प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान (पॉल्युटर पेज़) सिद्धांत

प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान (Polluter Pays) सिद्धांत उन तीन प्रमुख सिद्धांतों में से एक है जिनका भारत का ग्रीन कोर्ट, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal: NGT) अपना निर्णय देते समय आश्रय लेता है। NGTअधिनियम, 2010 की धारा 20 के अनुसार, किसी भी आदेश, निर्णय या अधिनिर्णय का निर्देश देते समय प्राधिकरण तीन मूल सिद्धांतों को लागू करेगा जिनमें संधारणीय विकास, निवारक सिद्धांत और प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान (Polluter Pays) सिद्धांत शामिल हैं।

प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत क्या है?

  • ‘प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत’ पर्यावरण न्याय-शास्त्र में एक सामान्य तौर पर स्वीकार्य प्रणाली है। इसके अनुसार किसी प्रदूषणकारी गतिविधि के कारण मानव स्वास्थ्य की क्षति या पर्यावरण क्षति को रोकने के लिए प्रदूषण के प्रबंधन की लागत तथा पर्यावरणीय क्षति के कारण पीड़ित लोगों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने की लागत को प्रदूषणकर्ताओं द्वारा वहन किया जाना चाहिए।
  • उदाहरण के लिए, उप-उत्पाद के रूप में विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करने वाले किसी कारखाने को ही प्रायः उन पदार्थों के सुरक्षित निपटान हेतु उत्तरदायी निर्धारित किया जाता है।।

कार्बन कर (Carbon Tax)

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जकों पर प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान के सिद्धांत को तथाकथित कार्बन मूल्य के निर्धारण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। कार्बन कर, कार्बन आधारित ईंधन (कोयले, तेल, गैस) के दहन पर लगाया जाने वाला शुल्क है। यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर, जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में आवश्यक संभावित लागत के बराबर एक शुल्क आरोपित करता है – जो उत्सर्जक को प्रदूषण की लागत को वहन करने हेतु बाध्य करता है। इस प्रकार किसी कारखाने के लिए एक वित्तीय प्रोत्साहन का सृजन किया जाता है, जैसे कि उत्सर्जन को कम कर इसकी प्रदूषण लागत को कम करना।

प्रदूषणकर्ता कार्बन मूल्य का दो भिन्न नीतिगत उपकरणों के माध्यम से भुगतान कर सकता है

  • पहला कार्बन कर के रूप में एक स्पष्ट मूल्य आधारित तंत्र है, जहां प्रदूषण का मूल्य-निर्धारण, उत्सर्जित प्रत्येक टन ग्रीन हाउस
    गैस के लिए कर की दर के निर्धारण के माध्यम से किया जाता है।
  • दूसरा कोटा-आधारित प्रणाली के माध्यम से होता है, जिसे प्राय: कैप-एंड-ट्रेड या उत्सर्जन व्यापार प्रणाली के रूप में जाना जाता है। यह प्रणाली किसी दी गई समयावधि में उत्सर्जन के अधिकतम स्तर पर एक सीमा निर्धारित करती है तथा फर्मों के मध्य ग्रीनहाउस गैस की प्रत्येक इकाई के लिए परमिट या अलाउंसेस का वितरण करती है।

प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान के सिद्धांत का महत्व

  • प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत उद्योगों या व्यक्तियों के कारण पर्यावरणीय अतिक्रमणों से होने वाली क्षति की दंडात्मक लागत निर्धारित करने हेतु महत्वपूर्ण है।
  • यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करने के लिए लागू किया जाता है कि पर्यावरणीय क्षति का शमन करने (mitigation) की लागत उद्योगों द्वारा अथवा उस व्यक्ति द्वारा वहन की जाएँ जो इसके लिए उत्तरदायी हो, न कि किसी बाह्य व्यक्ति अथवा निकाय द्वारा।
  • पर्यावरण प्रदूषण के परिणामस्वरूप होने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिए यह भी एक महत्वपूर्ण माध्यम
  • इस सिद्धांत में उद्योगों/वाणिज्यिक उद्यमों के प्रदर्शन को निर्धारित करने और पर्यावरण सम्बन्धी उत्तरदायी प्रथाओं को अपनाने में
    महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है।

