अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management)

भारतीय शहरों में वृहद मात्रा में अपशिष्ट उत्पन्न होता है जिसे उपचारित नहीं किया जाता है। विश्व बैंक के अनुसार, तीव्र नगरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण 2025 तक भारत में प्रतिदिन का अपशिष्ट उत्पादन 377,000 टन तक पहुंच जाएगा। यह विभिन्न सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को उत्पन्न करता है जैसे

  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: उदाहरण के लिए- दिल्ली में गाज़ीपुर लैंडफिल साइट पर विनाशक स्थिति दिखाई देती है। यहाँ किया जाना वाला अपशिष्ट दहन वायु प्रदूषण संकट में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
  •  हजारों अनौपचारिक रैगपिकर्स (कूड़ा बीनने वालों) की अदृश्य दुर्दशा जो अपशिष्ट के संग्रहण, पृथक्करण (सॉर्टिग) और व्यापार द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करते हैं। विभिन्न अनुमानों के अनुसार, रैगपिकर्स प्रति वर्ष नगर निगम का लगभग 14% बजट बचाते हैं। हालिया वर्षों में सरकार ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ कार्यक्रम के अंतर्गत स्वच्छता के मुद्दे को उचित महत्व दिया है।

इसने अपशिष्ट प्रबंधन के मोर्चे पर निम्नलिखित परिणामों को प्राप्त करने में सहायता की है

  • 82,607 वार्डों में से 51,734 में 100% डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रहण सुविधा प्रदान करना।
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा (waste-to-energy: WTE) परियोजनाओं से लगभग 88.4 मेगावाट (MW) ऊर्जा उत्पन्न की जा रही है।
  • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के तहत, सरकार ने “मिशन ज़ीरो वेस्ट” भी अपनाया है जिसका उद्देश्य देश में उत्पन्न ठोस अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन है। इसके तहत मुख्य बल रिड्यूस, रियूज, रिसाइकल (Reduce, Reuse and Recycle: 3Rs) पर दिया जाएगा।
  • हाल ही में, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने आठवीं रीजनल 3R फोरम का आयोजन किया जिसमें शहरों में स्वच्छ भूमि, स्वच्छ जल और स्वच्छ वायु प्राप्त करने के लक्ष्य वाले एशियाई महापौरों के इंदौर 3R घोषणापत्र को स्वीकृत किया गया।
  • चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था तीव्र गति से वृद्धि कर रही है, इसलिए देश को एक व्यापक अपशिष्ट संकट का सामना करना पड़ेगा। अतः सरकार द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए। इस संबंध में अपशिष्ट प्रबंधन के दक्षिण कोरिया मॉडल का उपयोग किया जा सकता है क्योंकि यह एकमात्र आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development: OECD) देश है जिसने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट को 40% तक कम कर दिया है, जबकि इसकी GDP में 5 गुना वृद्धि देखी गई है।
  • दक्षिण कोरिया ने वॉल्यूम-बेस्ड वेस्ट फ्री सिस्टम लागू किया है। इसके तहत एक व्यापक बदलाव को अपनाया गया है जो अपशिष्ट उत्पादन को नियंत्रित करने और रीसाइक्लिग की अधिकतम दरों को प्राप्त करने के साथ-साथ अपशिष्ट प्रबंधन के वित्तपोषण हेतु अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था करने पर केंद्रित है। इसके साथ ही यह स्थानीय सरकारों को अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन की सुविधाओं का विस्तार करने के लिए बजटीय और तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है। इससे नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के 60% भाग का उत्पादन होता है।

रीजनल 3R (Reduce, Reuse and Recycle) फोरम से सम्बंधित तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय विकास केंद्र (United Nations Centre for Regional Development: UNCRD) 2009 से जापान सरकार के सहयोग के साथ 3Rs पर अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय फोरम का आयोजन कर रहा है। इसका उद्देश्य उद्योग, सेवा और कृषि क्षेत्र में रिड्यूस, रियूज और रिसाइकल की अवधारणा को बढ़ावा देना है।
  • यह एक वैधानिक, गैर-बाध्यकारी और स्वैच्छिक दस्तावेज है जिसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत देशों की निगरानी विशिष्ट प्रगति हेतु 3R संकेतकों के एक समुच्चय सहित 3Rs को बढ़ावा देने के उपायों और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करना है।
  • इस मंच के माध्यम से भारत अपने ‘मिशन जीरो वेस्ट’ दृष्टिकोण को और सुदृढ़ बनाने का लक्ष्य रखता है, ताकि अपशिष्ट को संसाधन के रूप में देखने के लिए शहरों, उद्योगों और अन्य हितधारकों को प्रोत्साहित किया जा सके।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (solid waste management)

