सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर (Public Health Cadre)

हाल ही में हुई चिकित्सा दुर्घटनाओं (यथा गोरखपुर दुर्घटना) के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर की माँग पुनः की जा रही है।

  • भोर समिति, 1946- इसे स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास समिति भी कहा गया। इसने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्थिति
    का व्यापक मूल्यांकन किया और सार्वजनिक स्वास्थ्य श्रमबल के प्रशिक्षण की अनुशंसा की।
  • मुदलियार समिति (1959) – इसने अपनी रिपोर्ट 1962 में सौंपी। यह सुझाव सर्वप्रथम इसी समिति द्वारा दिया गया कि स्वास्थ्य और कल्याण की समस्याओं से संबंधित कर्मियों के पास एक समग्रतापूर्ण व विस्तृत दृष्टिकोण तथा राज्य स्तर पर प्रशासन का समृद्ध अनुभव होना चाहिए।
  • करतार सिंह समिति (1973) – इस समिति ने सुझाव दिया कि संक्रामक रोग नियंत्रण, निगरानी प्रणाली, डाटा प्रबंधन, सामुदायिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कोई औपचारिक प्रशिक्षण न रखने वाले तथा नेतृत्व व संचार जैसे कौशलों की कमी रखने वाले चिकित्सक, सार्वजनिक सुविधाओं हेतु काम करने के लिए आवश्यक क्षमता का अभाव रखते हैं और अनुपयुक्त हैं।
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 ने भी समर्पित, प्रशिक्षित और विशिष्ट कर्मियों के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएँ चलाने हेतु तथा स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन कैडर की स्थापना का पुरजोर समर्थन किया है।
  • विभिन्न रिपोर्टों में सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर के गठन की अनुशंसाओं के बावजूद अभी तक अखिल भारतीय स्तर पर ऐसी किसी सेवा का गठन नहीं हुआ है।

कैडर कार्यान्वयन स्थिति के आधार पर राज्यों को सामान्यतः चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है

  • सुव्यवस्थित कैडर वाले राज्य जैसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र;
  • ऐसे राज्य जहाँ कैडर के कुछ चयनित घटक अस्तित्व में हैं, जैसे- पश्चिम बंगाल, केरल;
  • वे राज्य जो सक्रिय रूप से कैडर के गठन का प्रयास कर रहे हैं, जैसे- ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़; तथा
  • वे राज्य जो अभी कैडर पर विचार करने के चरण में ही हैं, जैसे- कर्नाटक, हरियाणा एवं कुछ पूर्वोत्तर राज्य

कैडर की आवश्यकता

इसकी संकल्पना, भारतीय स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली की विशिष्ट और जटिल आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए, सिविल सेवा की तर्ज पर समर्पित, पेशेवर व प्रशिक्षित कर्मियों का चयन करने के लिए की गयी है।

  • एक उपयुक्त शिक्षा मॉडल का अभाव- भारत में चिकित्सा शिक्षा (समवर्ती सूची का विषय) पूरी तरह से पश्चिमी मॉडल पर आधारित है। यह मॉडल भारतीय परिस्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है।
  • प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल का अभाव- रोग-विषयक योग्यता रखने वाले चिकित्सक और यहाँ तक कि व्यापक अनुभव वाले चिकित्सक भी, अनेक चुनौतियों जैसे तकनीकी विशेषज्ञता, लॉजिस्टिक्स प्रबंधन तथा स्वास्थ्य और नेतृत्व के सामाजिक निर्धारकों आदि का सामना करने में असमर्थ रहे हैं। इससे हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की गुणवत्ता में बाधा आयी है।
  • नौकरी की विभिन्न माँग – अधिकांश राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर की अनुपस्थिति में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं कि किसी एनेस्थेटिस्ट या किसी नेत्र विशेषज्ञ को भी प्रजनन और बाल स्वास्थ्य या मलेरिया नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कराना पड़ता है। इन्हें मुश्किल से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और इसके सिद्धांतों का कोई ज्ञान होता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में विशेषज्ञता का अभाव- सरकार की विशिष्ट सेवाओं और सामान्य सेवाओं में योजना निर्माण, निष्पादन तथा अनुवर्ती कार्यवाही (follow up) के मध्य एक बड़ा अंतर विद्यमान है। दोनों ही स्थितियों के लिए प्रशासकों के एक विशेष वर्ग की तत्काल आवश्यकता है जो स्वास्थ्य देखभाल के विशेषज्ञ हों, ताकि बेहतर प्रबंधन और नवाचार हो सके।
  • अधिकारियों के नियामक प्राधिकरण का अभाव – अधिकतर राज्यों में एक व्यापक लोक स्वास्थ्य अधिनियम की अनुपस्थिति है। इसका अर्थ यह है कि स्वास्थ्य अधिकारियों के पास नियामक प्राधिकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य कानूनों को पर्याप्त रूप से लागू कराने की शक्तियों का अभाव है। एक अलग सार्वजनिक स्वास्थ्य निदेशालय के अभाव के कारण उनकी स्वतंत्रता,
    प्रभावशीलता और दक्षता के साथ समझौता होता है।

