प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) : PMFBY के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियां

प्रश्न: यद्यपि किसानों को फसल हानि के विरूद्ध बीमा प्रदान करने का विचार नया नहीं है, तथापि प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) पुरानी फसल बीमा योजनाओं की कमियों को दूर करने का एक प्रयास है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, PMFBY के कार्यान्वयन में आड़े आने वाली चुनौतियों की पहचान कीजिए एवं आगे की राह सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • उत्तर के पहले भाग में, उपयुक्त उदाहरणों सहित प्रश्न के पहले कथन की पुष्टि कीजिए।
  • प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए और यह भी स्पष्ट कीजिए कि यह किस प्रकार पिछली योजनाओं की कमियों को दूर करती है।
  • अंत में, इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • एक भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण के साथ संक्षिप्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

भारतीय कृषि विभिन्न आपदाओं के प्रति सुभेद्य है। कृषि की यह सुभेद्यता अत्यधिक कठिनाइयों का कारण बनती है, विशेष रूप से उन किसानों के लिए जो निर्वाह कृषि में संलग्न हैं। इन जोखिमों को कवर करने के लिए, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित NAIS जैसी योजनाएं शुरू की गईं। हालांकि, इनसे अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए, जिसका मुख्य कारण सीमित जोखिम कवरेज था।

प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) एक महत्वपूर्ण सुधार है जो निम्नलिखित प्रावधानों के माध्यम से पुरानी योजनाओं की कमियों को दूर करने का प्रयास करता है: 

  • प्रीमियम पर और दावों की दशा में बिना किसी कटौती के पूर्ण बीमा राशि प्राप्त करने के लिए किसानों की पात्रता के संबंध में कोई ऊपरी सीमा नहीं है।
  • किसानों को सभी खरीफ फसलों के लिए 2%, सभी रबी फसलों के लिए 1.5% और वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों के मामले में 5% के एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होगा।
  • फसल के नुकसान की स्थिति में, किसानों को ऐशहोल्ड उपज और वास्तविक उपज के बीच के अंतर के आधार पर भुगतान किया जाएगा।
  • फसल कटने के 14 दिन बाद तक यदि फसल को कोई नुकसान पहुँचता है तो किसानों को दावे की राशि प्राप्त हो सकेगी।
  • ऐसे विभिन्न बाह्य जोखिमों के विरुद्ध बीमा जो पिछली योजनाओं में शामिल नहीं थे।
  • यह जिले जैसे वृहत क्षेत्र पर आधारित आकलन की तुलना में स्थानीय फसल नुकसान को कवर करती है। इस प्रकार यह स्थानीय स्तर तक सीमित आपदाओं के मामले में भी सहायता प्रदान करती है।
  • फसल के बजाय किसान की आय का बीमा करती है अतः आपदा की दशा में न्यूनतम आय सुनिश्चित करती है।
  • फसल क्षति मूल्यांकन के लिए जीपीएस, स्मार्ट फोन, ड्रोन और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीकों के उपयोग के माध्यम से त्वरित और सरल तरीके से किसानों के दावों का निपटान करती है।

हालांकि, जोखिम कम करने की दिशा में सकारात्मक कदम के बावजूद, इस योजना के कार्यान्वयन में चुनौतियां भी विद्यमान हैं, जैसे कि:

  • आपदा के कारण स्थानीय स्तर पर होने वाली क्षति की जांच न किये जाने के कारण बीमा कंपनियों द्वारा अपर्याप्त और विलम्बित दावा भुगतान।
  • 2016 में खरीफ अवधि के दौरान उच्च बीमांकिक प्रीमियम दरें वसूली गयीं जिसमें कंपनियों को अत्यधिक लाभ हुआ। केवल बैंक से ऋण लेने वाले किसानों के लिए अनिवार्य कवरेज की व्यवस्था ने इसकी पहुंच सीमित कर दी है। स्वैच्छिक होने के कारण 2015 और 2016 के दौरान केवल लगभग 5% गैर-उधारकर्ता (बैंक से ऋण न लेने वाले) किसानों ने ही खरीफ फसल के दौरान बीमा का लाभ उठाया।
  • लक्षित लाभार्थियों के बीच जागरूकता की कमी और सरकारों और कंपनियों की वितरण की निम्न क्षमता।
  • अपर्याप्त सैंपल आकार (जो फसल के नुकसान के स्तर और विविधता को कवर नहीं करता) के कारण फसल की क्षति के आकलन में अंतराल।
  • अपनी अर्थव्यवस्था पर प्रीमियम के बोझ के कारण PMFBY के कार्यान्वयन में राज्यों की अनिच्छा।

यद्यपि PMFBY का उद्देश्य प्रशंसनीय है, उपर्युक्त चुनौतियों का समाधान करने के लिए समेकित प्रयासों की आवश्यकता है। एक ऐसे किसान-अनुकूल, निष्पक्ष और पारदर्शी कृषि बीमा का होना वर्तमान समय की आवश्यकता है जो भारतीय किसानों के समक्ष उपस्थित भौगोलिक दृष्टि से विविधतापूर्ण चुनौतियों से निपट सके।

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