शासन (GOVERNANCE)

परिचय शासन वह तरीका एवं कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा किसी संगठन या देश का सर्वोच्च स्तर पर प्रबंधन किया जाता है। एक शांतिपूर्ण और उत्पादक समाज प्रभावी राज्य संस्थाओं पर आधारित होता है।

  •  इस अर्थ में सुशासन का आशय एक ऐसी प्रभावी और कुशल संरचना से है जो नागरिकों को उनकी इच्छाओं और अवसरों के अनुरूप एक सुरक्षित और उत्पादक जीवन जीने में अधिकतम सहयोग प्रदान करती है। इसके अंतर्गत लोकतंत्र, कल्याणकारी राज्य और विधि का शासन सम्मिलित है।
  • इसका उद्देश्य एक ऐसा परिवेश प्रदान करना है जिसमें जाति और लिंग की विविधता के बावजूद सभी नागरिक अपनी पूर्ण क्षमता का विकास कर सकें। इसका उद्देश्य नागरिकों को प्रभावपूर्ण, कुशल और समान सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करना भी है।
  • राज्य व्यक्तिगत क्षमताओं के निर्माण और निजी पहल को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनुकूल राजनीतिक, वैधानिक और आर्थिक परिवेश सृजित करने के लिए उत्तरदायी है।

सुशासन की अवधारणा चार स्तंभों पर आधारित है। संक्षेप में ये चार स्तंभ निम्नलिखित हैं

  • लोकाचार (Ethos): नागरिकों की सेवा की भावना,
  •  नैतिकता (Ethics): ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता
  • समता (Equity): सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना तथा कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति, तथा
  • दक्षता (Efficiency): नागरिकों को बिना उत्पीड़न के सेवाओं का तीव्र और प्रभावी वितरण सुनिश्चित करना तथा ICT का उत्तरोत्तर उपयोग।

सुशासन के समक्ष बाधाएं

  • सिविल सेवकों की अभिवृत्ति संबंधी समस्याएं: इसे उनके कठोर, स्वयं को स्थायी बनाए रखने (self-perpetuating) और अंतर्मुखी दृष्टिकोण (inward-looking approaches) के संदर्भ में देखा जा सकता है।
  • उत्तरदायित्व की कमी: जटिल अनुशासनात्मक प्रक्रिया और अक्षम प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली के कारण दोषी सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध शायद ही कभी कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही आरंभ की जाती है या उन्हें दंड दिया जाता है।
  • लालफीताशाहीः नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों प्रति जागरूकता का अभाव।
  • नागरिकों द्वारा नियमों का अनुपालन न किया जाना: इसे भी सुशासन के समक्ष बाधा माना जाता है। अपने अधिकारों के साथ-साथ
    अपने कर्तव्यों से भी पूर्णतया अवगत एक जागरूक नागरिक यह सुनिश्चित करने का सबसे बेहतर तरीका हो सकता है कि
    अधिकारियों के साथ-साथ अन्य नागरिक भी अपने कर्तव्यों का प्रभावी और ईमानदार तरीके से निर्वहन करें।
  • नियमों और कानूनों का अप्रभावी क्रियान्वयन: हालांकि विधायिका द्वारा निर्मित कानून प्रभावी और प्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन
    प्रायः इनका सरकारी अधिकारियों द्वारा उचित रूप से क्रियान्वयन नहीं किया जाता है।

निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:

  •  प्रभावी कानूनी ढांचा- संविधान हमारे वैधानिक ढांचे का आधार है, हालांकि एक गतिशील समाज को मौजूदा कानूनों को निरंतर
    अद्यतन करने और उभरती आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करने हेतु नए कानूनों के अधिनियमन की आवश्यकता होती है। ताकि नागरिकों की कल्याण, सुरक्षा और विकास की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
  •  विधि का शासन (जीरो टॉलरेंस स्ट्रेटेजी) – विकेंद्रीकरण और शक्तियों के प्रत्यायोजन के माध्यम से स्थानीय निकायों को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ लोक व्यवस्था को बनाए रखने और कानूनों के अनुपालन हेतु एक परिवेश का निर्माण करने के लिए सभी सार्वजनिक एजेंसियों को अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस स्ट्रेटेजी को अपनाना चाहिए।
  • पारदर्शिता और सूचना का अधिकार सुशासन के लिए एक पूर्व आवश्यक शर्त है। नागरिकों की सूचना तक पहुंच, उन्हें लोक नीतियों एवं कार्यक्रमों से संबंधित सूचनाओं की माँग करने और इन सूचनाओं को प्राप्त करने हेतु सशक्त बनाती है। इस प्रकार यह सरकार को अधिक उत्तरदायी बनाती है और सहभागी लोकतंत्र एवं नागरिक केंद्रित शासन को सुदृढ़ बनाने में सहायता करती है।
  • आवधिक निगरानी और शासन की गुणवत्ता का स्वतंत्र मूल्यांकन – सामाजिक और आर्थिक लोक सेवाओं के प्रभावी और दक्षतापूर्ण तरीके से वितरण करने में सरकार को दक्ष होना चाहिए, जो इसका प्राथमिक उत्तरदायित्व है। इसके लिए कार्यक्रमों के डिजाइन की
    निरंतर निगरानी और उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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