लाभ का पद (Office of Profit)
लाभ का पद क्या है?
- अनुच्छेद 102(1)(a) एवं 191(1)(a) में लाभ के पद के आधार पर निरर्हताओं का उल्लेख है, किंतु लाभ के पद को न तो संविधान में परिभाषित किया गया है और न ही जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम में।
प्रद्युत बारदोलाई बनाम स्वप्न रॉय वाद (2001) में उच्चतम न्यायालय ने लाभ के पद की जांच के लिए निम्नलिखित प्रश्नों को रेखांकित किया।
- क्या वह नियुक्ति सरकार द्वारा की गई है;
- क्या पदस्थ व्यक्ति को हटाने अथवा बर्खास्त करने का अधिकार सरकार के पास है;
- क्या सरकार किसी पारिश्रमिक का भुगतान कर रही है;
- पदस्थ व्यक्ति के कार्य क्या हैं एवं क्या वह ये कार्य सरकार के लिए कर रहा है; तथा
- क्या किए जा रहे इन कार्यों के निष्पादन पर सरकार का कोई नियंत्रण है।
कालांतर में, जया बच्चन बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने इसे अग्रलिखित प्रकार से परिभाषित किया- “ऐसा पद जो किसी लाभ अथवा मौद्रिक अनुलाभ को प्रदान करने में सक्षम हो।” इस प्रकार “लाभ के पद” वाले मामले में लाभ का वास्तव में प्राप्त होना’ नहीं अपितु लाभ ‘प्राप्ति की संभावना’ एक निर्णायक कारक है।
अन्य संबंधित तथ्य
- 2015 में, दिल्ली सरकार ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया था।
- इसके पश्चात्, दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यताओं का उन्मूलन) अधिनियम, 1997 में भूतलक्षी प्रभाव से संशोधन किया गया ताकि संसदीय सचिवों को “लाभ के पद” की परिभाषा से बाहर रखा जा सके।
- हालांकि इस संशोधन विधेयक को उप-राज्यपाल की सहमति नहीं मिली थी, जिससे विधायकों के अयोग्य ठहराए जाने का मार्ग खुला रहा।
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने निम्नलिखित कारणों से राष्ट्रपति को अयोग्यता संबंधी अनुशंसा की:
- संसदीय सचिवों के रूप में उन विधायकों का पद एक सरकारी पद था।
- इस पद में लाभ प्राप्त करने की संभावनाएं विद्यमान थीं और इसके कार्यकारी दायित्व एक मंत्री के समान थे।
अनुच्छेद 102 व अनुच्छेद 191 से संबंधित मुद्दों पर राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल को निर्वाचन आयोग द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कार्य करना अनिवार्य होता है।
संसदीय सचिव
- यह संसद का एक सदस्य होता है जो वरिष्ठ मंत्रियों को उनके दायित्वों के निर्वहन में सहायता करता है।
- इनका दर्जा सामान्यत: राज्यमंत्री का होता है और इन्हें मिलने वाली सुविधाएं भी राज्यमंत्री के समान होती हैं। उन्हें एक सरकारी विभाग का दायित्व दिया जाता है।
- मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, असम, राजस्थान, पंजाब, गोवा आदि कुछ अन्य राज्य हैं जहाँ विधायकों को सरकार द्वारा संसदीय सचिवों के रूप में नियुक्त किया गया है।
- हालांकि उच्च न्यायालय में विभिन्न याचिकाओं द्वारा संसदीय सचिव की नियुक्ति को चुनौती दी गयी है।
- जून 2015 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 24 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी थी।
- मुंबई उच्च न्यायालय, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, दिल्ली उच्च न्यायालय इत्यादि द्वारा इसी प्रकार की कार्रवाईयां की गईं।
लाभ के पदों पर संयुक्त समिति
- इसमें 15 सदस्य होते हैं जो संसद के दोनों सदनों से लिए जाते हैं।
- यह केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त समितियों की संरचना व प्रकृति की जांच करती है तथा अनुशंसा करती है कि किन-किन पदों पर आसीन व्यक्तियों को संसद के किसी सदन का सदस्य बनने के लिए अर्ह अथवा अनर्ह माना जाए।
इसने लाभ के पद को निम्न प्रकार परिभाषित किया है।
- यदि पदस्थ व्यक्ति को क्षतिपूर्ति भत्ते के अतिरिक्त कोई पारिश्रमिक, जैसे- उपस्थिति शुल्क, मानदेय, वेतन आदि प्राप्त होता है।
यदि वह निकाय जिसमें व्यक्ति को पद प्राप्त है;
- कार्यकारी, विधायी अथवा न्यायिक शक्तियों का प्रयोग कर रहा है; अथवा ।
- उसे निधियों के वितरण, भूमि के आवंटन, लाइसेंस जारी करने आदि की शक्तियाँ प्राप्त हैं; अथवा
- वह नियुक्ति, छात्रवृत्ति आदि प्रदान करने की शक्ति रखता है।