लाभ

  • एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर का अर्थ होगा कि जो चिकित्सक सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, उन्हें
    स्वास्थ्य नीति का उचित प्रशिक्षण मिलेगा और प्रोन्नति के लिए पूर्व-योग्यता के रूप में वे एक निर्दिष्ट समयावधि तक जिला
    स्तर के किसी अस्पताल में काम करेंगे।
  • एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर होने से हमारे पास ऐसे कर्मचारी होंगे जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन के सिद्धांतों को लागू
    करके ऐसी गलतियों से बच सकते हैं जो उत्तर प्रदेश में हुई त्रासदी जैसी घटनाओं का कारण बनती हैं। साथ ही साथ बेहतर गुणवत्तायुक्त सेवाएँ भी प्रदान की जा सकेंगी। इससे भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की दक्षता और प्रभावशीलता में निश्चित रूप से सुधार होगा।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के गुणवत्तापूर्ण और वैज्ञानिक कार्यान्वयन से गरीबों को भी लाभ होगा, क्योंकि इससे उनकी क्षमता से अधिक खर्च की आवश्यकता में कमी आएगी और महँगी निजी स्वास्थ्य देखभाल पर निर्भरता कम होगी
  • इस प्रक्रिया में, विशेषज्ञों के रूप में मूल्यवान संसाधनों को दूसरे क्षेत्रों से निकाल कर उनका उपयोग उन क्षेत्रों में कर पाएँगे । जहाँ उनकी निश्चित रूप से आवश्यकता है। इस प्रकार उनकी क्षमताओं को व्यर्थ जाने से रोका जा सकेगा।
  • स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों का एक समर्पित कैडर राज्य-विशेष से संबंधित स्वास्थ्य खतरों को पहचान सकता है और उनके प्रसार के पहले उन्हें नियंत्रित कर सकता है।
  • NHP के सुझाव के अनुसार, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानवशास्त्र, नर्सिंग, अस्पताल प्रबंधन और संचार के क्षेत्रों से पेशेवरों को भी शामिल करना एक बहु-विषयक (multi-disciplinary) दृष्टिकोण होगा। यह इस तथ्य पर आधारित है कि यदि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को सामुदायिक स्वीकृति हासिल करनी हो तो सांस्कृतिक प्रकृति को समझना भी आवश्यक है।
  •  मंत्रालय में उच्च पदों को इस कैडर से भरने तथा राज्य स्तर पर भी इसी तरह की व्यवस्था से, जिसमें मिशन निदेशकों की
    नियुक्ति भी शामिल है, से नियोजन में सुधार लाने और अति आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य नेतृत्व प्रदान करने में अत्यंत
    सहायता मिलेगी।

आगे की राह

  •  इस प्रकार के कैडर के निर्माण के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं। चूंकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है, अतः इस प्रस्ताव को
    अंतिम रूप से पारित होने के लिए दो तिहाई राज्यों की स्वीकृति की आवश्यकता होगी।
  • हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सूचकांकों और मापदंडों में भारत की स्थिति को देखते हुए, एक स्पष्ट रूप से परिभाषित
    सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर समय की आवश्यकता है।

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