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) भारत में कई शहरी स्थानीय निकायों (urban local bodies -ULBs) के लिए एक बड़ी समस्या
    है। यहाँ शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास के परिणामस्वरुप अपशिष्ट संग्रह, परिवहन और उपचार एवं निपटान सुविधा की अपर्याप्तता के कारण प्रति व्यक्ति नगरपालिका ठोस कचरे (municipal solid waste: MSW) के उत्पादन में वृद्धि हुई
  • भारत में प्रति दिन 150,000 टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (municipal solid waste) उत्पन्न होता है और मुंबई विश्व का पांचवां सबसे अधिक ठोस अपशिष्ट वाला शहर है। फिर भी, केवल 83% अपशिष्ट को संगृहीत और 30% से भी कम को उपचारित किया जाता है।
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Municipal solid waste management :MSWM) संधारणीय महानगरीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसके तहत पर्यावरण पर MSW के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए ठोस अपशिष्ट का पृथक्करण, भंडारण, संग्रहण, स्थानांतरण, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान शामिल है। अप्रबंधित MSW असंख्य रोगों के प्रसार का एक कारक बन गया है।

प्रभावी SWM से संबंधित चुनौतियां:

  • पृथक्करण: परिवार और समुदाय दोनों ही स्तरों पर MSW के संगठित और वैज्ञानिक रूप से नियोजित पृथक्करण के उपायों का अभाव है। अपशिष्टों को छांटने का कार्य, अधिकांशतः असंगठित क्षेत्र द्वारा और केवल कुछ अवसरों पर ही अपशिष्ट उत्पादकों द्वारा किया जाता है। पृथक्करण और वर्गीकरण की प्रक्रिया अत्यधिक असुरक्षित और जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में संपादित की जाती है। साथ ही, पृथक्करण सम्बन्धी गतिविधियों की प्रभावशीलता भी काफी कम है क्योंकि असंगठित क्षेत्रों द्वारा केवल मूल्यवान घटकों को ही पृथक (अलग) किया जाता है।
  • निपटान (प्रशमन): भारत में लगभग सभी नगरों, कस्बों या गाँवों में MSW के अवैज्ञानिक निपटान की प्रणाली को अपनाया गया

अपशिष्ट भराव क्षेत्र प्रबंधन (Landfill management) से संबंधित मुद्दे:

  • अपशिष्ट भराव क्षेत्र संबंधी वैज्ञानिक आवश्यकताओं और अनिवार्य सुरक्षात्मक उपायों जैसे स्थल को दीवारों से कवर करना,
    CCTV कैमरे, अग्निशमक उपकरण और जल टैंक तथा कूड़ा बीनने वालों के नियमन आदि से सम्बंधित नियमों का उल्लंघन।
  • कभी-कभी लगने वाली आग वायु की गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालती है। (मीथेन उत्पादन के कारण)
  • अनेक अपशिष्ट भराव क्षेत्र निर्धारित समयसीमा पूर्ण हो जाने के बाद भी कार्यशील हैं।
  • शहरों के विस्तार के साथ पुराने अपशिष्ट भराव क्षेत्रों को पुनर्प्रबंधित करने और नए स्थलों की पहचान की जाने की आवश्यकता है। वैकल्पिक स्थलों की मांग नगर निगमों और राज्य सरकारों के मध्य विवाद का विषय बन गई है क्योंकि इस
    सन्दर्भ में अधिकारिता राज्य सरकार के पास है।

प्रसंस्करण सुविधा (Processing Facility)

  • कम्पोस्टिंग और अपशिष्ट से उर्जा उत्पादन करने वाले संयंत्र कम कार्य क्षमता पर संचालित किए जा रहे हैं।
  • कचरा प्रसंस्करण सुविधाओं से सम्बंधित अनेक नई परियोजनाएं अवरुद्ध हो गई हैं।
  • गीले अपशिष्ट को उर्वरक में परिवर्तित करने की सुविधाएं सभी जगह विद्यमान नहीं है।
  • जागरुकता की कमी के कारण अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में नागरिकों/सामुदायिक भागीदारी की कमी।

नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का वर्गीकरण: अपशिष्टों के विषय में उपलब्ध जानकारी के सीमित स्रोत किसी क्षेत्र विशेष के लिए उत्पादित अपशिष्ट के उचित निपटान को बाधित करते हैं।

