राष्ट्रीय आपातकाल की अवधारणा

प्रश्न: उन आधारों की व्याख्या कीजिए जिन पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जा सकता है एवं केंद्र-राज्य संबंधों और मूल अधिकारों पर पड़ने वाले इसके प्रभावों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण:

  • संविधान में परिकल्पित राष्ट्रीय आपातकाल की अवधारणा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • उन आधारों की चर्चा कीजिए जिन पर राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा सकती है।
  • केंद्र-राज्य संबंधों एवं मौलिक अधिकारों पर राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभावों की अलग-अलग चर्चा कीजिए।
  • इसके यथासंभव न्यूनतम उपयोग की अनुशंसा करते हुए संक्षेप में उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तरः

भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आपातकालीन प्रावधानों को इस उद्देश्य से शामिल किया गया था कि केंद्र सरकार को किसी भी प्रकार की असामान्य स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने तथा देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।

राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में होने पर मंत्रिमंडल से लिखित अनुशंसा के पश्चात् राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है। इसकी उद्घोषणा इससे पूर्व (आसन्न खतरे के मामले में) भी की जा सकती है। ध्यातव्य है कि अब तक राष्ट्रीय आपात की घोषणा तीन बार यथा- 1962, 1971 और 1975 में की गई है।

केंद्र-राज्य संबंधों पर राष्ट्रीय आपातकाल का प्रभाव- इसके कारण संविधान में औपचारिक संशोधन के बिना संघीय संरचना का एकात्मक प्रणाली में परिवर्तन हो जाता है। विशेष रूप से, निम्नलिखित पर इसके प्रभाव को देखा जा सकता है:

  • कार्यकारी- सामान्य समय के विपरीत, जिसमें केंद्र द्वारा राज्यों को केवल कुछ विशेष विषयों पर ही कार्यकारी निर्देश दिए जा सकते है, राष्ट्रीय आपातकाल के समय केंद्र को संबंधित राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार, राज्य सरकारों पर केंद्र का पूर्ण नियंत्रण होता है, यद्यपि उन्हें निलंबित नहीं किया जाता है।
  • विधायी- राष्ट्रीय आपातकाल के समय संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। यद्यपि किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता, किन्तु वह संसद के अधीन हो जाती है। संसद के सत्र में न होने पर राष्ट्रपति राज्य के विषयों के संबंध में अध्यादेश भी जारी कर सकता है।
  • वित्तीय- राष्ट्रपति को केंद्र और राज्यों के मध्य राजस्व के संवैधानिक वितरण को संशोधित करने का अधिकार होता है। इसका तात्पर्य है कि राष्ट्रपति केंद्र से राज्यों को किए जाने वाले धन (वित्त) के हस्तांतरण को कम कर सकता है अथवा उसे रोक सकता है।

राष्ट्रीय आपात का मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: यह केंद्र को नागरिकों की स्वतंत्रता को कम करने या निलंबित करने की अनुमति देता है। इसका उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया गया है:

  • अनुच्छेद 358 के अनुसार अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मौलिक अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं, इनके निलंबन के लिए किसी पृथक आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति अन्य मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 एवं 21 के अतिरिक्त) को एक विशिष्ट आदेश के माध्यम से निलंबित कर सकता है। वस्तुतः ये मौलिक अधिकार नहीं अपितु इनका क्रियान्वयन या इनके उल्लंघन पर संवैधानिक उपचार प्राप्त करने का अधिकार निलंबित हो जाता है।

राज्य ऐसा कोई भी कानून बना सकता है अथवा कार्य कर सकता है जो अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त अधिकारों या अनुच्छेद 359 के तहत अन्य निर्दिष्ट अधिकारों को निलंबित कर सकता हो। असंगतता के आधार पर ऐसे किसी भी कानून या कार्यकारी कार्रवाई को चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त, आपात के समाप्त होने के पश्चात् भी आपातकाल के दौरान संचालित विधायी एवं कार्यकारी कार्यवाहियों को चुनौती नहीं दी जा सकती है।

राष्ट्रीय आपातकाल के समाप्त होने के पश्चात् अनुच्छेद 19 स्वतः लागू हो जाता है। असंगतता के संदर्भ में, आपातकाल के दौरान निर्मित कोई भी कानून प्रभावहीन हो जाता है। आपातकाल की घोषणा एक गंभीर मामला है क्योंकि यह संविधान की सामान्य संरचना में बाधा उत्पन्न करता है तथा राज्यों (संघीय संरचना) के साथ-साथ लोगों के अधिकारों (मूल अधिकारों) को भी निलंबित कर देता है, अतः इसका क्रियान्वयन विचार-विमर्श के पश्चात धैर्यपूर्वक किया जाना चाहिए।

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