मीडिया का विनियमन (Regulating Media)

  •  वर्तमान युग में जहां छिपाने के लिए कुछ नहीं है और स्थिति में सुधार की अत्यधिक संभावना उपस्थित है, स्वतंत्र मीडिया का स्वागत एक प्रकाश स्तम्भ के रूप में किया जाना चाहिए। वास्तव में, यह मीडिया की कार्य पद्धति और सुशासन के मध्य ठोस कड़ी है – मीडिया लोगों को सरकार के कार्यों की जांच और मूल्यांकन की अनुमति प्रदान करती है और सार्वजनिक मुद्दों और विचारों की स्वतंत्र रूप से चर्चा करने हेतु एक मंच प्रदान करती है।
  • यदि मीडिया लोक हित में कार्य करती है, तो सरकारों द्वारा मीडिया की स्वतंत्र कार्य पद्धति की सुरक्षा की जानी चाहिए, ताकि
    समाज में विभिन्न दृष्टिकोणों का विकास हो सके।

लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मीडिया को ‘हमारे लोकतंत्र का रक्षक’ कहा। यह नागरिकों और राज्य के मध्य सम्पर्क का एक प्रमुख माध्यम

  • लोकतंत्र को समृद्धशाली बनाना: एक लोकतांत्रिक समाज तक सूचनाओं की पहुंच आवश्यक है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि
    नागरिक, अज्ञानता या गलत सूचना के आधार पर कार्य करने के स्थान पर उत्तरदायी, सूचित निर्णय लें। इसके साथ ही सूचना, कार्य की जांच हेतु भी सहयोग करती है।
  • उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना: यह विचार-विमर्श, चर्चाओं और सर्वेक्षण इत्यादि के द्वारा अपने मंच के माध्यम से राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका को लोगों के प्रति उत्तरदायी बनाती है।
  • ज्ञान के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाकर नागरिकों की सोच को विस्तारित करने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत जैसे देश में जहां निरक्षरता की दर अधिक है, ज्ञान प्रदान करना और लोगों के विचारों को विस्तृत करने का दायित्व मीडिया पर है। न्याय की भावना या लोकतंत्र के सार के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई की निष्पक्ष आलोचना करना।
  • गलत प्रथाओं को इंगित करना और किसी भी असामाजिक गतिविधियों में संलग्न लोगों के विरुद्ध उचित कार्रवाई शुरू करने में
    महत्वपूर्ण भूमिका निभाना, भले ही उनका राजनीतिक संबंध कुछ भी हो।
  • यह लोगों के मध्य एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने तथा लोकतंत्र और न्याय में विश्वास स्थापित करने में महत्वपूर्ण
    भूमिका निभाती है।

वर्तमान समय में मीडिया से संलग्न मुद्देः

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन के साथ, मीडिया घरानों के मध्य प्रतिस्पर्धा में तीव्र वृद्धि हुई है। जिसके परिणामस्वरूप पत्रकारिता के मानकों में गिरावट आई है। अन्य मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  •  त्रुटियों का उच्च स्तर:फेक न्यूज” जैसी घटनाओं में वृद्धि, रिपोर्टिंग में उच्च स्तर की त्रुटियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले दोषों में से एक है।
  • सनसनीखेज बनानाः मीडिया द्वारा महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दों को नज़रअंदाज करते हुए सामान्यतः सनसनीखेज खबरों को उजागर करने की कोशिश की जाती है।
  • महत्वपूर्ण मुद्दों के कवरेज में कमी: TRP और लोकप्रियता प्राप्त करने की अंधी दौड़ में मीडिया द्वारा वही दिखाया जाता है जो लोग देखना चाहते हैं। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण समाचार जो वास्तव में सार्वजनिक महत्व के हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • मीडिया द्वारा महत्वपूर्ण मुद्दों का फॉलो-अप न करना: यह केवल किसी विशेष घटना के घटित होने के समय ही खबर देती है, किन्तु शायद ही कभी उन खबरों का अनुसरण किया जाता है। जबकि यह अत्यावश्यक है।मौद्रिक या अन्य लाभों के बदले किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में पेड न्यूज चलाना।
  • फेक न्यूज भी एक बड़ा खतरा बन गया है जो लोकतंत्र को क्षति पहुंचाता है (खंड में आगे चर्चा की गयी है)।
  • मीडिया द्वारा ट्रायल: मीडिया द्वारा सामान्यतः आपराधिक मामलों में ट्रायल किया जाता है। इसके अंतर्गत मीडिया प्रायः
    न्यायालयों द्वारा निर्णय दिए जाने से पूर्व या कभी-कभी सुनवाई किए जाने से पूर्व ही अपराध के संबंध में जन-मानस में अभियुक्त के अपराधी या निर्दोषी होने की धारणा का निर्माण करती है। इसके कारण अभियुक्त के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का अतिक्रमण
    होता है।