प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत के उपयोग के उदाहरण

  • NGT ने विभिन्न मामलों में इस सिद्धांत का उपयोग किया है। इनमें सांविधिक स्वीकृति और पर्यावरणीय क्षति, स्वीकृति की शर्ते और परमिट के उल्लंघन, औद्योगिक गतिविधियों से प्रदूषण और निर्दिष्ट प्रदूषण मानकों के अनुपालन, समुदायों पर प्रभाव और प्रदूषण से संबंधित अन्य मामलों के उल्लंघन शामिल हैं।
  • प्राधिकरण ने मुख्य रूप से तीन तरीकों से इसका उपयोग किया है, ये हैं – घटना पश्चात प्रदूषणकर्ताओं पर प्रत्यक्ष जुर्माना लगाना, भविष्य के प्रदूषणों के लिए जुर्माना लगाना और करों की संरचना तैयार करने हेतु कुछ मामलों में पर्यावरणीय प्रदूषण की लागत को
    समावेशित करने हेतु राज्य को दीर्घकालिक नीतिगत उपायों के लिए निर्देशित करना।

पूर्वोपाय (Precautionary) सिद्धांत:

यह एक पर्यावरण प्रबंधन नियम है जिसके अनुसार यदि पर्यावरण या मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर या अपरिवर्तनीय क्षति का संकट विद्यमान हो, तो स्थिति के बारे में पूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान की कमी को संकट सीमित करने या उपचारात्मक चरणों में विलंब का कारण नहीं बनने दिया जाना चाहिए बशर्ते संभावित हानियों और लाभों के संतुलन से उन्हें लागू करने का औचित्य सिद्ध होता हो। दूसरे शब्दों में, “रोकथाम उपचार से बेहतर है (prevention is better than cure)।” इसे निवारक सिद्धांत भी कहा जाता है।

NGT के निर्णयों से संबंधित चिंताएं:

पर्यावरणीय अतिक्रमण पर निर्णयन हेतु यह सिद्धांत आधारशिला बना हुआ है। हालांकि, NGT के निर्णयों के संबंध में महत्वपूर्ण चिंताएं बनी रहती हैं। मुख्य चिंताए निम्नलिखित हैं

(a) दंड के निर्धारण में स्पष्टता और सामंजस्य का अभाव है: दंड राशि निर्धारित करने के तरीकों में स्पष्टता का अभाव है।

  • राशि के आकलन के लिए कोई वैज्ञानिक विधि नहीं है। इस तरह की स्पष्टता का अभाव NGT के निर्णय को व्यक्तिनिष्ठ रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
  • अनुमानों (Guesswork) पर आधारित होना प्राधिकरण के निर्णय को एकपक्षीय बनाता है। उदाहरण के लिए औद्योगिक स्रोतों से गंगा प्रदूषण के मामलों में, कंपनी के टर्नओवर की तुलना में लगाए गए एकमुश्त दंड अत्यधिक कम हैं।
  • अनुपयुक्त न्यायिक उदाहरण का आधार- जिन मामलों में यह पाया गया कि किसी विशिष्ट राशि का निर्धारण एक सुनिश्चित तरीके से किया गया था, उन मामलों में भी यह देखा गया कि अनुपयुक्त न्यायिक उदाहरण को आधार बनाने के कारण यह राशि अनुपयुक्त
    थी।
  • दंड निर्धारण हेतु तार्किक आधारों के उपयोग करने में सामंजस्य नहीं: उदाहरण के लिए, NGT ने अनेक बार कंपनी के लिए दंड राशि निर्धारित करने हेतु परियोजना लागत के 5 प्रतिशत का उपयोग किया है, किन्तु जब NGT की पश्चिमी खंडपीठ ने हजीरा में
    अडानी की बंदरगाह गतिविधियों में EC का उल्लंघन पाया तो समान मानदंडों का उपयोग नहीं किया गया।

(b) निर्णयों के अनुपालन में असंगतता यह सुनिश्चित करती है कि सिद्धांत का उद्देश्य प्राप्त नहीं किया गया है

  • उच्चतम न्यायालय में निर्णयों को चुनौती दिये जाने जैसी कई कारणों से भुगतान में विलंब
  • अर्थदंड का निवारक मूल्य कम होने के कारण भी दंड राशि की पर्याप्तता के संबंध में अनिश्चितता बनी रहती है। चीनी और
    आसवन इकाइयों के कारण गंगा प्रदूषण के मामलों के विश्लेषण से यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है।

प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत को सुदृढ़ बनाने हेतु अनुशंसाएं

NGT द्वारा प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत के उद्देश्यों को बेहतर ढंग से समझने और उन्हें लागू करने के लिए अनुशंसाएं निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभाजित हैं:

