तापूर्ण सहायक पर्यवेक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
  • सेवाओं की गुणवत्ता को निरंतर बनाए रखने के लिए प्रसूति कक्ष के प्रशिक्षित कर्मचारियों हेतु एक नॉन-रोटेशन नीति को अपनाया जाना चाहिए।
  • प्रशिक्षित परिवार नियोजन प्रदाताओं तथा उनके प्रदर्शन की समीक्षा की मैपिंग की जानी चाहिए, क्योंकि परिवार नियोजन सेवाओं के वितरण में अधिकांश परिवार नियोजन प्रदाताओं का उपयोग नहीं किया जाता है।
  • प्रसव के संचालन संबंधी सभी सुविधाओं के लिए एक कार्यात्मक न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU)/न्यूबॉर्न स्टेबलाइजेशन यूनिट्स (SNSU)/न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर (NBCC) के कर्मचारियों को नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (NSSK) के अंतर्गत प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है। इसके साथ ही उन शिशुओं के लिए सेवाओं को सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जा चुकी है।
  • पोषण पुनर्वास केंद्रों को प्रभावी परिचालन के लिए (विशेष रूप से उच्च आवश्यकता वाले राज्यों में) समर्थन की आवश्यकता है। साथ ही गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों सहित उनके अग्र एवं पश्च संयोजन (फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड लिंकेज) तथा अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके बच्चों के लिए फॉलो-उप सेवाओं को सुनिश्चित किये जाने की भी आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) के अंतर्गत जिला प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्रों (DEIC) को सभी राज्यों में प्राथमिकता के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए क्योंकि यह रेफरल संबंधी कार्यप्रणालियों, रोगी प्रबंधन और अनुवर्ती कार्यवाहियों को बेहतर बनाएगा।

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