प्रायद्वीपीय भारत की अपवाह प्रणाली का संक्षिप्त परिचय
प्रश्न : प्रायद्वीपीय भारत के वर्तमान अपवाह तंत्र को आकार देने वाली प्रमुख भूवैज्ञानिक घटनाएं क्या थी? प्रायद्वीपीय अपवाह प्रतिरूप में भौगोलिक कारकों क्या भूमिका निभाई गई है?
दृष्टिकोण:
- प्रायद्वीपीय भारत की अपवाह प्रणाली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रायद्वीपीय भारत के वर्तमान अपवाह तंत्र को आकार प्रदान करने वाली प्रमुख भूवैज्ञानिक घटनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणाली में विभिन्न भौगोलिक कारकों जैसे मैदानों, उच्चभूमियों आदि की उपस्थिति के कारण पाए जाने वाले विभिन्न जल अपवाह प्रतिरूपों पर चर्चा कीजिए।
उत्तरः
भारतीय जल अपवाह तंत्र में अनेक छोटी और बड़ी नदियां सम्मिलित हैं। यह तीन प्रमुख भूआकृतिक इकाइयों तथा वर्षा की प्रकृति एवं लक्षणों का परिणाम है।
प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणाली, हिमालयी अपवाह प्रणाली से पुरानी है, जो यहाँ प्रवाहित नदियों की प्रौढ़ावस्था और नदी घाटियों के चौड़ा एवं उथला होने से प्रमाणित होता है। तीन प्रमुख भूवैज्ञानिक घटनाओं ने प्रायद्वीपीय भारत के वर्तमान अपवाह तंत्र को आकार प्रदान किया है:
- आरंभिक टर्शियरी काल के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी पार्श्व का अवतलन या धंसाव हो गया था जिससे यह समुद्रतल से नीचे चला गया। सामान्यतः इससे मूल जल संभर के दोनों ओर नदी की सममित योजना में विकृति उत्पन्न हो गई।
- हिमालय में होने वाले प्रोत्थान के कारण प्रायद्वीपीय खंड के उत्तरी भाग का अवतलन हुआ और परिणामस्वरूप भ्रंश द्रोणियों का निर्माण हुआ।
- इसी काल में प्रायद्वीप खंड उत्तर-पश्चिम दिशा से, दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक गया। परिणामस्वरूप इसका अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।
प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली क्षेत्र में विद्यमान विभिन्न भौगोलिक कारकों के कारण भिन्न-भिन्न जल अपवाह प्रतिरूपों का अनुसरण करती है:
- नर्मदा और तापी नदियों की रिफ्ट घाटियों केअत्यधिक विभंजित और भ्रंशित स्थलाकृति युक्त होने के कारण समकोणीय जाल सदृश अपवाह प्रतिरूप का निर्माण होता है।
- विस्तृत बेसाल्ट निर्मित दक्कन पठार के पृष्ठ (जिनकी ढाल कम है) द्रुमाकृतिक (dendritic) प्रतिरूपों को प्रदर्शित करते हैं। इसमें नदी चैनल स्थलाकृति की ढलान का अनुसरण करता है। यह चंबल और सोन जैसी नदियों के संदर्भ में देखा जाता है।
- अमरकंटक पठार, रांची पठार आदि जैसे निम्न उच्चभूमि क्षेत्र अरीय अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए- अमरकंटक की पहाड़ी से नर्मदा, सोन और महानदी जैसी नदियाँ अलग-अलग दिशाओं में प्रवाहित होती हैं।
- पश्चिमी तटीय मैदान समानांतर जल अपवाह प्रतिरूपों का निर्माण करते हैं, जहां धाराएं पश्चिमी घाट (जो प्रमुख जल विभाजक के रूप में कार्य करता है) से उत्पन्न होती हैं और पश्चिम की ओर सीधे प्रवाह मार्गों में अपवाहित होती हैं। इसके उदाहरणों में शरावती, नेत्रवती और मांडवी नदियां सम्मिलित हैं।
- गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ द्रुमाकृतिक जल अपवाह प्रतिरूप विकसित करती हैं।
इस प्रकार, विभिन्न भौगोलिक विशेषताओं जैसे मैदानों, निम्न उच्चभूमियों और पठारों के परिणामस्वरूप प्रायद्वीपीय भारत में मिश्रित प्रकार के जल अपवाह प्रतिरूप विकसित हुए हैं।