राजकोषीय अनुशासन : क्यों यह स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन की एक कसौटी है?

प्रश्न: राजकोषीय अनुशासन के पालन को सरकार द्वारा स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन की एक कसौटी माना जाता है। सविस्तार वर्णन कीजिए। बजट किस सीमा तक सरकार के प्रतिस्पर्धी लक्ष्यों एवं राजकोषीय अनुशासन को समाविष्ट करता है?

दृष्टिकोण

  • राजकोषीय अनुशासन को परिभाषित कीजिए।
  • व्याख्या कीजिए कि क्यों यह स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन की एक कसौटी है।
  • किस सीमा तक 2018 का बजट सरकार के प्रतिस्पर्धी लक्ष्यों एवं राजकोषीय अनुशासन को समाविष्ट करता है?

उत्तर

राजकोषीय अनुशासन को किसी सरकार की उस क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके अंतर्गत वह सचारू वित्तीय परिचालन और दीर्घावधिक राजकोषीय सुदृढ़ता बनाए रखती है। यह सरकार के राजस्व एवं व्यय के मध्य एक आदर्श संतुलन का द्योतक है। राजकोषीय अनुशासन आर्थिक निष्पादन में सुधार करने एवं उसे बनाए रखने, समष्टि आर्थिक स्थिरता (मैक्रोइकोनॉमिक स्टेबिलिटी) को बनाए रखने तथा सुभेद्यताओं को कम करने हेतु महत्वपूर्ण है।

दूसरी ओर सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में राजकोषीय अनुशासन की कमी के कारण निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं:

  • उच्च बजट घाटा जो भावी पीढ़ियों पर अधिक भार डालता है।
  • बांड्स से होने वाली आय में वृद्धि और परिणामस्वरूप उच्च-लागत ऋण सेवा।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा भारतीय ऋण के स्तर में संभावित कमी जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाला निजी निवेश प्रभावित होगा।
  • अविवेकपूर्ण राजनीतिक निर्णयों के कारण नीति की विश्वसनीयता में कमी।
  • सरकारी प्राप्तियों के सापेक्ष सरकार के व्यय में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण सरकार को फंड्स उधार लेने पड़ते हैं अथवा घाटे का वित्तीयन करना पड़ता है।
  • इससे मुद्रा ह्रास और मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

2018-19 का बजट सरकार के विभिन्न प्रतिस्पर्धी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयास करता है जैसे:

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को खरीफ फसलों की उत्पादन लागत से 1.5 गुना रखना, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र आदि के लिए आवंटन दोगुना (गत वर्ष की अपेक्षा) करना।
  • बेहतर स्वास्थ्य एवं शिक्षा – नेशनल हेल्थकेयर प्रोटेक्शन स्कीम, अनुसूचित जनजातियों आदि के लिए शिक्षा योजना।
  • संवेदनशील वर्गों की मांगों को पूरा करना – अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए अधिक व्यय, गरीब महिलाओं के लिए नि:शुल्क गैस कनेक्शन, मत्स्यन, पशुपालन आदि के लिए विभिन्न पहले।
  • अभावग्रस्त लोगों के मुद्दों का समाधान –नौकरियों का सृजन एवं संवृद्धि को प्रोत्साहन।

ऐसी मांगें राजकोषीय विवेक (फिस्कल पूडेंस) पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं। यद्यपि व्यापक रूप से सरकार ने ऋण-GDP अनुपात को 40 प्रतिशत के स्तर पर बनाए रखने (एन के सिंह समिति द्वारा अनुशंसित) जैसे राजकोषीय अनुशासन को लागू किया है, तथापि निम्नलिखित कारणों से फिस्कल स्लिपेज (राजकोषीय विपथन) से संबंधित चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं:

  • सरकार का राजस्व घाटा 2017-18 में बढ़कर GDP का 2.6% हो गया जबकि बजट अनुमान के अनुसार इसे GDP का 1.9% होना चाहिए था। यह राजकोषीय समेकन की गुणवत्ता में ह्रास को प्रदर्शित करता है।
  • 2018-19 हेतु राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3.3% निर्धारित किया गया है ताकि 3% के पिछले लक्ष्य के सापेक्ष व्यय की उच्च माँग को समाविष्ट किया जा सके।
  • स्पेक्ट्रम की नीलामी से होने वाली कम प्राप्तियों के कारण GST राजस्व व गैर-कर राजस्व में गिरावट हुई है।
  • 10 करोड़ परिवारों को कवर करने वाली प्रस्तावित स्वास्थ्य बीमा योजना (जिसके लिए मात्र 200 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं) की विश्वसनीयता के संबंध में भी चिंताएँ प्रकट की गई हैं।
  • वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि भी चिंता का एक विषय है जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और चालू खाते का घाटा अधिक हो सकता है।

तथापि, यह सराहनीय है कि बजट में अल्पावधि के राजनीतिक लाभों के लिए राजकोषीय समिति की अनुशंसाओं की अवहेलना नहीं की गयी है। इस प्रकार, बजट प्रतिस्पर्धी मांगों के बीच आर्थिक लोकप्रियता एवं विवेकपूर्ण अर्थनीति के मध्य एक संतुलन स्थापित करने में सफल रहा है।

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