सरकार द्वारा द्वारा उठाए गए कदम

ठोस कचरा प्रबंधन (SWM) नियम, 2016

  • इस नियम के अंतर्गत रिकवरी, रियूज और रीसायकल द्वारा अपशिष्ट को संसाधन के रूप में व्यवस्थित रूप से परिवर्तित करने के
    लिए अपशिष्टों के स्रोत पृथक्करण को अनिवार्य किया गया है।
  • गीले, ठोस और खतरनाक अपशिष्टों को पृथक करने की ज़िम्मेदारी अपशिष्ट उत्सर्जक की होगी। इसमें कचरा उत्सर्जक द्वारा कचरा एकत्र करने वाले को ‘उपयोगकर्ता शुल्क ‘ और कचरा फैलाने के लिए जुर्माना चुकाने का प्रावधान किया गया है; जुर्माने की राशि का निर्धारण स्थानीय निकाय द्वारा किया जाएगा।
  • स्थानीय निकायों द्वारा 10 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले स्थानों में दो वर्ष के अंदर अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयों को स्थापित किया जाएगा।
  • इस नियम के तहत राज्य सरकार द्वारा अनौपचारिक क्षेत्र के कचरा बीनने वाले, सफाई कर्मी और कबाड़ीवालों को औपचारिक क्षेत्र में संगठित करने संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, औद्योगिक पार्क के विकासकर्ता (डेवलपर) कुल भूमि क्षेत्र का कम से कम 5% भाग रिकवरी
    और रीसाइक्लिग सुविधाओं हेतु निर्धारित करेंगे।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन संबंधी परियोजनाओं के निर्माण में विफलता: भारत अभी भी अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन संबंधी परियोजना के सफलतापूर्वक निर्माण हेतु संघर्षरत है। इस उद्देश्य हेतु आर्थिक रूप से साध्य और प्रमाणित प्रौद्योगिकियों को आयात करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, बेहतर तरीके से वर्गीकृत और पृथक अपशिष्टों को आवश्यकता अनुसार उपयुक्त अपशिष्ट ऊर्जा संयंत्रों को प्रदान किया जाना चाहिए।
  • केंद्र और राज्य के बीच समन्वय की कमी: विशिष्ट कार्य योजना के समन्वय की कमी और ULBs द्वारा कार्यान्वयन स्तर पर निम्न
    स्तरीय रणनीति इसकी एक अन्य प्रमुख बाधा है।
  • शहरीकरण और पर्याप्त वित्त पोषण की कमी: अधिकांश अपशिष्ट भराव क्षेत्र महानगरों में अपनी क्षमता से भी अधिक विस्तृत हैं। अपर्याप्त वित्तीय सहायता अपशिष्ट प्रबंधन समस्या को अधिक गंभीर बना देती है। वित्तीय संकट के कारण ULBs के पास उपयुक्त
    समाधान प्रदान करने हेतु पर्याप्त आधारभूत संरचना का अभाव है।

कचरा मुक्त शहरों के लिए स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल

  • इसका उद्देश्य समग्र स्वच्छता में सुधार करने के लिए शहरों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना को प्रोत्साहित करना है। इसके
    तहत विभिन्न शहरों को समान स्टार रेटिंग प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
  • रेटिंग के निर्धारण में अपशिष्ट भंडारण और कूड़ेदान को प्रमुख महत्त्व दिया जाएगा।
  • स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के घटकों के आधार पर राज्यों और शहरों की प्रगति की निगरानी करने के लिए एक ऑनलाइन डेटाबेस की भी शुरुआत की गई है। इससे इस मिशन की निगरानी के संदर्भ में सुदृढ़ता और पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
  • हाल ही में, शहरी भारत में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (municipal solid waste: MSW) निपटान सुविधाओं से निकलने वाली अपशिष्टों की गंध को कम करने की तत्काल आवश्यकता को चिन्हित करते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board: CPCB) ने इससे निपटने के लिए दिशानिर्देश प्रस्तावित किए हैं।
  • केंद्र द्वारा जारी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, ने गंध को एक सार्वजनिक परेशानी (public nuisance) के रूप में रेखांकित किया है।
  • भारत में वायु प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए निमायक ढांचा स्थापित किया गया है, लेकिन “गंध के न्यूनीकरण और इस पर नियंत्रण के लिए कोई अधिनियम नहीं बनाया गया है। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण में वृद्धि के साथ गंध अब बड़ी समस्याओं का कारण बनती जा रही है।

दिशानिर्देशों के प्रमुख बिंदु:

