विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के योगदान
प्रश्न: भारत का सभ्यता संबंधी एक लंबा इतिहास रहा है। इस संदर्भ में, विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- भूमिका में भारत के सभ्यता संबंधी इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- विज्ञान, गणित एवं चिकित्सा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
- आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं सुश्रुत इत्यादि जैसे विद्वानों के विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारत का सभ्यता एवं संस्कृति संबंधी एक लंबा इतिहास रहा है। यह सिंधु घाटी सभ्यता के उद्भव स्थल से लेकर हिंदू धर्म, जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म के भी विकास की भूमि रही है। प्राचीन भारत को ऋषियों, संतों एवं दार्शनिकों के साथ-साथ विद्वानों और वैज्ञानिकों की भूमि के रूप में जाना जाता है। प्राचीन भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अंतर्गत गणित, खगोल विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान एवं शल्य चिकित्सा के साथ-साथ सिविल अभियांत्रिकी और वास्तुकला शामिल थे।
गणित
भारत में अनेक गणितीय अवधारणाओं का उदय हुआ, जैसे- अंक प्रणाली, दशमलव प्रणाली, शून्य का प्रयोग, वर्गमूल और घनमूल।
- सिंधु घाटी सभ्यता में ईंट निर्माण एवं सड़कों का लंबवत प्रतिच्छेदन, अशोक के एकाश्म स्तंभ, शुल्बसूत्र (न्यून (acute) एवं अधिक (obtuse) कोणों की अवधारणा} मापन एवं ज्यामिति के व्यापक ज्ञान को दर्शाते हैं।
- अरबों ने भारतीय अंक प्रणाली को ‘हिन्दसा’ (भारतीय अंक) नाम से अपनाया था, जिसे वर्तमान में अरेबिक नाम से जाना जाता है। इसका प्रयोग अशोक के अभिलेखों में किया गया था।
- जीरो की अवधारणा का आधार ‘शून्य’ नामक भारतीय दार्शनिक अवधारणा में है।
- आर्यभट्ट ने त्रिभुज के क्षेत्रफल को ज्ञात किया, जिसके परिणामस्वरूप त्रिकोणमिति (trigonometry) की उत्पत्ति हुई।
- भास्कराचार्य ने बीजगणितीय समीकरणों को हल करने के लिए ‘चक्रवात विधि’ का आरंभ किया।
विज्ञान
- खगोल विज्ञान- ग्रहों को ईश्वर के रूप में माना गया तथा इनकी गतियों का सटीक अध्ययन किया गया।
- आर्यभट्ट ने ग्रहों की स्थिति की गणना की, सूर्य एवं चंद्र ग्रहणों की व्याख्या की और पृथ्वी की परिधि का सटीक अनुमान लगाया। इसके अतिरिक्त इन्हें ‘सूर्य केन्द्रीयता (हेलियोसेंट्रिक)’ सिद्धांत के प्रतिपादन का भी श्रेय दिया जाता है।
- विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक वराहमिहिर ने बृहत्संहिता की रचना की। उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया कि किस प्रकार चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है।
- रसायन विज्ञान- इसमें दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न व्यावहारिक अनुप्रयोगों की खोज की गई।
- भारतीय रंगरेजों (dyers) ने स्थायी रंगों एवं नीले रंग का आविष्कार किया।
- भारतीय धातुकर्मियों ने सर्वप्रथम स्टील धातु का निर्माण किया। मेहरौली का लौह स्तंभ एवं अधिकांश सिक्के भारतीयों के उन्नत ज्ञान को प्रमाणित करते हैं।
- भौतिक विज्ञान
- अणु या परमाणु की अवधारणा को वैशेषिक दर्शन द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
- चिकित्सा विज्ञान
- चिकित्सा विज्ञान के रूप में आयुर्वेद का उद्भव प्राचीन भारत में हुआ और समय के साथ विभिन्न विद्वानों के प्रयासों से यह विकसित हुआ।
- पतंजलि ने योग सूत्र में शारीरिक और मानसिक स्तर पर औषधि के बिना उपचार करने वाले योग विज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया है।
- सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद, पथरी एवं प्लास्टिक सर्जरी संबंधी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। सुश्रुत ने मानव शरीर-रचना विज्ञान का अध्ययन किया और 121 शल्य चिकित्सा उपकरणों का उपयोग करके शल्यचिकित्सा से सम्बंधित चरण-दर-चरण प्रक्रिया का विवरण प्रस्तुत किया।
- चरक संहिता को भारतीय चिकित्सा प्रणाली का ज्ञानकोष कहा जाता है और इसमें विभिन्न रोगों, जैसे- बुखार, कुष्ठ रोग, टी.बी., हिस्टीरिया इत्यादि का वर्णन किया गया है। यह पुस्तक रोगों के उपचार हेतु विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं पादपों को सूचीबद्ध करती है, जिनका वर्तमान में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
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