राजनीतिक सशक्तिकरण एवं लिंग समानता के मध्य संबंध का उल्लेख : पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में भूमिका
प्रश्न: महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में PRIs (पंचायती राज संस्थाओं) द्वारा निभाई गई भूमिका की चर्चा कीजिए। साथ ही, उनकी राजनीतिक भागीदारी को और अधिक बढ़ाने के उपाय सुझाइए।
दृष्टिकोण
- परिचय में, राजनीतिक सशक्तिकरण एवं लिंग समानता के मध्य संबंध का उल्लेख कीजिए।
- व्याख्या कीजिए कि किस प्रकार पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) ने महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में भूमिका निभाई है।
- वांछनीय परिवर्तन के अभाव के कारणों को रेखांकित कीजिए।
- PRIs में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि करने के उपाय बताइए।
उत्तर
राजनीतिक सशक्तिकरण, लिंग समानता के साथ-साथ श्रम बल भागीदारी, शिक्षा इत्यादि जैसे मानदंडों के लिए एक प्रमुख आधार है। 73वें संविधान संशोधन के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं ने पंचायतों में सदस्यों की कम से कम एक तिहाई सीटों तथा अध्यक्ष की सीट के आरक्षण के माध्यम से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार:
- PRI (पंचायती राज संस्थाओं) में 13.72 लाख निर्वाचित महिला प्रतिनिधि (EWRs) थीं, जो दिसंबर, 2017 तक कुल निर्वाचित प्रतिनिधियों (ERs) का 44.2 प्रतिशत था।
- महिला सरपंच देश भर में कुल ग्राम पंचायतों (GP) का 43 प्रतिशत है।
यह स्थानीय शासन में महिलाओं के सक्रिय नेतृत्व का प्रमाण है। महिलाएं, नागरिक समाज के अभिशासन में अपने अनुभवों के माध्यम से निर्धनता, असमानता और लैंगिक अन्याय इत्यादि मुद्दों के प्रति राज्य को संवेदनशील बना रही है। यह स्थानीय स्तर पर विभिन्न विकास कार्यक्रमों में निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया, योजना निर्माण, कार्यान्वयन और मूल्यांकन को भी प्रभावित करता है।
तथापि, यह प्रतिनिधित्व पितृसत्तात्मक मानदंडों द्वारा सीमित किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त PRI के स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व, भागीदारी के अन्य स्तरों में परिवर्तित नहीं हो सका है। उदाहरण के लिए:
- लोक सभा में 11.8 प्रतिशत जबकि राज्य सभा में 11 प्रतिशत महिला सांसद हैं।
- अक्टूबर, 2016 तक देश भर के कुल 4118 विधान सभा सदस्यों (MLAs) में केवल 9 प्रतिशत महिलाएं हैं।
इस प्रकार, भारत जैसे देश में जहाँ एक ओर कुल जनसंख्या में लगभग 49 प्रतिशत महिलाएं हैं, तो वही दूसरी ओर उनकी राजनीतिक भागीदारी बहुत ही कम है। घरेलू जिम्मेदारियों, समाज में महिलाओं की भूमिका के संदर्भ में प्रचलित सांस्कृतिक प्रवृतियां एवं पारिवारिक समर्थन का अभाव जैसे कारक उन प्रमुख कारणों में से हैं जो उनके राजनीति में प्रवेश करने में व्यवधान उत्पन्न करते थे।
इनमें से कुछ कारणों का PRI द्वारा समाधान किया जा चुका है। हालांकि, इस भागीदारी को विस्तृत करने हेतु निम्नलिखित उपायों का भी सुझाव दिया जा सकता है:
- संसद और राज्य विधायिकाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने हेतु विधिक उपायों को अपनाना।
- राजनीतिक दलों को अपनी संगठनात्मक भूमिकाओं के साथ-साथ टिकट वितरण में महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आगे आना चाहिए।
- महिला उम्मीदवारों के लिए वित्तीय सहायता विचार करने योग्य सुझाव है।
- शैक्षणिक संस्थानों तथा घरों में निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका के महत्व के विचार को प्रोत्साहित करना।
- सार्वजनिक स्तर पर बोलने आदि जैसी गतिविधियों के माध्यम से युवा आयु से ही सहायता प्रदान करके सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लिखित है कि 2010 से 2017 के मध्य लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यह अल्प परंतु महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है जिसे बनाए रखने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
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