1. क्षतिपूर्ति के निर्धारण के तरीके

  • क्षतिपूर्ति निर्धारित करते समय मध्यस्थता से बचा जाना चाहिए।
  • क्षतिपूर्ति के निर्धारण में एक विस्तृत सलाहकारी दृष्टिकोण का उपयोग किया जाना चाहिए।
    दंड की गणना में सहायता करने वाले विशेषज्ञों पर विश्वास किया जाना चाहिए।

2. ऐसे कारक जिनको क्षतिपूर्ति के आकलन के दौरान ध्यान में रखा जाना चाहिए

  • तकनीकी कारकों का उपयोग किया जाना चाहिए: प्राधिकरण के सामने सामान्य तौर आने वाले मामलों के प्रकार को देखते
    हुए, कुछ सामान्य मानकों को विभिन्न मामलों के लिए उदाहरण के रूप में विकसित किया जा सकता है।
  • क्षति का मात्रात्मक आकलन किया जाना चाहिए।
  • उद्योगों द्वारा प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त दंड लगाया जाना चाहिए।

3. केंद्रीकृत भुगतान की उपयोगिता और निधि उपयोग की निगरानी

  • क्षतिपूर्ति राशि पर्यावरण राहत निधि (Environment Relief Fund: ERF) में जमा की जानी चाहिए। NGT अधिनियम
    द्वारा सभी क्षतिपूर्ति राशियों को अनिवार्य रूप से ERF में जमा किया जाना चाहिए। धन जमा करने के लिए एक केंद्रीकृत कोष, उचित लेखांकन तथा निधि वितरण एवं उपयोग के लेखापरीक्षा प्रयोजनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • निर्णय स्पष्ट और विस्तृत होना चाहिए तथा यह दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए कि धन का निधि में भुगतान कैसे किया जाना है। इसके अतिरिक्त, उन उद्देश्यों के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए, जिनके लिए धन का उपयोग
    किया जाना है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रदूषणकर्ता भुगतान करते हैं, एक निरीक्षण प्रणाली को आरंभ करने की आवश्यकता है। एक
    प्रणाली आरंभ की जा सकती है जिसमें यह आवश्यक हो की निर्दिष्ट निधि प्रबंधक ERF में तय धनराशि जमा करने के लिए
    प्रदूषणकर्ताओं को याद दिलाता रहे।

4. वैकल्पिक प्रणाली के निर्माण के लिए एक एक्टिविस्ट दृष्टिकोण को नियोजित करना जिसमें संभावित प्रदूषण को पहले ही रोकने की क्षमता हो: इस प्रक्रिया में न्यायालयों को प्रदूषणकारी कारकों को पहले ही रोकने के लिए एक्टिविस्ट जैसी भूमिका निभानी चाहिए जिससे पर्यावरण की क्षति को रोका जा सके।

  • इसमें प्रदूषण गतिविधियों को हतोत्साहित करके प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत के उद्देश्य को प्राप्त करने वाले
    दीर्घकालिक समाधान शामिल हैं।
  • ये ऐसे आदेश पारित करके किया जा सकता है जिनमें प्रदूषणकारी संस्था द्वारा द्वारा प्रदूषण के पीड़ितों को आनुपातिकता पर आधारित संदर्भ या मानक के अनुसार क्षतिपूर्ति किये जाने के तरीके से सम्बंधित दिशा-निर्देशों का उल्लेख हो। प्रतिभूति
    दस्तावेजों (security instruments) का प्रयोग भी किया जा सकता है और बाजार आधारित दस्तावेजों (market based
    instruments) को भी आरम्भ किया जा सकता है।

निष्कर्ष

उद्योगों या व्यक्तियों द्वारा किये गए पर्यावरणीय अतिक्रमणों से होने वाली क्षति की दंडात्मक लागत निर्धारित करने के लिए प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान (Polluter Pays) सिद्धांत महत्वपूर्ण है। इस सिद्धांत को वास्तविक रूप में लागू करने के लिए, क्षतिपूर्ति राशि के निर्धारण के लिए उपर्युक्त चर्चा के अनुसार एक वैज्ञानिक मानदंड विकसित किये जाने की आवश्यकता है। NGT के निर्णयों को वास्तविक स्तर पर कार्यान्वित करने के लिए सुचारु प्रशासनिक प्रणालियों की भी आवश्यकता है।

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