रैट-होल खनन की अवधारणा : उत्तर-पूर्वी भारत के संदर्भ में, इसके पारिस्थितिकीय परिणाम

प्रश्न: रैट-होल खनन की अवधारणा का सविस्तार वर्णन कीजिए। उत्तर-पूर्वी भारत के संदर्भ में, इसके पारिस्थितिकीय परिणामों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, समझाइए कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद यह अभी भी प्रचलन में क्यों है?

दृष्टिकोण

  • रैट-होल खनन की अवधारणा, इसके प्रकार एवं पारिस्थितिकीय प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  • NGT द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों, इसके कारणों तथा इन प्रतिबंधों के बावजूद इस खनन के प्रचलन हेतु उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

रैट-होल खनन कोयले के खनन की एक प्राचीन एवं खतरनाक पद्धति है जहां श्रमिक प्रवेश करने एवं कोयले के निष्कर्षण हेतु केवल 3-4 फीट के व्यास (इसलिए ये रैट-होल कहलाते हैं) वाली सुरंगों का प्रयोग करते हैं। रैट-होल के निम्नलिखित दो प्रकार-

  • जब भूमि में वर्टिकल शाफ्ट की खुदाई की जाती है, जो क्षैतिज सुरंग तक जाती हैं।
  • दूसरे प्रकार में कोयला संस्तरों (कोयले की परत) तक पहुंचने हेतु क्षैतिज होल पहाड़ी ढलानों में प्रत्यक्षत: खोदे जाते हैं।

उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य मेघालय में इनका व्यापक प्रचलन है।

पारिस्थितिकीय परिणाम 

  • खनन क्षेत्रों में कोपिली जैसी नदियों एवं धाराओं का जल अम्लीय होने के साथ ही पीने एवं सिंचाई हेतु अनुपयुक्त हो गया है तथा पादपों एवं पशुओं हेतु विषाक्त बन गया है।
  • खनन क्षेत्रों में तथा उसके आसपास की सडकों का प्रयोग कोयले के ढेर रखने के लिए किया जाता है जो वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत हैं।
  • खनन क्षेत्र में ट्रकों एवं अन्य वाहनों की सड़कों से परे आवागमन क्षेत्र के पारितंत्र हेतु अतिरिक्त क्षति का कारण बनती है।
  • मेघालय के जयंतिया पहाड़ी जिले में निर्वनीकरण, मृदा अपरदन, सतही अपवाह, भूमि का धंसाव आदि कोयला खनन से संबंधित कुछ अन्य प्रमुख पर्यावरणीय समस्याएं हैं।

उपर्युक्त तथ्यों के प्रकाश में, NGT ने इस आधार पर वर्ष 2014 में इसे प्रतिबंधित कर दिया था कि रैट-होल खनन पद्धति श्रमिकों हेतु अवैज्ञानिक एवं असुरक्षित है। ज्ञातव्य है कि हाल ही में मेघालय के एक रैट-होल कोयला खदान में आई बाढ़ के कारण उसमें 15 श्रमिक फंस गए थे जिनमें सभी के मारे जाने की आशंका है। इस घटना ने NGT के कथन को सत्य सिद्ध कर दिया था। परन्तु निम्नलिखित कारणों से यह पद्धति अभी भी प्रचलन में है: 

  • इन क्षेत्रों में कोयले के निष्कर्षण हेतु आर्थिक रूप से अन्य व्यवहार्य पद्धति का अभाव, क्योंकि कोयले की परतें अत्यंत पतली  है
  • रैट-होल खनन स्थानीय रूप से विकसित तकनीक है तथा निकटवर्ती जनजातियों द्वारा इस पद्धति के प्रयोग का दीर्घकालिक इतिहास रहा है और इससे स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्र में अन्य रोजगार अवसरों का भी अभाव है।
  • क्षेत्र में राजनेताओं के साथ खनन माफिया की साठ-गाँठ का प्रचलन।
  • भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची का दुरूपयोग जिसमें भू-खनिजों के दोहन से मौद्रिक लाभ अर्जित करने में निजी हित रखने वाले निजी अभिकर्ता कोयला खनन में संलग्न हैं। ये अभिकर्ता भूमि स्वामित्व पर आदिवासी स्वायत्तता के माध्यम से उन्मुक्ति का दावा करके इस कृत्य को वैधता प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।

NGT ने मेघालय खान और खनिज नीति, 2012 को अपर्याप्त पाया है, क्योंकि इस नीति में रैट-होल खनन को संबोधित नहीं किया गया है तथा इसके बजाय यह कहा गया है कि राज्यों को “स्थानीय लोगों द्वारा की जाने वाली भूमि में खनन की लघु और पारम्परिक प्रणाली में अनावश्यक रूप से व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिए।” इसलिए एक नवीन नीति के क्रियान्वयन की अत्यंत आवश्यकता है जो सुरक्षित खनन गतिविधियों हेतु नियम निर्धारित करे तथा उनका कठोरतापूर्वक प्रवर्तन कर सके।

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