भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग

इसे CCI अधिनियम, 2002 के तहत स्थापित किया गया था।

इसके निम्नलिखित कार्य हैं:

  •  प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को रोकना।
  •  बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना तथा इसे बनाए रखना।
  •  उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
  •  भारतीय बाजारों में अन्य प्रतिभागियों द्वारा किये जाने वाले व्यापार की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना।

प्रारंभ में इसकी परिकल्पना एक 10 सदस्यीय आयोग के रूप की गई थी तथा साथ ही विभिन्न शहरों में इसकी खंडपीठ स्थापित  करने का भी विचार था।

हालांकि, बाद में खंडपीठ स्थापित करने के प्रावधान को हटा दिया गया और इसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 7 सदस्यीय निकाय के रूप में गठित किया गया।

2017 में प्रतिस्पर्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को NCLAT (राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण) में सम्मिलित किया गया था। वर्तमान में अपीलीय न्यायाधिकरण को, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा जारी किए गए किसी भी निर्देश या निर्णय या आदेश के विरुद्ध अपीलों को सुनने तथा निपटाने का अधिकार है।

अन्य संबंधित तथ्य

  •  आयोग के सदस्यों की संख्या एक अध्यक्ष और छह सदस्यों से घटाकर एक अध्यक्ष और तीन सदस्यों तक सीमित कर दी गई है।
  •  CCI अधिनियम के तहत, किसी आदेश पर आयोग के सभी सदस्यों को हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है तथा सदस्यों का अधिक संख्या में होना क्रियान्वयन को और भी कठिन बना देता है। सदस्यों की संख्या में कमी से CCI संभावित रूप से एक अधिक तीव्र निर्णयन वाले निकाय में परिवर्तित हो जाएगा।
  •  यह CCI में सरकारी हस्तक्षेप को कम करेगा तथा साथ ही सुनवाई और अनुमोदन में तीव्रता ला कर निगमों की व्यावसायिक प्रक्रिया को प्रोत्साहित करेगा एवं रोजगार के अवसर सृजित करेगा।

CCI और क्षेत्र-विशिष्ट विनियामकों की भूमिका में अंतर

सामान्यज्ञ बनाम विशेषज्ञ – क्षेत्रीय विनियामकों के पास अपने संबद्ध क्षेत्रों में डोमेन विशेषज्ञता है जबकि CCI को सभी आर्थिक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के साथ संबंधित मुद्दों से निपटने हेतु व्यापक अधिदेश के साथ गठित किया गया है।

अग्रसक्रिय बनाम प्रतिक्रियात्मक – क्षेत्र विशिष्ट विनियमन एक पूर्वानुमानित समस्या की पहचान करता है और समस्या उत्पन्न होने  से पहले व्यवहार संबंधी मुद्दों का समाधान करने हेतु एक प्रशासनिक मशीनरी का निर्माण करता है, जबकि दूसरी तरफ, CCI सामान्य तौर पर बाजार परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में किसी समस्या के उत्पन्न होने के पश्चात् उसका समाधान करेगा।

CCI से संबंधित मुद्दे

  • क्षेत्र-विशिष्ट विनियामकों के साथ क्षेत्राधिकार का परस्पर अतिव्यापन, जैसे- भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) के साथ बाजार प्रभुत्व और मूल्य एकाधिकार, SEBI के साथ प्रतिबंधित व्यापारिक व्यवहार तथा RBI के साथ विलय नियंत्रण से संबंधित मुद्दे।
  • सदस्यों की संख्या कम होने से संबंधित मुद्देः संख्या कम होने से परस्पर मतभेदों को आसानी से सुलझाया जा सकता है। भविष्य में नए क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले सदस्यों की मांग हो सकती है, ऐसी किसी माँग को पूर्ण करना छोटे आकार के कारण कठिन होगा
  • क्षेत्र-विशिष्ट विनियामकों के साथ समन्वय की कमी: विभिन्न क्षेत्रीय विनियामकों और CCI के बीच औपचारिक और अनौपचारिक आदान-प्रदान का अभाव है। इसे प्रोत्साहित करने हेतु, प्रतिनियुक्ति या इंटर्नशिप के आधार पर कर्मियों का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • न्यायपालिका के साथ मुद्देः उच्च न्यायालय CCI की भूमिका के महत्व को समझने में असफल रहा है क्योंकि उच्च न्यायालय ने CCI द्वारा आरम्भ की गयी जाँचों को रोकने में काफी तेजी दिखाई है।

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