  • अपशिष्ट भराव क्षेत्र (landfill sites) के आसपास ग्रीन बेल्ट का निर्माण : अपशिष्ट भराव क्षेत्रों में और उसके आसपास होने वाले
    गंध प्रदूषण में कमी और निवारण के लिए प्राकृतिक नियंत्रक के रूप में पौधों/पेड़ों की उपयुक्त प्रजातियों के साथ ग्रीन बेल्ट का निर्माण करना।
  • अपशिष्ट भराव क्षेत्र से निकलने वाली लैंडफिल गैसों का (Landfill Gases: LFG) कुशलतापूर्वक दोहन करना: MSW द्वारा अपशिष्ट भराव क्षेत्र प्रणाली को गंध उत्सर्जन को कम करने वाले उपायों के साथ डिज़ाइन करना।
  • शहरी विकास योजना के साथ समन्वय स्थापित करना: अपशिष्ट भराव क्षेत्रों का चयन ऐसा होना चाहिए कि आगामी दो या तीन दशकों तक शहर के विस्तार होने के बावजूद भी यह शहर के दायरे में न आये।

आगे की राह

  • MSW के संग्रह और परिवहन के लिए ULBs के कार्यभार को कम करने हेतु व्यावहारिक विकेन्द्रीकृत कम्पोस्टिंग संयंत्रों को स्थापित किया जाना चाहिए। यह कालांतर में अपशिष्ट भराव क्षेत्र पर पड़ने वाले दबाव को भी कम करेगा।
  • अपशिष्टों के निपटान और संग्रहण के स्तर पर वर्गीकरण किया जाना चाहिए और इससे सम्बंधित जानकारी को सार्वजनिक डोमेन (ज्ञानक्षेत्र ) में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह क्षेत्र विशेष के अनुरूप अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन की उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का चयन करने में भी सहायक हो सकता है।
  • अपशिष्ट को संसाधन के रूप में माना जाना चाहिए। अपशिष्ट से गैर-जैवनिम्नीकरणीय पुनर्चक्रण योग्य घटकों का पुनर्चक्रण (recycle) करने के लिए औपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र/उद्योगों को विकसित किया जाना चाहिए। कचरा बीनने वालों को रोजगार
    प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • खुले कचरे/अपशिष्ट भराव क्षेत्र से निक्षालित रिसाव के माध्यम से होने वाले भूजल प्रदूषण की रोकथाम को अनिवार्य कर देना
    चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त तकनीकी समाधान अपनाया जाना चाहिए।

योजना आयोग द्वारा प्रकाशित कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने निम्नलिखित उपायों के माध्यम से ठोस कचरे से निपटने के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है:

  • ‘5Rs की अवधारणा’ – रिड्यूस, रियूज, रिकवर, रीसायकल, रीमैन्यूफैक्चर (Reduce, Reuse, Recover , Recycle
    and Remanufacture: 5Rs) के सिद्धांत को अपनाना।
  • रेज़िडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन्स (RWAs), समुदाय आधारित संगठनों (CBOs)/गैर-सरकारी संगठन(NGO’s) को
    समुदायिक जागरुकता और डोर-टू-डोर संग्रहण का कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
  • यह प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी की वित्तीय व्यवहार्यता और उत्सर्जित अपशिष्ट की मात्रा एवं गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए
    केंद्रीकृत (दहन, गैसीकरण व ताप-अपघटन हेतु) या विकेंद्रीकृत (बायोमीथेनाईजेशन व वर्मीकम्पोस्ट के निर्माण हेतु) अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना पर बल देती है।
  • दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अपशिष्ट भराव क्षेत्र प्रबंधन के लिए मानक प्रोटोकॉल: भूमि आवश्यकता को कम करने हेतु एक साझा क्षेत्रीय स्वच्छता अपशिष्ट भराव क्षेत्र निर्धारित करने की आवश्यकता है। दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों द्वारा अपशिष्ट भराव क्षेत्र की स्थापना की जानी चाहिए और अपनी 50 कि.मी की परिधि के अन्दर सभी शहरों और कस्बों को कचरे के निपटान हेतु इस भराव क्षेत्र का उपयोग करने के लिए अनुमति देनी चाहिए।

मल कीचड़ प्रबंधन (Fecal Sludge Management: FSM) प्रणाली:

FMS के अंतर्गत पिट शौचालय, सेप्टिक टैंक तथा अन्य ऑनसाईट सैनिटेशन सिस्टम्स के माध्यम से मलकीचड़ और सेप्टेज का संग्रहण, परिवहन तथा उपचार करना शामिल है। इसके अंतर्गत अपशिष्ट को सेप्टेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में उपचारित किया जाता है, जिसे बाद में पुनः उपयोग किया जा सकता है या उसका स्थायी रूप से निपटान किया जा सकता है। इसके निम्नलिखित महत्व हैं:

