भारत में रजोधर्म के संदर्भ में प्रचलित सांस्कृतिक अभिवृत्तियों और महिलाओं पर इसके प्रभाव
प्रश्न: महिलाओं पर पड़ने वाले रजोधर्म के सांस्कृतिक अभिवृत्तियों के प्रभावों को देखते हुए, इनसे निपटने में रणनीतिक दृष्टिकोण का अनुसरण करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में रजोधर्म के संदर्भ में प्रचलित सांस्कृतिक अभिवृत्तियों और महिलाओं पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- पुरुषों और महिलाओं में रजोधर्म के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को किस प्रकार बदला जा सकता है? सुझाव दीजिए।
- निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
देश के कई भागों में रजोधर्म, वर्जनाओं और मिथकों से ग्रस्त है। इसके कारण महिलाएं सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से वंचित की जाती है, क्योंकि इसे दूषित एवं अपवित्र माना जाता है। लगभग प्रत्येक धर्म में, रजोधर्म के दौरान महिलाओं को अपवित्र माना जाता है और इस दौरान उनकी गतिविधियों यथा खाना पकाने और मंदिरों एवं मकबरों तक उनकी पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यद्यपि इसी समय महिलाओं को परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा देखभाल की आवश्यकता होती है, तथापि उन्हें घर से निर्वासित कर दिया जाता है।
ऐसे कृत्य भारत में अनेक समाजों में महिलाओं और किशोरियों के आत्मविश्वास एवं भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करते हैं। यह कामकाजी महिलाओं और स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए बाधा उत्पन्न करता है। जानकारियों के अभाव के कारण रजोधर्म के दौरान कई लड़कियां विद्यालय नहीं जाती हैं या बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। विद्यालय और कार्यस्थल संस्कृतियां प्रायः उनके प्रति अनुकूल नही होती हैं। इसके साथ ही स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी विद्यमान हैं। इन मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान न देने का परिणाम निम्न सुरक्षा और अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं होती हैं, जो संक्रमण के प्रति सुग्राह्यता को बढ़ाती हैं।
रजोधर्म से संबंधित वर्जनाओं से निपटने हेतु रणनीतिक दृष्टिकोण
इन मिथकों और इनके प्रभावों से निपटने की रणनीति का पहला कदम रजोधर्म स्वच्छता और स्वास्थ्य के सन्दर्भ में किशोरियों के मध्य जागरूकता में वृद्धि होना चाहिए। यह इसलिए होना चाहिए क्योंकि प्रायः माताओं सहित परिवार के बुजुर्ग इन मुद्दों पर चर्चा करने पर संकोच करते हैं।
महिलाओं, बुजुर्गों और स्कूल शिक्षकों के मध्य जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए। इस मुद्दे के संबंध में आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के उचित प्रशिक्षण और संवेदनशीलता को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही प्रभावी परिवर्तन लाने हेतु पिता, भाइयों और पतियों को जागरूक करना भी आवश्यक है। सरकार द्वारा स्कूलों में लागू किया गया रजोधर्म स्वच्छता प्रबंधन पाठ्यक्रम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसके अतिरिक्त, देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों, दोनों के स्तर पर निम्न लागत वाले सैनिटरी नैपकिन, स्वच्छता, धुलाई और नैपकिन के निपटान से सम्बंधित पर्याप्त प्रावधान सुनिश्चित किये जाने चाहिए, क्योंकि इन प्रावधानों का अभाव प्रायः अनुचित स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का कारण बनता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से निम्न लागत वाले सैनिटरी नैपकिन का वितरण किया जा रहा है। इस प्रकार, इस मुद्दे के निराकरण हेतु समग्र रणनीति के साथ ही बहु-क्षेत्रक दृष्टिकोण का प्रयोग किया जाना चाहिए।
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