राजकोषीय प्रबंधन : भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित विभिन्न समस्याएं

प्रश्न: भारत में राजकोषीय प्रबंधन में प्रमुख समस्याएं क्या हैं? इन समस्याओं को कैसे दूर किया जा सकता है?

दृष्टिकोण:

  • राजकोषीय प्रबंधन के महत्व का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  • भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित विभिन्न समस्याओं पर चर्चा कीजिए।
  • इन समस्याओं के निवारण हेतु उपाय सुझाइए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

राजकोषीय प्रबंधन वित्तीय संसाधनों के नियोजन, निर्देशन और नियंत्रण की एक प्रक्रिया है। यह निवेश संबंधी प्रवृत्तियों (इन्वेस्टमेंट सेंटिमेंट) में सुधार लाने, निजी क्षेत्र हेतु ऋण उपलब्धता में वृद्धि करने, मुद्रास्फीति नियंत्रित करने और राजकोषीय घाटे को न्यून करने हेतु महत्वपूर्ण है।

भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित समस्याएँ:

  • अपर्याप्त बजट प्रतिवेदन: बजट में प्राय: राजस्व अनुमानों को अतिरंजित रूप में तथा व्यय को कम करके प्रदर्शित किया जाता है।
  • अतिरिक्त बजटीय संसाधन (EBRs) पर निर्भरता में वृद्धि: विगत वर्षों के दौरान, सार्वजनिक कार्यक्रमों के वित्तपोषण हेतु EBRs जैसे कि LIC, SBI जैसे सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों की निधियों पर सरकार की निर्भरता में वृद्धि हो रही है। हालांकि, यह राजकोषीय घाटे से संबंधित रियल टाइम आंकड़ों में परिलक्षित नहीं होता है।
  • सीमित कर उछाल (tax buoyancy): कर उछाल की कोई स्थिर प्रवृत्ति नहीं है तथा इस प्रकार, कर राजस्व का पूर्वानुमान कठिन हो जाता है।
  • राजकोषीय घाटे को वास्तविकता से कम करके प्रदर्शित करना (Understating fiscal deficits): रचनात्मक लेखांकन तकनीकों का उपयोग करके राजकोषीय घाटे को वास्तविकता से कम करके प्रदर्शित किया जाता है, जैसे कि समग्र सब्सिडी बिल और राज्यों को देय/प्राप्य राशि के एक भाग का आगामी वित्तीय वर्ष हेतु विस्तारण करना (रोलिंग ओवर), विनिवेश प्रक्रिया में निर्धारित हिस्सेदारी खरीदने के लिए LIC जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSEs) का उपयोग करना आदि।
  • केंद्र और राज्यों के लिए समान राजकोषीय समेकन नियमों की अनुपस्थिति: इसके कारण राज्यों द्वारा अपने वित्त का प्रबंधन करने में बाधा उत्पन्न होती है।
  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBMA) के लक्ष्यों का अनुपालन न करना: इसके अधिनियमन के पश्चात् से ही FRBMA लक्ष्यों की कई बार उपेक्षा की गई है। इसके अतिरिक्त, CAG द्वारा FRBMA के अनुपालन के संबंध में अब तक केवल कार्योत्तर आकलन ही किया जाता रहा है। राजकोषीय लोकलुभावन उपायों को अपनाना: जैसे किसानों की ऋण माफी, MSMEs के लिए कर माफी आदि, जिसके परिणामस्वरूप राजकोषीय भार में वृद्धि हुई है।

इन समस्याओं का निम्नलिखित विभिन्न उपायों के माध्यम से निवारण किया जा सकता है:

  • राजकोषीय नीतियों की निगरानी करने, राजकोषीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करने तथा केंद्र और राज्यों के राजकोषीय समेकन पर नियंत्रण रखने हेतु एन.के. सिंह समिति द्वारा प्रस्तावित एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की स्थापना करना।
  • बजट में राजस्व और व्यय का सही आकलन करना, ताकि आगे सुदृढ़ आर्थिक नीतियां तैयार की जा सकें।
  • राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित कानूनों के संदर्भ में केंद्र और राज्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना।
  • वित्त आयोग और GST परिषद के मध्य सहयोग बढ़ाना।
  • लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाना और सरकार द्वारा राजकोषीय लक्ष्यों का दृढ़ता से अनुपालन करना। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक व्यय की उचित निगरानी और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना चाहिए।
  • FRBMA का युक्तिकरण, ताकि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में सार्वजनिक ऋण के अनुपात को संधारणीय स्तर पर स्थिर बनाया जा सके।
  • सुदृढ़ राजकोषीय प्रथाओं हेतु संस्थागत तंत्र की स्थापना करना, ताकि पारदर्शिता को बढ़ावा मिले और घरेलू एवं विदेशी निवेशकों में विश्वास सुदृढ़ हो।

अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुचित राजकोषीय प्रबंधन अति आवश्यक है।

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