मीडिया को विनियमित करने के लिए न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के दिशानिर्देश:

  • रिपोर्टिंग में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता: सत्यता और संतुलन बनाए रखना टीवी समाचार चैनलों का उत्तरदायित्व है।
  • तटस्थता सुनिश्चित करना: टीवी समाचार चैनलों को किसी भी विवाद या संघर्ष में सभी प्रभावित पक्षों, हितधारकों और अभिकर्ताओं से समानता का व्यवहार कर तटस्थ रहना चाहिए ताकि वे अपना विचार प्रस्तुत कर सकें।
  • अपराध और सुरक्षा उपायों पर रिपोर्टिंग करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अपराध और हिंसा का महिमामंडन न किया जाए।
  • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध हिंसा या उत्पीड़न का चित्रण: समाचार चैनलों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी महिला या किशोर, जो यौन हिंसा, आक्रामकता, आघात से पीड़ित है अथवा इसका साक्षी रही/रहा है; को टीवी पर दिखाने के दौरान उनकी पहचान को उजागर न किया जाये।
  • निजता का सम्मान करना : चैनल को व्यक्तियों के निजी जीवन, या व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के नियम का पालन
    करना चाहिए, जब तक कि इस तरह के प्रसारण के स्पष्ट रूप से स्थापित वृहद और अभिज्ञेय सार्वजनिक हित न हों।

निष्कर्ष

मीडिया को लोकतंत्र की चौथे स्तम्भ के रूप में जाना जाता है। लोकतंत्र के सुचारु रूप से संचालन हेतु स्वतंत्र मीडिया आवश्यक है। किन्तु स्वतंत्र मीडिया से तात्पर्य एक अनियंत्रित मीडिया से नहीं है। पत्रकारिता के मानकों का उन्नयन करना ही एक मात्र समाधान हो सकता है। प्रत्येक पत्रकार को ईमानदारी पूर्वक और जानबूझकर किसी संजाल में उलझने के स्थान पर पत्रकारिता के मानक को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

फेक न्यूज़ (भ्रामक समाचार) (Fake News)

केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा फेक न्यूज़ (भ्रामक समाचार) पर अपने दिशा-निर्देश को वापस लेने के पश्चात् समाचार पोर्टलों एवं मीडिया वेबसाइटों को नियंत्रित करने के नियमों को तैयार करने हेतु एक समिति का गठन किया गया है।