  • वैकल्पिक निपटान व्यवस्था: FSM पारंपरिक सीवरेज (भारत में 32% कवरेज) नेटवर्क के लिए निर्माण लागत और समय
    दोनों के संदर्भ में एक प्रभावीकारी विकल्प है।
  • जन स्वास्थ्य में सुधार : स्वच्छ जल निकायों से आशय जल से उत्पन्न बीमारियों में कमी और अतिसार के रोग से संबंधित मृत्यु
    दर में कमी आना है।
  • हाथ से कूड़ा उठाने वालों की स्थिति में सुधार : उचित प्रशिक्षण के साथ, सफाई कर्मचारियों को FSM व्यवसायों को अपनाने
    और इसके संचालन में सक्षम बनाया जा सकता है।
  • आर्थिक लाभ: चूंकि मल कीचड़ पोषक तत्वों से युक्त होता है अतः इसे कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग बायोगैस के लिए भी किया जा सकता है या इससे फ्यूल पेल्लेट्स (fuel pellets) या इथेनॉल का निर्माण भी किया जा सकता है।
  • जल का स्रोत: जल से यदि रोगाणुओं और बैक्टीरिया को हटा दिया जाए तो इसे सिंचाई हेतु, निर्माण कार्यों में, उद्योगों के शीतलक संयंत्रों में, RWAs और आवासीय समितियों द्वारा बागानों एवं फ्लशिंग के लिए तथा सरकारी एजेंसियों द्वारा पार्को
    के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
  • प्रदूषण पर नियंत्रण: FSM भूजल को प्रदूषित किए बिना अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या का समाधान कर सकता है।
  • यह 2019 के स्वच्छ भारत मिशन के उद्देश्य (सभी के लिए सुरक्षित स्वच्छता) को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

भारत में कीचड़ प्रबंधन (Sludge Management)

  • लगभग 80% कीचड़ मानव मल और पानी का मिश्रण है जो रोग-वाहक बैक्टीरिया और रोगजनकों से युक्त होता है। इसको उपचारित नहीं किया जाता है और इसे नालियों, झीलों या नदियों में अपवाहित कर दिया जाता है। यह सुरक्षित और स्वस्थ जीवन हेतु गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
  • 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में हाथ से कूड़ा उठाने वाले परिवारों की संख्या 1,82,505 है। उचित निपटान प्रणाली या सुरक्षा नियमों की अनुपस्थिति के कारण उन्हें गंभीर स्वास्थ्य खतरे का सामना करना पड़ता है।
  • सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं वाले 70% से अधिक परिवार ऑनसाइट सिस्टम (onsite system) का प्रयोग करते हैं और अधिकांश शहरों में सीवर नालियों की व्यवस्थित प्रणाली या मल उपचार संयंत्र नहीं हैं।

मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (FSSM) पर राष्ट्रीय नीति:

  • सभी ULBs में FSSM सेवाओं के देशव्यापी कार्यान्वयन के लिए संदर्भ, प्राथमिकतायें और दिशा निर्धारित करना, ताकि सुरक्षित और संधारणीय स्वच्छता प्रत्येक परिवार, सड़क, नगर और शहर में सभी के लिए एक वास्तविकता के रूप में स्थापित हो सके।
  • यथाशीघ्र, संभवतः 2019 तक, सभी के लिए सुरक्षित और धारणीय स्वच्छता प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न प्रासंगिक कार्यक्रमों जैसे SBM, AMRUT और स्मार्ट सिटीज मिशन के मध्य समन्वय स्थापित करना और उन्हें सक्षम बनाना
  • FSSM से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित लिंग-आधारित स्वच्छता असुरक्षा का शमन करना, स्वास्थ्य समस्याओं और संरचनात्मक हिंसा को कम करना तथा स्वच्छता अवसंरचना के निर्माण और डिज़ाइन में पुरुष एवं महिलाओं, दोनों की भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • देश भर में FSSM सेवाओं के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु विभिन्न सरकारी संस्थाओं और एजेंसियों तथा अन्य महत्वपूर्ण हितधारकों (जैसे निजी क्षेत्र, नागरिक समाज संगठनों और नागरिकों) के कर्तव्यों और भूमिकाओं को परिभाषित करना।

 ई-कचरा (E-Waste)

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने पूर्व के ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन किया।

ई-कचरे से सम्बंधित तथ्य (ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2017