यदि वह निकाय जिसमें व्यक्ति को पद प्राप्त है, सरंक्षण के माध्यम से प्रभाव अथवा शक्तियों का प्रयोग करता है।
निरर्हताओं के पक्ष में तर्क
- शक्ति-पृथक्करण के विरुद्धः लाभ का पद धारण करके कोई विधायक, कार्यपालिका (जिनका वह भाग बन गया है) से स्वतंत्र होकर अपने कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकता।
- संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना: संसदीय सचिवों के पद अथवा ऐसे ही अन्य पदों का प्रयोग राज्य सरकारों द्वारा संविधान द्वारा निर्धारित मंत्रियों की अधिकतम 15% (दिल्ली के मामले में 10%) की सीमा से बचने के साधन के रूप में किया जाता है।
- संरक्षण के माध्यम से शक्ति का प्रयोग: संसदीय सचिव सरकारों की उच्च स्तरीय बैठकों में भागीदारी करते हैं। साथ ही उनकी मंत्रियों व मंत्रालयों की फाइलों तक पहुँच हर समय बनी रहती है तथा यह पहुँच उन्हें संरक्षण के माध्यम (way of patronage) से शक्ति का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है।
- राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए तथा गठबंधन की राजनीति के दौर में मंत्री पदों के विकल्प के रूप में भी इन पदों का दुरूपयोग किया जाता है।
- जनहित के लिए खतरा: मंत्रियों के विपरीत संसदीय सचिवों को गोपनीयता की शपथ {अनुच्छेद 239 AA(4)} नहीं दिलाई जाती है। तथापि उन्हें उन सूचनाओं की जानकारी हो सकती है जिनका प्रकटीकरण जनहित के लिए हानिकारक हो, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता हो और यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष भी खतरा उत्पन्न कर सकता हो।
- लाभ के पद से संबंधित अन्य मुद्दों में विधियों में संशोधन के माध्यम से विधायी शक्ति का स्वेच्छाचारी उपयोग, बड़े आकार के मंत्रिमंडल के कारण सार्वजनिक धन का दुरूपयोग तथा संशोधन की शक्ति के स्वेच्छाचारी प्रयोग के माध्यम से राजनीतिक अवसरवादिता सम्मिलित हैं। साथ ही विभिन्न राज्यों में इनकी भिन्न-भिन्न प्रस्थिति भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
पदों के समर्थन में तर्क
- संविधान विधायिका को लाभ के किसी भी पद को धारण करने वाले को छूट प्रदान करने हेतु कानून पारित करने की अनुमति प्रदान करता है। पहले भी राज्यों और संसद द्वारा ऐसा किया जा चुका है। यू.सी. रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा है।
- मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा की जाती है। वे उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। इन संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा किए बिना किसी व्यक्ति को मंत्री नहीं माना जा सकता।
- अनुच्छेद 239AA(4) के तहत संसदीय सचिव मंत्री नहीं माने जाते हैं, क्योंकि उन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता और उनके द्वारा उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ भी नहीं दिलाई जाती
आगे की राह
- लाभ का पद ब्रिटेन से प्रेरित है किंतु ब्रिटेन में निरर्हताओं का न तो कोई सामान्य सिद्धांत है और न ही कानून के अंतर्गत ऐसे पदों की कोई विशेष सूची दी गई है। दूसरी ओर भारत में, संविधान के अंतर्गत सामान्य निरर्हताओं का उल्लेख है, जबकि संसद कानून बनाकर कुछ विशेष अपवादों को भी शामिल कर सकती है।
2nd ARC की अनुशंसाएं
निम्नलिखित सिद्धांतों के आधार पर लाभ के पद को परिभाषित करने के लिए कानून में संशोधन किया जाना चाहिए:
- पूर्ण रूप से सलाहकारी निकायों में उन सभी पदों को लाभ के पद के रूप में नहीं माना जाएगा जहां एक विधि-निर्माता का अनुभव, ज्ञान और विशेषज्ञता सरकारी नीति में इनपुट के रूप में शामिल होगी।
- कार्यकारी निर्णय निर्माण तथा लोक निधियों के नियंत्रण से सम्बद्ध वे सभी पद जो प्रत्यक्ष रूप से नीति का निर्णय लेते हैं या व्यय को अधिकृत अथवा अनुमोदित करते हैं, उन्हें लाभ के पद के रूप में माना जाएगा।
- यदि कोई सेवारत मंत्री ऐसे संगठनों का सदस्य या प्रमुख होता है, जहां मंत्रिपरिषद और संगठन के मध्य घनिष्ठ समन्वय सरकार की कार्य पद्धति के लिए महत्वपूर्ण है, तो इसे लाभ का पद नहीं माना जाएगा।