फेक न्यूज़ के बारे में

  • फेक न्यूज़ उन ख़बरों, वृत्तांत, सूचनाओं, डाटा तथा रिपोर्टों को संदर्भित करते हैं जो पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से भ्रामक होते हैं।
  • फेक न्यूज़ किसी भी विषय-वस्तु से सम्बंधित हो सकते है:
  • वाणिज्यिक रूप से प्रेरित सनसनीखेज सामग्री
  • राष्ट्र-राज्य (नेशन स्टेट) द्वारा प्रायोजित गलत सूचना,
  • अत्यधिक पक्षपातपूर्ण न्यूज साइट,
  •  स्वयं सोशल मीडिया,
  •  व्यंग्य अथवा पैरोडी (नक़ल उतारना)।
  • फेक न्यूज़ को मीडिया के विभिन्न माध्यमों, जैसे- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जा सकता है।
  • यद्यपि फेक न्यूज़ के विरुद्ध कुछ अप्रभावी चेक एवं बैलेंस मुख्य धारा की मीडिया में मौजूद हैं, किन्तु सोशल मीडिया में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है।
  • फेक न्यूज़ के संबंध में मानहानि का मुकदमा दायर करना, FIR दर्ज करना, तथा न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA), ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल (BCCC), प्रेस कॉउन्सिल ऑफ़ इंडिया (PCI) के समक्ष शिकायत दर्ज करना इत्यादि जैसे केवल
    कुछ ही तंत्र मौजूद हैं।

फेक न्यूज़ से संबंधित मुद्दे

  • लोकतांत्रिक भावना के विरुद्ध : स्वतंत्र और निष्पक्ष भाषण सुनिश्चित करने वाले लोकतांत्रिक सिद्धांतों से समझौता करके उन्हीं
    सिद्धांतों का उपयोग दुष्प्रचार के प्रसार के लिए करना विडंबनापूर्ण है।
  • चुनाव प्रक्रिया से समझौता: भारतीय चुनावी व्यवस्था में राजनीतिक दुष्प्रचार अभियान चुनाव प्रणाली में नागरिक विश्वास में कमी
    और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमज़ोर करते हुए मौजूदा सामाजिक विरोध को गहरा कर सकता है।
  • मीडिया में विश्वास: नागरिक मुख्य धारा के मीडिया द्वारा प्रकाशित किसी भी समाचार को सत्य मानते हैं तथा बहुत कम नागरिक सोशल मीडिया पर प्रसारित समाचारों की प्रामाणिकता को जाँचने का प्रयत्न करते हैं।
  • सामाजिक सद्भाव पर प्रभाव: फेक न्यूज़ लोकतंत्र में मीडिया को प्राप्त स्वतंत्रता का उपयोग करके गलत सूचना के प्रसारण हेतु अवसर प्रदान करते हैं जो समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इन्हें निम्नलिखित संदर्भो में समझा जा सकता है:
  • कुछ विशिष्ट व्यक्तियों या विरोधियों की छवि एवं चरित्र को हानि पहुँचाने या उन्हें बदनाम करने अथवा लोकप्रियता प्राप्त
    करने हेतु गलत सूचनाओं के प्रसार के द्वारा जनमत को विचलित करना
  • जनता तथा सरकार के मध्य अविश्वास की भावना उत्पन्न करना, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ संबंधी समाचार
    जो तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण पर आधारित थे।
  •  दंगों तथा धार्मिक प्रतीकों अथवा ईश्वर को अपमानित करने संबंधी भ्रामक तस्वीरों का उपयोग करके समुदायों के मध्य हिंसा
    एवं घृणा को बढ़ावा देना, उदाहरण स्वरूप – मुजफ्फराबाद के दंगे; बंगलुरु जैसे स्थानों से उत्तर-पूर्वी लोगों का पलायन, आदि।
  •  सोशल मीडिया साइटों द्वारा भ्रामक अधिप्रचार के माध्यम से युवाओं में कट्टरता का प्रसार करना (Radicalization)।