  • 2014 से 2016 तक ई-कचरे में 8% की वृद्धि हुई है और 2021 तक इसके 17% तक बढ़ने की आशंका है।
  • अवसंरचना, कानून और फ्रेमवर्क के निम्न स्तर के कारण भारत के कुल ई-कचरे का केवल 5 प्रतिशत पुनः चक्रित हो पाता है। परिणामस्वरूप, प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास, पर्यावरण की अपूरणीय क्षति और उद्योग में कार्य करने वाले लोगों के स्वास्थ्य में गिरावट की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • वैश्विक स्तर पर व्यक्तिगत प्रयोज्य में वृद्धि, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मूल्यों में गिरावट और अपेक्षाकृत अल्पावधिक प्रतिस्थापन चक्र वाले मोबाइल फोन और कंप्यूटर, ई-कचरे में वृद्धि हेतु उत्तरदायी हैं।
  • ई-कचरा उत्पादन की दृष्टि से महाद्वीपों की रैंकिंग; एशिया (18.2Mt), यूरोप (12.3Mt), अमेरिका (11.3Mt), अफ्रीका (2.2Mt), और ओशिनिया (0.7Mt)।
  • भारत ने पिछले वर्ष 1.95 मिलियन टन ई-कचरे का उत्पादन किया था। रिपोर्ट के अनुसार भारत में अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा उचित
    सुरक्षा उपायों के बिना ई-कचरे का प्रसंस्करण करने से उत्पन्न स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों के बारे में भी चेतावनी दी गई है।
  • ई-कचरा कानून: वर्तमान में विश्व जनसंख्या का 66% राष्ट्रीय ई-कचरा प्रबंधन कानूनों द्वारा कवर किया गया है। वर्ष 2014 में यह
    कवरेज 44% था।
  • पर्यावरण संरक्षण (SDG लक्ष्य 6, 11, 12, और 14), स्वास्थ्य (लक्ष्य 3) और रोजगार (लक्ष्य 8) पर इसके प्रभाव के कारण ईकचरा और SDG एक-दूसरे से सम्बंधित हैं।

ई-कचरा (प्रबंधन) संशोधन नियम 2018 की कुछ मुख्य विशेषताएं

  • इसका लक्ष्य ई-कचरे के पुनर्चक्रण या उसे विघटित करने में संलग्न इकाइयों को वैधता प्रदान करना तथा उन्हें संगठित करना है।
  • चरणबद्ध संग्रहः इसने ई-कचरे के लिए चरणबद्ध संग्रह का लक्ष्य प्रस्तुत किया है जो कि 2017-18 के दौरान EPR योजना में  निर्दिष्ट किये गए अपशिष्ट उत्पादन की मात्रा का 10% होगा। 2023 तक इसमें प्रत्येक वर्ष 10% की वृद्धि का लक्ष्य भी समाहित है।
    जैसा कि EPR योजना में वर्णित है, 2023 के बाद यह लक्ष्य अपशिष्ट उत्पादन की कुल मात्रा का 70% हो जाएगा।
  • यदि किसी उत्पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्पादों के औसत आयु से कम हैं, तो ऐसे नए उत्पादकों के लिए ई-कचरा
    संग्रहण के लिए पृथक लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
  • रिडक्शन ऑफ़ हैज़ार्डस सब्सटेंसेज़ (RoHS): इसके तहत RoHS परीक्षण आयोजित करने के लिए सैंपलिंग और टेस्टिंग हेतु जो लागत आएगी वह सरकार द्वारा वहन की जाएगी और यदि उत्पाद RoHS प्रावधानों का पालन नहीं करता है, तो लागत उत्पादकों द्वारा वहन की जाएगी।
  • प्रोड्यूसर रिस्पॉसिबिलिटी ऑर्गेनाईजेशन (PROs): PROs को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिए स्वयं को पंजीकृत कराने हेतु केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना होगा।

ई-कचरा क्या है?

  • यह ऐसे विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (EEE) और उसके हिस्सों को संदर्भित करता है जिन्हें पुन: उपयोग के प्रयोजन के बिना
    उसके स्वामी द्वारा कचरे के रूप में त्याग दिया गया है।
  • ई-कचरे में पाए जाने वाले सामान्य खतरनाक पदार्थ हैं: भारी धातुएं (जैसे- पारा, सीसा, कैडमियम इत्यादि) और रसायन (जैसेCFCs क्लोरोफ्लोरोकार्बन या विभिन्न अग्निशामक)।
  • भारत ई-कचरे का 5वां सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है।
  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का मुख्य स्रोत सरकार, सार्वजनिक और निजी (औद्योगिक) क्षेत्र हैं, जो कुल कचरा उत्पादन के लगभग
    71% के लिए उत्तरदायी हैं।
  • भारत में ई-कचरे का लगभग 90.5% अनौपचारिक क्षेत्रक द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है।

