प्रोन्नति में आरक्षण (Reservation in Promotion)

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को “विधि के अनुरूप” प्रोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति प्रदान की है।

पृष्ठभूमि

  •  सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश सरकार द्वारा की गई इस शिकायत के प्रत्युत्तर में आया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा पारित अलग-अलग आदेशों के कारण प्रोन्नति में “गतिरोध” की स्थिति है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय सरकार को विभिन्न विभागों में बड़ी संख्या में रिक्तियों पर नियुक्ति करने की अनुमति प्रदान करेगा।
  • ‘विधि के अनुरूप’ वाक्यांश, एम नागराज वाद (2006) में निर्धारित दिशा-निर्देशों की ओर संकेत करता है। ये दिशा-निर्देश वर्तमान में लागू हैं क्योंकि वर्तमान व्यवस्था में प्रोन्नति में आरक्षण से संबंधित कोई विशिष्ट कानून प्रचलित नहीं है।
  •  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि नागराज वाद में दिए गए निर्णय की जांच करने हेतु सात न्यायाधीशों की एक संवैधानिक पीठ का गठन किया जाना चाहिए।

नागराज वाद

नागराज वाद में दिए गए निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे के संबंध में पूर्व के संवैधानिक संशोधन को यथावत रखते हुए राज्य पर कुछ प्रतिबंध आरोपित किए हैं। इनके अनुसार:

  •  राज्य को उस वर्ग के पिछड़ेपन और लोक नियोजन में उस वर्ग के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को प्रदर्शित करने संबंधी मात्रात्मक आंकड़ों को एकत्र करना चाहिए।
  • यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रोन्नति प्रदान करने से प्रशासन की दक्षता कम न हो।
  •  50% की उच्चतम सीमा का उल्लंघन न किया जाए या क्रीमी लेयर को समाप्त न किया जाए अथवा आरक्षण का अनिश्चित काल तक विस्तार नहीं किया जाना चाहिए।

संबंधित वाद और संशोधन

  •  अनुच्छेद 15 (4) राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों के वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए विशेष उपबंध करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • इंदिरा साहनी वाद (1992) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि आरक्षण नीति का प्रोन्नति तक विस्तार नहीं किया जा सकता
  • हालांकि, 77वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 16 में खंड 4A को अंतःस्थापित किया गया और प्रोन्नति में आरक्षण के प्रावधान को पुनस्र्थापित कर दिया।
  • 1990 के दशक में न्यायालय ने निर्णय दिया था कि जल्द प्रोन्नत हुए किसी SC/ST उम्मीदवार का कोई पूर्व समकक्ष यदि बाद में प्रोन्नत होता है तो उसकी वरिष्ठता पुनः उस SC/ST उम्मीदवार के समकक्ष हो जाएगी।
  • हालांकि, 85वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा प्रोन्नत SC/ST व्यक्तियों को “परिणामी वरिष्ठता” प्रदान करने का प्रावधान पुनः लागू कर दिया गया था।

प्रोन्नति में आरक्षण के पक्ष में तर्क:

  • अवसर की समता हेतु- संविधान के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने भी बार-बार अवसर की समता की प्राप्ति के समग्र उद्देश्य से वंचित वर्गों को एक समान अवसर प्रदान करने वाली किसी भी सकारात्मक कार्रवाई के पक्ष में निर्णय दिया है।
  • यद्यपि विभिन्न स्तरों पर SCs/STS के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई है, तथापि पूर्वाग्रहों के कारण वरिष्ठ पदों पर SCs/STS का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम है। वर्षों से संस्थाएं अपने भीतर समानता और आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में विफल रही हैं। 2017 में सरकार में सचिव स्तर के पदों पर SC/ST वर्गों से संबंधित केवल चार अधिकारी थे।
  • सरकार की समग्र कार्यक्षमता को मापना कठिन है और अधिकारियों द्वारा की जाने वाली ‘आउटपुट संबंधी रिपोर्टिंग’ सामाजिक पूर्वाग्रह से रहित नहीं है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में एक सरकारी कर्मचारी को प्रोन्नति से इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि उसका ‘चरित्र और सत्यनिष्ठा उत्तम दर्जे के नहीं थे।

प्रोन्नति में आरक्षण के विपक्ष में तर्क:

  •  संविधान के अनुच्छेद 16(4), 16(4A) और 16(4B) के अंतर्गत किए गए प्रावधान केवल सक्षमकारी प्रावधान हैं, मूल अधिकार नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने एक वाद में निर्णय दिया था कि एम्स के सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक में फैकल्टी के पदों के लिए नियुक्ति में | प्रोन्नति में कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया जाएगा।
  •  नियोजन और पद प्राप्त करने से सामाजिक भेदभाव की समाप्ति सुनिश्चित नहीं होती है। अतः, इसे पिछड़ेपन की गणना करने के  लिए एकमात्र मापदंड के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  •  प्रोन्नति में आरक्षण प्रशासन की दक्षता को हानि पहुंचा सकता है।

अभी तक प्रोन्नति प्रक्रिया में अस्पष्टता और अनिश्चितता विद्यमान है। अतः एक नये व्यापक कानून को अधिनियमित किए जाने की आवश्यकता है।

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