फेक न्यूज़ के नियंत्रण से संबद्ध चुनौतियाँ

  •  मानक परिभाषा का अभाव: ‘फेक न्यूज़’ एक अस्पष्ट शब्द है और वर्तमान समय में इसकी कोई आधिकारिक परिभाषा उपलब्ध नहीं
  • विनियमन का अभाव: मुख्य धारा के मीडिया द्वारा स्व-विनियमन बहुत हद तक अप्रभावी रहा है। फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने हेतु सरकार द्वारा किए गए किसी भी प्रत्यक्ष प्रयत्न को मीडिया (लोकतंत्र का चौथा स्तंभ) की स्वतंत्रता का हनन माना जाता है।
  • संतुलन प्राप्ति में कठिनाई: फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने के प्रयासों द्वारा वैधतापरक जाँच-पड़ताल तथा स्रोत-आधारित पत्रकारिता अथवा संविधान के अनुच्छेद 19 में सुनिश्चित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को क्षतिग्रस्त नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, समाचारों में जानबूझकर की गयी छेड़छाड़ एवं ऐसे समाचार जिनके सत्य होने का विश्वास है, के मध्य अंतर किया जाना चाहिए।
  • सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ का पता करना: इंटरनेट उपयोगकर्ताओं (भारत में 35 करोड़ से अधिक) तथा सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं (20 करोड़ से अधिक व्हाट्सएप उपयोगकर्ता) की संख्या अत्यधिक विशाल होने के कारण फेक न्यूज़ की उत्पत्ति का पता लगाना लगभग असंभव है।

आगे की राह

  • नीति का निर्माण करना: सरकार द्वारा फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने के मुद्दों के संबंध में हितधारकों की राय लेकर एक मसौदा तैयार करना चाहिए। ‘फेक न्यूज़’ से संबंधित भविष्य के दिशा-निर्देशों द्वारा ‘फेक न्यूज़’ को ही लक्षित करना चाहिए तथा ‘फेक न्यूज़’ के
    नाम पर मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयत्न नहीं किया जाना चाहिए।
  • विनियामक तंत्र: PCI में सुधार करने के साथ इसे सशक्त बनाने की आवश्यकता है ताकि यह एक ओर मीडिया और अभिव्यक्ति की
    स्वतंत्रता तथा दूसरी ओर जानने के अधिकार के मध्य संतुलन स्थापित कर सके।
  • जागरूकता: लोगों को फेक न्यूज़, उनके प्रसार से उत्पन्न होने वाले खतरों तथा इस प्रकार के किसी भी तथ्य पर विश्वास करने में सावधानी बरतने के विषय में अवगत कराया जाना चाहिए।
  • प्रामाणिक समाचार: प्रामाणिक समाचार का प्रसार करने हेतु सोशल मीडिया पर सरकारी संगठनों के ऑफीशियल अकाउंट भी मौजूद होने चाहिए।
  • फेक न्यूज़ के खतरे की रोकथाम हेतु सोशल मीडिया हाउसों को भी प्रयास करना चाहिए। उदाहरणार्थ- हाल ही में, फेसबुक द्वारा घोषणा की गई है कि कर्नाटक चुनावों के दौरान फेक न्यूज़ से मुकाबला करने हेतु उसने एक भारतीय तथ्य-जांच एजेंसी बूम लाइव के साथ करार किया है।

अन्य उपाय :

इसमें फेक न्यूज़ के समाधान हेतु विकेन्द्रीकृत तीन-विन्दु एजेंडा सम्मिलित है।

  • महत्वपूर्ण डिजिटल साक्षरता को एक घटक के रूप में सम्मिलित करते हुए महत्वपूर्ण मीडिया साक्षरता को सुनिश्चित करना ताकि व्यक्तियों को इंटरनेट चलाने के लिए आवश्यक कौशल सीखने और इन्टरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों पर प्रश्न उठाने हेतु प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
  • नागरिकों के मध्य सूचना के प्रति संदेह की एक सामान्य संस्कृति को परिपोषित करना। इस संबंध में जिला प्रशासन और स्थानीय | समुदाय के नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।
  • लक्षित और आनुपातिक कानूनी हस्तक्षेपों को सीमित स्थितियों मे खोजा जा सकता है, उदाहरणार्थ- उन स्थितियों में जब जीवन या
    राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा विद्यमान हो।

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