प्रोड्यूसर रिस्पॉसिबिलिटी ऑर्गेनाईजेशन (PROs): यह एक ऐसा संगठन है जो विभिन्न पुन: चक्रणकर्ताओं और विघटनकर्ताओं के माध्यम से उत्पादकों को EPR लक्ष्य पूरा करने में मदद करता है।

एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉसिबिलिटी (EPR): यह एक ऐसी रणनीति है, जिसके तहत उत्पादों के बाजार मूल्य में उनके संपूर्ण जीवन चक्र में उक्त वस्तु से संबद्ध पर्यावरणीय लागतों के समेकन को बढ़ावा देने के लिए प्रकल्पित की गई है।

EPR के तीन बुनियादी उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • विनिर्माताओं को उनके उत्पादों के पर्यावरणीय डिजाइन और उन उत्पादों की आपूर्ति के पर्यावरणीय प्रदर्शन में सुधार हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • उत्पादों को एक उच्च उपयोगिता दर प्राप्त करनी चाहिए।
  • सामग्रियों को प्रभावी और पर्यावरणीय रूप से उपयुक्त संग्रह तकनीक व उपचार के माध्यम से संरक्षित किया जाना चाहिए।

ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 के बारे में

  • यह PROs (उत्पादक जवाबदेही संगठनों), उपभोक्ताओं, विघटनकर्ताओं (डिसमेंटलर), पुन: चक्रणकर्ताओं, व्यापारियों, निर्माताओं
    आदि जैसे सभी हितधारकों पर लागू होता है।
  • इसमें संग्रह तंत्र-आधारित दृष्टिकोण (कलेक्शन मैकेनिज्म-बेस्ड एप्रोच) को अपनाया गया है जिसमें EPR के तहत उत्पादकों द्वारा उत्पादों के संग्रह हेतु संग्रह केंद्र, संग्रह बिंदु तथा वापस लेने की प्रणाली आदि शामिल है।
  • इसमें इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के घटक और स्पेयर पार्ट्स शामिल हैं। इसके अतिरिक्त CFL, जैसे- मर्करी युक्त लैंप भी सम्मिलित हैं।
  • इसमें खरीद के समय उपभोक्ता पर उत्पादक द्वारा आरोपित इंटरेस्ट-बिअरिंग डिपॉज़िट रिफंड स्कीम का प्रावधान है।
  •  इसमें राज्य-वार EPR अनुज्ञप्ति (ऑथराइज़ेशन) के बदले CPCB द्वारा पैन इंडिया EPR अनुज्ञप्ति को अपनाया गया है।

ई-कचरे को कम करने के लिए सुझाव

  • इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आंकड़े एकत्र किए जाने चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए तुलना की जानी चाहिए कि डेटा
    निरंतर अद्यतित और प्रकाशित किए जाएँ तथा इनकी व्याख्या की जाए।
  • टेक-मेक-डिस्पोज से बचें: देशों में चक्रित अर्थव्यवस्था मॉडल को बढ़ावा देने हेतु ऐसा कानून प्रस्तावित किया जाना चाहिए जिसमें ई-कचरे को कचरे के बजाय संसाधन के रूप में माना जाता है।
  • 3-R (Reduce, Reuse Recycle) रणनीति: देशों को रिड्यूस, रियूज, रिसाइकल को बढ़ावा देना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में सोना, चांदी, तांबा, प्लैटिनम और पैलेडियम जैसे ई-कचरे से पुनर्माप्त करने योग्य कीमती सामग्रियों का मूल्य $ 55 बिलियन था।
  • ई-कचरे पर विधि निर्माण के तहत उत्पादन चरण पर एक बेहतर उत्पाद डिजाइन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

 जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2018

(Bio-Medical Waste Management Rules, 2018)

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम में संशोधन जारी किए गए।

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BIO-MEDICAL WASTE) क्या है?

  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट’ से आशय मानवों अथवा पशुओं के रोग निदान, उपचार अथवा प्रतिरक्षण या अनुसंधान गतिविधियों के
    दौरान उत्पादित अपशिष्ट से है।
  • इसमें सीरिंज, सुईयां, कॉटन की पट्टी, छोटी शीशियाँ आदि सम्मिलित हैं। इनमें शरीर से निकले द्रव्य हो सकते हैं जिनके द्वारा । संक्रमण का प्रसार हो सकता है।
  • यह पाया गया है कि इस उत्पादित ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट’ का केवल 15% हिस्सा ही खतरनाक होता है। हालांकि, अपशिष्ट की
    संपूर्ण मात्रा को उपचारित किया जाना चाहिए।

जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 की विशेषताएँ

  • विस्तृत न्यायाधिकार-क्षेत्र – नियमों के दायरे को बढ़ाकर टीकाकरण कैंपों, रक्तदान शिविरों और शल्य चिकित्सा कैंपों आदि को भी
    सम्मिलित किया गया है।
  • अपशिष्ट का पूर्व-उपचार– प्रयोगशालाओं में उत्पन्न अपशिष्ट, सूक्ष्मजैविक अपशिष्ट, रक्त नमूनों व रक्त थैलियों का WHO अथवा NACO द्वारा बताए गए तरीके से कीटाणुनाशन व रोगाणुनाशन कर पूर्व-उपचार करना।
  • बेहतर पृथक्करण: जैव चिकित्सा अपशिष्ट को 10 की बजाए 4 श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये हैं- अनुपचारित मानव शारीरिक अपशिष्ट, जंतु शारीरिक अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट एवं जैवप्रौद्योगिकीय अपशिष्ट।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट के निस्तारण हेतु बनाए गए बैग या कंटेनरों के लिए बार-कोड की व्यवस्था।
  • प्रशिक्षण एवं प्रतिरक्षण – सभी स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को प्रशिक्षण देना एवं उनका प्रतिरक्षण करना।।
  • भट्टी (इन्सिनरेटरों) के लिए प्रदूषण संबंधी कठोर नियम ताकि पर्यावरण में होने वाले प्रदूषकों (डाइऑक्सिन और फ्यूरान की
    उत्सर्जन सीमाओं सहित) के उत्सर्जन को घटाया जा सके।
  • दो वर्षों के भीतर क्लोरीनेटेड प्लास्टिक बैगों, दस्तानों और रक्त की थैलियों को प्रयोग से बाहर करना।
  • निस्तारण की प्रक्रिया – बायोमेडिकल वेस्ट को अपशिष्ट की श्रेणी के अनुसार रंगीन बैगों में पृथक कर लिया जाना चाहिए। इसे 48 घंटों तक संग्रहीत किया जा सकता है जिसके पश्चात् या तो इसका स्व-स्थाने उपचार किया जाए अथवा इसे CBMWTF
    कार्यकर्ताओं द्वारा संग्रहित किया जाए।

सन्दर्भ

  • सरकार ने 1998 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम को अधिसूचित किया
    था। इसे पुनः 2000 एवं 2003 में दो बार संशोधित किया गया।
  • 2016 में सरकार ने एक नया जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 अधिसूचित किया। इसका उद्देश्य जैव-अपशिष्ट प्रबंधन के विस्तार, इसमें सुधार तथा इसके लिए एक व्यापक व्यवस्था करना था।
  • इस नवीन संशोधन का उद्देश्य अनुपालन को बेहतर बनाना तथा पर्यावरण अनुकूल ‘जैव-चिकित्सा अपशिष्ट‘ के समुचित प्रबंधन के कार्यान्वयन को सुदृढ़ करना हैं।

जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 की विशेषताएं

  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पादकों अर्थात् अस्पताल, क्लीनिक, टीकाकरण कैंप आदि के लिए अब यह आवश्यक होगा कि वे क्लोरीनेटेड प्लास्टिक बैगों और दस्तानों को मार्च 2019 तक प्रयोग से बाहर कर दें।
  • कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBMWTF) द्वारा CPCB के दिशानिर्देशों के अनुरूप GPS और बार कोडिंग सुविधा की स्थापना की जाएगी।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट का पूर्व उपचार (Pre-treatment): WHO और WHO ब्लू बुक 2014 की गाइडलाइन्स ऑन सेफ मैनेजमेंट ऑफ़ वेस्ट फ्रॉम हेल्थ केयर एक्टिविटीज के अनुसार, प्रयोगशाला अपशिष्ट, सूक्ष्मजैविक अपशिष्ट, रक्त नमूनों जैसे अपशिष्ट रखने वाले प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठान के लिए इनका उसी स्थान पर (ऑन साईट) पूर्व-उपचार करना आवश्यक है। इसके पश्चात् इसे अंतिम निस्तारण हेतु CBMWTF के पास भेजा जाएगा। यह सुनिश्चित करेगा कि संक्रामक तरल अपशिष्ट, जैसे- विषैले पदार्थ आदि सीवरेज तंत्र में निर्मुक्त न हों।
  • इन संशोधित नियमों के प्रकाशित होने के दो वर्षों के भीतर सभी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों को अपनी वेबसाइट पर वार्षिक
    रिपोर्ट उपलब्ध करवानी होगी।

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