पृथ्वी का ऊष्मा बजट : पृथ्वी के ऊष्मा बजट पर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGS) की बढ़ती सांद्रता

प्रश्न: स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव पृथ्वी का उष्मा बजट बनाए रखने में सहायता करता है। पृथ्वी के ऊष्मा बजट पर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGS) की बढ़ती सांद्रता के संभावित निहितार्थ क्या हैं?

दृष्टिकोण

  • पृथ्वी के ऊष्मा बजट को परिभाषित कीजिए।
  • डायग्राम / फ्लो चार्ट का उपयोग करते हुए स्पष्ट कीजिए कि किस प्रकार प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव पृथ्वी का ऊष्मा बजट बनाए रखने में सहायता करता है।
  • वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) की बढ़ती सांद्रता के संभावित परिणामों पर चर्चा कीजिए। 20

उत्तर

पृथ्वी के ऊष्मा बजट या ऊष्मा संतुलन का अर्थ यह है कि पृथ्वी न तो ऊष्मा का संचयन करती है और न ही उसका ह्रास करती है। यह अपना तापमान स्थिर बनाए रखती है। ऐसा तभी संभव है जब सौर विकिरण द्वारा सूर्यातप के रूप में प्राप्त ऊष्मा, पार्थिव विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में संचरित ताप के बराबर हो।

GHG का प्रभाव और पृथ्वी का ऊष्मा बजट बनाए रखने में इसकी भूमिका: आपतित सूर्यातप का लगभग 29 प्रतिशत वायुमंडल के चमकदार कणों अथवा धरातल की चमकदार सतह से वापस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है। शेष लगभग 71% भाग पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। चूँकि आपतित सौर विकिरण का 71% वायुमंडल और पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, इसलिए औसत तापमान स्थिर बनाए रखने के लिए समान मात्रा में ऊर्जा वापस अंतरिक्ष में संचरित करना आवश्यक  है।

आपतित सौर विकिरण का 23% वायुमंडल द्वारा जबकि 48% धरातल और महासागरीय सतह द्वारा अवशोषित किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर ऊष्मा बजट को स्थिर बनाए रखने के लिए धरातलीय प्रक्रियाओं द्वारा महासागर की सतह और धरातल द्वारा अवशोषित इस 48% आपतित सौर ऊर्जा को वापस परावर्तित किया जाना आवश्यक है। इस उर्जा को सतह तीन प्रक्रियाओं के माध्यम से परावर्तित करती है (25% वाष्पीकरण के माध्यम से, 5% संवहन के माध्यम से और 17% तापीय अवरक्त ऊर्जा के उत्सर्जन के माध्यम से)।

सतह द्वारा तापीय अवरक्त ऊर्जा के उत्सर्जन में ग्रीनहाउस प्रभाव मुख्य भूमिका निभाता है। पृथ्वी की सतह आपतित सौर ऊर्जा के 17% के बराबर भाग को तापीय अवरक्त ऊर्जा के रूप में प्रकीर्णित करती है। हालांकि, इसमें से सीधे अंतरिक्ष में पलायन कर जाने वाली ऊर्जा की मात्रा आपतित सौर ऊर्जा का लगभग 12% ही होती है। अतः आपतित सौर ऊर्जा का शेष 5-6% भाग वायुमंडल में स्थानांतरित हो जाता है क्योंकि ग्रीनहाउस गैसों के अणु सतह से विकरित होने वाली तापीय अवरक्त ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प जैसी ग्रीनहाउस गैसें और अन्य ट्रेस गैसें (अत्यंत कम मात्रा में विद्यमान) पृथ्वी की सतह से विकरित होने वाली तापीय अवरक्त ऊर्जा को अवशोषित कर लेती हैं। जब ग्रीनहाउस गैसों के अणु तापीय अवरक्त ऊर्जा को अवशोषित करते हैं तो उनके तापमान में वृद्धि होती है और वे तापीय अवरक्त ऊर्जा की इस बढ़ी हुई मात्रा को सभी दिशाओं में विकिरित करते हैं। इसमें से कुछ नीचे की ओर प्रसारित होती है और अंततः वापस पृथ्वी की सतह के संपर्क में आती है, जहां इसे पुन: अवशोषित कर लिया जाता है और इस प्रकार पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है। वायुमंडल द्वारा पृथ्वी की सतह का यह पूरक तापन प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव है।

पृथ्वी के ऊष्मा बजट पर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) की बढ़ती सांद्रता के संभावित निहितार्थ:

GHGs की बढ़ती सांद्रता ने पृथ्वी की ऊष्मा विकिरित करने की पद्धति को अस्वाभाविक रूप परिवर्तित कर दिया है। इस दशा में भी ऊष्मा बजट समान बना रहता है, क्योंकि आगत और निर्गत ऊष्मा की मात्रा समान होती है। हालांकि, बहिर्गामी IR विकिरण द्वारा वायुमंडल में व्यतीत किया जाने वाला समय बढ़ जाता है, जिससे ऊष्मा के अवशोषण में वृद्धि होती है। इस प्रकार, यद्यपि पृथ्वी के बाह्य वायुमंडल तक पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा समान रहती है तथापि यह पृथ्वी के वायुमंडल में अधिक समय तक विद्यमान रहती है, जिससे सतह का तापमान बढ़ जाता है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, पृथ्वी द्वारा विकिरित ऊष्मा की मात्रा में भी वृद्धि होती है। हालांकि, यह सीधे ही अंतरिक्ष में वापस जाने से पूर्व लंबे समय तक ग्रीनहाउस गैस से प्रभावित वायुमंडल में विद्यमान रहती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है। जब तक ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता में वृद्धि होती रहेगी, ऊर्जा असंतुलन भी बढ़ता रहेगा और सतह का तापमान भी बढ़ता रहेगा। विगत शताब्दी में सतह के वैश्विक औसत तापमान में 0.6 और 0.9 डिग्री सेल्सियस के मध्य वृद्धि हुई है तथा वर्तमान ऊर्जा असंतुलन की अनुक्रिया में इसमें कम से कम 0.6 डिग्री सेल्सियस और वृद्धि होगी।

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